नई दिल्लीः 1947 को आजादी के साथ-साथ पाकिस्तान बनकर देश का एक हिस्सा भारत से अलग हुआ था. इसी के साथ सनातन काल से चली आ रही एकता की संस्कृति खंडित हो गई थी. यह सिर्फ दो मुल्कों का बंटवारा नहीं हुआ था, बल्कि एक देश में बसने वाली विविध संस्कृतियों और परंपराओं का बंटवारा हुआ था.
आज भी भले ही पाकिस्तान अलग है, लेकिन आस्था के जो निशान अब भी वहां मौजूद हैं उनके प्रति अभी भी भारतीयों की श्रद्धा वैसी ही है, जैसी कि अपनी विरासत से होती है. हिंगलाज भवानी का मंदिर तो हम जानते ही हैं, इसके अलावा और भी मंदिर पाकिस्तान में हैं.
भारत में योग दिवस और खासकर सूर्य नमस्कार को लेकर मुस्लिम नेताओं ने काफी विवाद खड़ा किया था. उन्होंने सूर्य नमस्कार किए जाने की आपत्ति जताई थी. इस तरह की धार्मिक कट्टरता और राजनीति का कारण समझ से परे है. लेकिन सूर्य नमस्कार और मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण अचानक ध्यान पाकिस्तान की ओर चला जाता है.
इसकी वजह है एक सूर्य मंदिर जो पाकिस्तान के मुल्तान में है. वही मुल्तान जिसके लिए पूर्व भारतीय क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग मुल्तान के सुल्तान कहलाते हैं. इस शहर का हिंदू भावनाओं और मान्यताओं के साथ गहरा नाता है.
आदित्य सूर्य मंदिर कहलाता है मुल्तान का मंदिर
मुल्तान के सूर्य मंदिर को आदित्य सूर्य मंदिर कहा जाता है. आदित्य सूर्य का ही एक नाम है जो कि उन्हें अपना मां अदिति से मिला है. अदिति के पुत्र होने के कारण सूर्य आदित्य कहलाए. तेज स्वरूप होने के कारण आदित्य नाम भगवान शिव से भी जुड़ा हुआ है. लेकिन दुर्भाग्य, मंदिर की प्रसिद्ध आदित्य मूर्ति को 10 वीं शताब्दी के अंत में मुल्तान के नए राजवंश इस्माइली शासकों द्वारा नष्ट कर दिया गया था.
मंदिर का उल्लेख मध्ययुगीन अरब के भूगोलवेत्ता अल-मुकद्दासी ने किया था. यह मंदिर इतना विशाल था कि शहर के हाथीदांत और कसेरा बाज़ारों के बीच मुल्तान के सबसे अधिक आबादी वाले हिस्से में फैला था.
5000 साल पुराना इतिहास, श्रीकृष्ण से जुड़ी है कथा
इस मंदिर का इतिहास पांच हजार साल पुराना है. समय चक्र के इतने पीछे चलते हुए हम महाभारत काल में पहुंच जाते हैं. वही काल जहां श्रीकृष्ण अपने सखा अर्जुन को युद्ध में गीता का उपदेश दे रहे हैं. इसी कालखंड के सामानांतर श्रीकृष्ण की एक और कहानी है जो उनके खुद के पुत्र सांब से जुड़ी है.
दरअसल श्रीकृष्ण और जांबवंती का पुत्र सांब निरंकुश हो गया था. अपने पिता की महानता और उनकी प्रसिद्धि और यश के कारण उसे गर्व हो गया था. वहीं उसका रूप भी श्रीकृष्ण जैसा ही था इसलिए उसे इसका भी अभिमान था. वह अक्सर अपने धन-बल, रूप का लाभ उठाकर स्त्रियों के साथ अनुचित व्यवहार करता था. एक बार उसने एक ऋषि का अपमान कर दिया. तब क्रोधित कृष्ण ने उसे कुष्ठ रोग हो जाने का श्राप दे दिया.
सांब को अपनी गलतियों का अहसास हुआ तब श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को क्षमा करते हुए कहा कि तुम अगर सूर्य आराधना करो तब यह रोग समाप्त हो सकता है. कृष्ण ने सांब को हर दिशा और क्षेत्र में घूम-घूमकर सूर्य उपासना के लिए कहा था. इस तरह सांब ने देश भू भाग पर 12 स्थानों पर सू्र्य की आराधना की. हर आराधना स्थल पर सांब ने सूर्य मंदिर बनवाए. इसी क्रम में मुल्तान का सूर्य मंदिर भी बनवाया. अन्य मंदिर भारत में स्थित हैं.
प्राचीन अभिलेखों में भी दर्ज है आदित्य सूर्य मंदिर
कहते हैं कि मुल्तान का प्राचीन नाम कश्यपपुरा था. यह नाम सूर्य के पिता ऋषि कश्यप के नाम के आधार पर ही था. ग्रीक एडमिरल स्काईलेक्स ने 515 ईसा पूर्व सूर्य मंदिर का उल्लेख किया गया था. एक अभिलेख के मुताबिक, विदेशी यात्री ह्वेन सांग भी 641 ईस्वी में मंदिर पहुंचा था.
ह्वेन सांग के वर्णन में बड़े लाल रूबी पत्थर से बनीं आंखों वाली शुद्ध सोने की सूर्य प्रतिमा का उल्लेख शामिल है. इसके दरवाजों, खम्भों और शिखर में सोने, चांदी और रत्नों का काफी इस्तेमाल किया गया था. हिंदू इस मंदिर में हजारों की संख्या में प्रतिदिन सूर्य उपासना के लिए पहुंचते हैं. इस मंदिर में विदेशी यात्री ने देवदासी का होना भी लिखा है. बाद के कई और विदेशी यात्रियों के वर्णन में भी अलग-अलग धर्मों की प्रतिमाएं स्थापित होना शामिल है.
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अलबरूनी ने भी किया है वर्णन
11वीं सदी का अल बरूनी का लिखी मुल्तान दौरे की रिपोर्ट कहती है कि इस सदी में मंदिर नष्ट किया गया और फिर कभी नहीं बनवाया गया. उसकी जो लिखा वह ऐसा है कि - अब इस मंदिर में तीर्थ करने कोई नहीं आता. यह नष्ट कर दिया गया है. इसका लगभग दो सदी से कोई निर्माण नहीं कराया गया और अब इसके पत्थर-खंभे कभी इसके बुलंद होने की गवाही भरते हैं.
इसी वर्णन से पता चलता है कि 8वीं सदी में मुहम्मद बिन कासिम की सरपरस्ती में उमैय्यद खिलाफत ने मुल्तान विजय की. मंदिर और इसके पास का बड़ा बाजार सरकार का सबसे बड़ा आय का स्त्रोत बना. कासिम ने पास ही एक मस्जिद बनवाई थी.
इस तरह भारत की इस प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को सालों-साल नष्ट करने की कोशिश की गई, लेकिन संस्कृति का यह सूर्य किसी के भी प्रयास से कभी अस्त नहीं हो सका. यह आज भी जगमगा रहा है. उदित होते सूर्य की रौशनी आज भी मुल्तान के इस दैव स्थान पर पड़ती है तो इसके अवशेष अपनी भव्यता की कहानी कहते हैं.
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