नई दिल्ली: कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा की औपचारिक ताजपोशी से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह सचिन पायलट नाम का एक और कांटा निकाल दिया गया है. सचिन पायलट की स्थिति न घर की रह गई है और ना घाट की. गांधी खानदान के वफादार गहलोत ने उन्हें ठिकाने लगा दिया है. अब पायलट को कांग्रेस में नख-दंत विहीन होकर जीना होगा. या फिर पार्टी छोड़कर जाना होगा.
गांधी खानदान के इशारे पर गहलोत ने पायलट की बलि चढ़ाई
सचिन पायलट का पार्टी में मजबूत बने रहना गहलोत और सोनिया दोनों के बच्चों के लिए खतरा था. जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव के लिए भविष्य की राजनीति का रास्ता साफ करना चाहते हैं. वहीं सोनिया गांधी नहीं चाहतीं कि उनकी बेटी प्रियंका वाड्रा की ताजपोशी से पहले कांग्रेस में उन्हें चुनौती देने की क्षमता रखने वाला कोई कांग्रेस में कोई युवा नेता बचे.
इसलिए सचिन पायलट के लिए सारे रास्ते बंद किए जा रहे हैं. राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के खिलाफ विधायकों को उकसा कर प्रस्ताव पास कराया गया है. जिसमें लिखा गया है कि विधायकों ने मांग की है कि कांग्रेस सरकार या पार्टी को कमजोर करने के लिए षड्यंत्र रचने वाले विधायकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.
इसके अलावा मुख्यमंत्री के इशारे पर सचिन पायलट को राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप(SOG)ने पहले ही नोटिस जारी कर रखा है. जाहिर सी बात है कि पायलट इतनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे और कोई ना कोई कदम जरुर उठाएंगे. जिसके बाद गांधी और गहलोत खानदान का रास्ता हमेशा के लिए साफ हो जाएगा.
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पायलट के साथ शुरु से हो रही थी राजनीति
सचिन पायलट का विद्रोह अचानक नहीं हुआ है. आज उनके जिन बगावती तेवरों पर कांग्रेस पार्टी के नेता हैरान होने का नाटक कर रहे हैं. इसकी नींव खुद गहलोत की रखी हुई है. पिछले दो साल से जब से राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी है. तब से पायलट को ये एहसास दिलाया जा रहा है कि राज्य की राजनीति में उनकी कोई जरुरत नहीं है.
सचिन पायलट को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुना था. राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनवाने में युवा और उर्जावान पायलट की बड़ी भूमिका थी. लेकिन जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आई तो सचिन को दरकिनार करके गांधी खानदान के पुराने वफादार अशोक गहलोत को कुर्सी दे दी गई.
हालांकि पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर संतुष्ट रखने की कोशिश की गई थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से अशोक गहलोत सचिन से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी छीनने की फिराक में लगे हुए थे.
अगर अशोक गहलोत की साजिश सफल हो जाती तो पायलट के हाथो में कुछ भी नहीं रह जाता. मुख्यमंत्री तो वह नहीं ही बन पाए और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी गंवानी पड़ती. ऐसे में सचिन के सामने विद्रोह करने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं था.
मध्य प्रदेश में भी ठीक ऐसी ही स्थिति थी
राजस्थान से ठीक पहले मध्य प्रदेश में भी बिल्कुल ऐसी ही कहानी दोहराई गई थी. वहां भी सिंधिया के बल पर चुनाव जीतकर कमलनाथ को कुर्सी सौंपी गई थी. इसके बाद सिंधिया के खिलाफ लगातार साजिशें की जा रही थीं. राजस्थान में भी पायलट के खिलाफ भी गहलोत के ऐसे ही षड्यंत्र जारी थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सिर पर गांधी खानदान का पूरा हाथ था. अन्यथा उनकी इतनी हिम्मत कभी नहीं होती.
पायलट के खिलाफ साजिशों को परवान चढ़ाने में गहलोत का भी पूरा योगदान रहा है. क्योंकि वह जानते थे कि पायलट के रहते उनके बेटे वैभव गहलोत का राजनीतिक करियर कभी परवान नहीं चढ़ सकता है. वैभव गहलोत के जोधपुर से चुनाव हारने के बाद उनके मुख्यमंत्री पिता ने बड़ी मुश्किल से वैभव को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनवाकर उनकी राजनीति बचाई है. ऐसे में पायलट को ठिकाने लगाने से सबसे बड़ा फायदा वैभव गहलोत का ही होने वाला है.
सचिन को अपने खिलाफ हो रही साजिशों का पूरा अंदाजा था. इसलिए उन्होंने दिल्ली में अपने पुराने साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया से पूरे 40 मिनट तक मुलाकात की. जिसके बाद सिंधिया ने ट्विट करके कहा कि कांग्रेस में योग्यता और काबिलियत के लिए कोई स्थान नहीं है.
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सिंधिया की तरह पायलट की विदाई भी तय है
कांग्रेस पार्टी में सिंधिया और पायलट जैसे युवा-उर्जावान नेताओं के लिए कोई स्थान नहीं है. इसीलिए सिंधिया को पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और पायलट की राह में कांटे बोए जा रहे हैं. ताकि वह खुद ही परेशान होकर पार्टी छोड़ दें.
दरअसल राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद सबकी निगाहें भावी अध्यक्ष के तौर पर प्रियंका गांधी वाड्रा पर टिकी हुई हैं. इसके लिए बकायदा उनकी इमेज बिल्डिंग की जा रही है. ऐसी परिस्थितियों में पायलट जैसे युवा नेता का कांग्रेस में बच पाना असंभव है. क्योंकि वो राजनीति में प्रियंका से सीनियर हैं. इसी वजह से सिंधिया की भी बलि चढ़ाई गई थी.
अगर सिंधिया को मध्य प्रदेश और पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बना दिया जाता तो आने वाले वक्त के साथ दोनों ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो चुके होते. जनता के बीच युवा नेता के तौर पर इनकी छवि ज्यादा मजबूत होती. ऐसे में कांग्रेस में सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो जाता राहुल और प्रियंका की जगह पायलट और सिंधिया के नाम का सिक्का चलने लगता. यह गांधी परिवार की भविष्य की राजनीति के लिए खतरनाक साबित होता.
इसलिए दोनों की विदाई की साजिश रची गई.
इन परिस्थितियों में सिंधिया के बाद अगर पायलट भी कांग्रेस से विदा हो जाते हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. क्योंकि सोनिया गांधी की ताजपोशी से पहले भी दोनों के पिता माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट रहस्यमय परिस्थियों में मौत के शिकार होकर रास्ते से हट गए थे.
गांधी परिवार कांग्रेस पर काबिज रहने के लिए किसी की भी बलि चढ़ा सकता है. सिंधिया और पायलट तो सिर्फ बानगी हैं.