Basant Panchmi 2021: मूकाम्बिका मंदिर कर्नाटक, जहां गूंगों की माता हैं देवी सरस्वती

कर्नाटक का कोल्लूर जिला अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए दक्षिण भारतीयों के लिए पवित्र तीर्थ है. इसकी वजह है यहां स्थित मूकाम्बिका मंदिर. लिखित तौर पर अपने आप में 1200 साल पुराना इतिहास समेटे हुए यह मंदिर देवी सरस्वती के ऐसे दिव्य धाम के तौर पर पूजित है जहां ज्ञान की देवी तीनों लोकों की महाशक्ति के रूप में स्थापित है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 13, 2021, 09:37 AM IST
  • प्राचीन काल में कोल ऋषि के नाम पर स्थापित हुआ कर्नाटक का कोल्लूर
  • वाणी की देवी मां सरस्वती की आराधना का दिव्य मंदिर है मूकाम्बिका
Basant Panchmi 2021: मूकाम्बिका मंदिर कर्नाटक, जहां गूंगों की माता हैं देवी सरस्वती

नई दिल्लीः रामायण और महाभारत काल से पहले सभ्यता की शुरुआत के प्रमाण दक्षिण भारत में मिलते हैं. यह तथ्य स्पष्ट करता है कि ज्ञान का पहला सोता भारत के इसी हिस्से से बहना शुरू हुआ. दक्षिण भारत में ज्ञान की देवी सरस्वती से जुड़े कई मंदिर मिलेंगे जो अपने आप में प्राचीनता के स्पष्ट हस्ताक्षर हैं. कर्नाटक के कोल्लूर जिले में जंगलों के बीच से बहने वाली नदी सुपर्णिका इसकी तस्दीक करती है. इस नदी को देवी सरस्वती के आशीर्वाद का प्रवाह माना जाता है. 

यहीं विराजती हैं देवी सरस्वती
कर्नाटक का कोल्लूर जिला अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए दक्षिण भारतीयों के लिए पवित्र तीर्थ है. इसकी वजह है यहां स्थित मूकाम्बिका मंदिर. लिखित तौर पर अपने आप में 1200 साल पुराना इतिहास समेटे हुए यह मंदिर देवी सरस्वती के ऐसे दिव्य धाम के तौर पर पूजित है जहां ज्ञान की देवी तीनों लोकों की महाशक्ति के रूप में स्थापित है.

यह मंदिर संसार की सारी निधियों में से ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ होने का संकेत देता है. मंदिर और देवी का नाम मूकाम्बिका यानी कि मूकों की माता है. यह देवी सरस्वती के वाणी देवी स्वरूप का वर्णन करता है. 

यह है देवी की कथा
देवी को यह नाम कैसे मिला, इसकी भी कहानी है. केरल-कर्नाटक की दंत कथाओं में ये कहानी यहां हमेशा सुनी जाती रही है. कहते हैं कि कोल नाम के एक महर्षि यहां तपस्‍या कर रहे थे. वह देवी के भक्त थे और ज्ञान के महत्व को दुनिया में बताना चाहते थे. इस पवित्र कार्य में एक राक्षस उनके लिए बाधक बन रहा था.

दरअसल वह महर्षि कोल को सता कर उनसे सारी सिद्धियां और ज्ञान प्राप्त करना चाहता था, इसके साथ माता सरस्वती के सूक्ष्म रूप से तंत्र विद्या भी चाहता था. कोल ऋषि उसकी सहायता नहीं कर रहे थे. 

गूंगा हो गया राक्षस
इधर राक्षस शिव आराधना भी कर रहा था. तपस्या और यज्ञ में आहूतियों के कारण महादेव शिव को आना ही पड़ा तब देवी के भक्त कोल महर्षि ने सरस्वती मां से इस घोर संकट के उपाय की मांग की. देवी सरस्वती ने कहा कि विधि के अनुसार मैं संसार की सभी वाणियों की शक्ति हूं. मैं राक्षस की वाणी की शक्ति लोप कर दूंगीं. जब महादेव प्रकट हुए और वर मांगने को कहा तो राक्षस कुछ बोल ही नहीं पाया.

गूंगे हो जाने के कारण अम-बम यही करता रह गया. बहुत प्रयास करने पर उसके मुंह से निकला अम्बा दी. शिव ने उसे माता के प्राप्त होने का वरदान दिया और अंतर्ध्यान हो गए. 

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ऐसे मिला मूकाम्बिका नाम
राक्षस को माता मिलने का वरदान मिला था इसलिए देवी सरस्वती वहां प्रकट हुईं और उन्होंने उसके सिर पर पुत्र मानकर हाथ फेरा तो राक्षस की सारी मति शुद्ध हो गई. तब देवी खुद मूकाम्बिका यानी कि मूक (गूंगे) की माता कहलाईं. कोल ऋषि के कारण वह स्थान कोल्लूर कहलाया. एक अन्य कथा के मुताबिक जब राक्षस महादेव से कुछ मांग नहीं सका तो गुस्से में ऋषि कोल को मारने दौड़ा.

इसी बीच देवी के शक्ति स्वरूप ने उसे परास्त कर दिया. देवताओं और कोल ऋषि की प्रार्थना पर देवी कोल्लूर में सरस्वती स्वरूप में विराजित हो गईं. 

केरल में है दक्षिण मूकाम्बिका मंदिर
कर्नाटक स्थित यह मंदिर उत्तर मूकाम्बिका कहलाता है, जबकि केरल में भी एक सरस्वती मंदिर है. इसे दक्षिण मूकाम्बिका मंदिर कहा जाता है. यह मंदिर पनाचिक्कड़ केरल में स्थित है, ये केरल का एकमात्र मंदिर है जो देवी सरस्वती को समर्पित है. चिंगावनम के पास बने इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर को किझेप्पुरम नंबूदिरी ने स्थापित किया था.

मंदिर में जलता रहता है दीपक
उन्होंने ही इस प्रतिमा को खोजा और इसे पूर्व की तरफ मुख करके स्थापित किया. पश्चिम की तरफ मुख करके एक और प्रतिमा की स्थापना की गई लेकिन उसका कोई आकार नहीं है. माता की प्रतिमा के पास एक दीपक है जो हर वक्त जलता रहता है. इसे कोट्टयम का मंदिर भी कहते हैं. कोट्टयम केरल का रमणीक प्राकृतिक स्थान है.

पूर्व की ओर मुख किए मूर्ति के आसपास पनाथी कथू चेदी पौधे लगे हुए हैं. इन पौधों को यहां से हटाने की इजाजत किसी को भी नहीं है इनके बारे में कहा जाता है कि यह पौधे कभी सूखेंगे नहीं. 

सुपर्णिका नदी है औषधि
कोल्लूर (कर्नाटक) में सरस्वती मंदिर के पास बहने वाली सुपर्णिका नदी की भी अपनी विशेषताएं हैं. सुपर्ण गरुड़ ने अपनी माता के दुखों को दूर करने के लिए यहां देवी की तपस्या की थी. माता के प्रकट होने पर उन्होंने इस स्थान को भक्ति और ज्ञान का तीर्थ बताया और इसे पहचान देने की मांग की.

माता ने कहा कि अब यह नदी तुम्हारे नाम से सुपर्णिका कहलाएगी. इसका जल रोगी शरीर की सारी बीमारियां दूर करेगा. नदी में 64 विभिन्न औषधीय पौधों और जड़ों के तत्वों को अपने में अवशोषित करती बहती है. इसलिए इस नदी में स्नान का महत्व है और इसे पवित्र माना जाता है. 

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