नई दिल्ली: बिहार में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. लेकिन कांग्रेस में इन नतीजों की नहीं बल्कि नेतृत्व पर चर्चा शुरू हो गई है. एक बार फिर राहुल के नेतृत्व के खिलाफ आवाज बुलंद की है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने राहुल गांधी की उपयोगिता पर सवाल उठाए हैं.
कांग्रेस के खिलाफ कपिल सिब्बल की आवाज
एक इंटरव्यू के दौरान कपिल सिब्बल ने अपनी ही पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि "बिहार के चुनावों और दूसरे राज्यों के उप-चुनावों में कांग्रेस की प्रदर्शन पर अब तक शीर्ष नेतृत्व की राय तक सामने नहीं आई है. शायद उन्हें सब ठीक लग रहा है और इसे सामान्य घटना माना जा रहा है. पार्टी ने शायद हर चुनाव हारने को नियति मान लिया है."
कांग्रेस के लगातार ख़राब प्रदर्शन और शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि "पार्टी ने 6 सालों में आत्ममंथन नहीं किया तो अब इसकी उम्मीद कैसे कर सकते हैं? हमें कमजोरियां पता हैं, संगठन के स्तर पर समस्या की भी समझ है और शायद समाधान भी पता है, लेकिन इसे अपनाना नहीं चाहते. अगर यही हाल रहा तो पार्टी को आगे और भी नुकसान होता रहेगा."
सिब्बल को अशोक गहलोत ने दिया जवाब
कपिल सिब्बल ने सीधे-सीधे सोनिया और राहुल गांधी पर सवाल उठाये हैं. लेकिन अब तक उनका कोई जवाब नहीं आया है. हालांकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सिब्बल का ज़रूर दिया और ट्वीट किया कि "कपिल सिब्बल को अंदरूनी मामलों का मीडिया में ज़िक्र नहीं करना चाहिये था। इससे देशभर के पार्टी कार्यकर्ताओं को ठेस पहुंची है."
There was no need for Mr Kapil Sibal to mentioned our internal issue in Media, this has hurt the sentiments of party workers across the country.
1/— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) November 16, 2020
अशोक गहलोत ने बैक टू बैक कुल 5 ट्वीट किए और इस कलह को शांत करने की कोशिश करते हुए कपिल सिब्बल को समझाने की भी कोशिश की.
सिर्फ कपिल सिब्बल ने ही नहीं बल्कि बिहार में हार के बाद कांग्रेस के नेता और पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ने भी अपनी ही पार्टी पर सवाल खड़ा किया है और कहा है कि कांग्रेस के लिए ये समय आत्मविश्लेषण, चिंतन और विचार-विमर्श और कदम उठाने का समय है.
चारों तरफ से घिरी कांग्रेस पर बीजेपी ने भी एक बार फिर हमला बोला और कहा कि परिवारवाद कैंसर की तरह है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब कांग्रेस के बड़े नेताओं ने नेतृत्व पर सवाल उठाये हों. इसी साल अगस्त में भी 23 नेताओं ने चिट्ठी लिखकर शीर्ष नेतृत्व में बड़े बदलाव की मांग की थी. और बात इतनी आगे बढ़ी कि गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से इस्तीफे तक की पेशकश कर दी थी. लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर इसका कोई असर नहीं हुआ नतीजा सबके सामने है. चुनाव दर चुनाव और हार दर हार ही कांग्रेस की नियति बन गई है.
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