लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण संशोधन अध्यादेश 2020 के प्रारूप को मंजूरी दी गई. इस अध्यादेश को पारित कराये जाने का फैसला भी कैबिनेट में किया गया. लेकिन इस फैसले के बाद सियासी रोटियां सेंकने वालों में खलबली मच गई.
गो-हत्या के खिलाफ कानून पर 'सियासी ड्रामा'
गौ वंश की रक्षा करने और गोवध को रोकने के लिए लाए गए अध्यादेश से पूरे यूपी में अब गोकशी की घटनाओं को अंजाम देने वालों की खैर नहीं है. ऐसे में इस मसले पर सत्ताधारी पार्टी भाजपा का कहना है की कड़े कानून से पूरे देश में संदेश जाएगा. बीजेपी ने कहा गोवध करने की सोच पर भी इस कड़े फैसले से रोक लगेगी तो समाजवादी पार्टी ने कहा की गो माता के नाम पर वोट मांगने वालों को गायों की दुर्दशा से कोई मतलब नहीं है. वहीं कांग्रेस ने भी इसे वोट की सियासत ही करार दिया. कांग्रेस नेताओ का कहना है कि योगी सरकार को बहुमत विकास और रोजगार के लिए मिला था.
कांग्रेस और सपा ने उठाए योगी सरकार पर सवाल
संशोधित गोवध अधिनियम पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने सवाल उठाए हैं. कांग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह ने कहा कि योगी सरकार अपनी गौ शालाओं में चारा मुहैया नहीं करा पा रही है. भूख से गायों की मौतें हो रही है. वहीं समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता पवन पांडेय ने कहा कि आज यूपी में गायों की जो दुर्दशा है वो किसी से छुपी नहीं है.
कानून को लेकर एक्शन में सीएम योगी
पिछले कुछ सालों में में गोकशी और गोवध के मामले सामने आए हैं. लेकिन अब योगी सरकार बेहद सख्ती के साथ गोकशी के आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे करने का इंतजाम करने जा रही है. अब इस अध्यादेश के बाद गोवध और गोकशी करने वालों की तस्वीरें भी उनके इलाके में लगाई जाएंगी.
सीएम योगी ने तो फुल एक्शन में ये चेतावनी भी दे डाली कि "गोवध तो दूर तो जो सोचेगा भी गोवध के बारे में उसकी जगह जेल में होगी."
कानून के तहत क्या है सजा का प्रावधान?
उत्तर प्रदेश में गोवध करने वालों पर 3 से 10 साल की जेल और 5 लाख जुर्माना लगाया जा सकता है. गाय को शारीरिक क्षति, उसके जीवन को संकट पैदा करने, गाय के जीवन को संकट में डालने के लिए उनके भोजन पानी को खत्म करना अपराध होगा. इसके लिए 1 से 7 साल तक की सज़ा और 1 से 3 लाख रूपये तक जुर्माने की सजा होगी. वहीं गो वशं के अंग भंग करने पर 7 साल की जेल और 3 लाख तक जुर्माना लगेगा. आरोपियों के तस्वीर और नाम उसके घर या सार्वजनिक स्थल पर प्रकाशित किया जाएगा.
गोवध निवारण अधिनियम 1955 उत्तर प्रदेश में जनवरी 1956 को लागू हुआ था, लेकिन जनभावओं की अपेक्षा के मुताबिक ये कभी प्रभावी तरीके से लागू हुआ ही नहीं. और इसलिए अब योगी सरकार ने गोवध और गोकशी को रोकने के लिए अबकी बार कानून का सख्त डंडा चलाने की तैयारी कर ली है.
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गोवध के बाद कई बार कई तनाव फैला है और हिंसा भी हुई हैं जिस वजह से सार्वजनिक संपत्ति का भी नुकसान होता है. और इसलिए देश की आजादी के 73 साल बाद गोवध पर राष्ट्रीय कानून पर भी यकीनन बनाया जाना चाहिए.
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