2004 tsunami: जब सोलह साल पहले लहरों ने ढाया था कहर, आज भी कांप जाती है रूह

जब 26 दिसंबर 2004 को सुनामी ने कहर बरपाया था. इस कहर की चपेट में आए थे. श्रीलंका, इंडोनेशिया समेत कई देश, भारत का समुद्र तटीय सिरा और सागर किनारे बसे कई देशों के शहर. ऊंची-ऊंची इमारतें देखते-देखते धराशाई हो गईं और मलबों के पहाड़ों ने उनकी जगह ले ली.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 26, 2020, 12:27 PM IST
  • सुनामी की वजह था हिंद महासागर में 9.15 की तीव्रता वाला भूकंप, जिसने समुद्र की लहरों को ऊंचा उछाल दिया था
  • भूकंप और सुनामी से इतनी तबाही जो पिछले 40 साल में विश्व ने नहीं देखी थी.
  • इंडोनेशिया, दक्षिण भारत और श्रीलंका सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे
  • सुनामी के कारण इन 18 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए. 50 हजार लोग लापता हो गए थे.
2004 tsunami: जब सोलह साल पहले लहरों ने ढाया था कहर, आज भी कांप जाती है रूह

नई दिल्ली: ट्विटर पर सुनामी ट्रेंड में है. आखिर क्यों? Corona महामारी से जूझ रहे इस साल के जाते-जाते ऐसी भयानक आपदा के नाम ने डरा दिया.  आशंका थी कि क्या दुनिया के किसी कोने को इस समुद्री तूफानी बाढ़ ने अपनी चपेट में लिया है?

दूसरी ओर फिलिपींस में 20 घंटे पहले 6.6 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया, लेकिन वैज्ञानिकों ने राहत दी कि समुद्र के भीतर हुई प्लेटों की हलचल से कंपन हुआ, हालांकि सुनामी का खतरा नहीं है. लेकिन तारीखों के इतिहास ने 16 साल पहले का वह तबाही भरा मंजर सामने रख दिया, जब एक सर्द सुबह भारत के दक्षिणी सिरे और इसके आस-पास के देशों के लिए मौत बनकर आई थी. 

उस रोज आया था समुद्र में भूकंप
बात हो रही है, साल 2004 की सुनामी की. जब 26 दिसंबर 2004 को सुनामी ने कहर बरपाया था. इस कहर की चपेट में आए थे. श्रीलंका, इंडोनेशिया समेत कई देश, भारत का समुद्र तटीय सिरा और सागर किनारे बसे कई देशों के शहर. ऊंची-ऊंची इमारतें देखते-देखते धराशाई हो गईं और मलबों के पहाड़ों ने उनकी जगह ले ली.

विनाश का वह मंजर आज भी भुलाए नहीं भूलता है. इस आपदा की वजह था हिंद महासागर में 9.15 की तीव्रता वाला भूकंप, जिसने समुद्र की लहरों को ऊंचा उछाल दिया था और भूकंपीय तूफान का कारण बना था. 

तबाही ऐसी, पिछले 40 साल में नहीं देखी जैसी
हिंद महासागर से उठी उग्र लहरों का पानी रात के अंधेरे में कई तटीय इलाकों में बसे रिहायशी क्षेत्रों में घुस गया था. उस समय तक सुनामी की पूर्व चेतावनी जैसी कोई प्रणाली प्रचलन में नहीं थी. थाइलैंड और अन्य देशों में समुद्र किनारे बने होटलों और रिसार्ट में बड़ी संख्या में ठहरे विदेशी पर्यटकों की इस समुद्री कहर ने जान ले ली.

भूकंप और सुनामी से इतनी तबाही जो पिछले 40 साल में विश्व ने नहीं देखी थी.

18 लाख से अधिक लोगों पर पड़ा असर
इंडोनेशिया, दक्षिण भारत और श्रीलंका इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे. सुनामी के कारण इन देशों में 18 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए. 50 हजार लोग लापता हो गए थे. दक्षिण भारत के कई प्रसिद्ध स्थल भी सुनामी की भेंट चढ़ गए थे. वहीं, श्रीलंका का गाले स्टेडियम सुनामी के कारण तबाह हो गया था, जिसका बाद में निर्माण करवाया गया. 

आपदा से निपटने के  लिए सरकारी सहायता और निजी दान के रूप में 13.6 अरब डॉलर खर्च किए गए थे. अकेले तमिलनाडु के नागापट्टिनम में सुनामी के कारण 6000 से ज्यादा लोग मारे गए थे. भारत में सुनामी से मरने वालों का आंकड़ा 10 से 15 हजार के बीच आता है. 

दुनिया के सबसे बड़े रेल हादसे की वजह भी बनी सुनामी
सुनामी ने जो दंश दिए वह तो दिए ही. इसके अलावा इस आपदा ने दुनिया को उसका सबसे बड़ा रेल हादसा भी दिया. 26 दिसंबर की उस सुबह यात्रियों से भरी एक ट्रेन को सुनामी की लहरें बहा ले गईं. यह ट्रेन थी ओशियन क्वीन एक्सप्रेस,

ओशियन क्वीन एक्सप्रेस’ कही जाने वाली ‘मतारा एक्सप्रेस’ श्रीलंका के कोलम्बो और मतारा शहरों के बीच चलने वाली रेलगाड़ी थी. हमेशा की तरह 26 दिसम्बर 2004 को सुबह तकरीबन 7 बजे ओशियन क्वीन एक्सप्रेस कोलम्बो फोर्ट स्टेशन से चली. 

...और लहरों में समा गई ट्रेन
बताते हैं कि ट्रेन में 1500 यात्री टिकट के साथ और लगभग 200 बिना टिकट वाले यात्री सवार थे. ढाई घंटे का सफर तय करने के बाद सुबह  9:30 बजे यह ट्रेन जब ‘पेरालिया’ गांव पहुंची तो यहां सुनामी लहरों ने इसे अपनी चपेट में ले लिया.

ट्रेन पूरी तरह लहरों में समा गई और सभी यात्री या तो मारे गए, या लहरों में समा गए.  श्रीलंका की रेलवे इस हादसे को कभी नहीं भूल पाई. 

लगातार बज रहा खतरे का अलार्म
सुनामी जैसी आपदाएं तो खैर, दुनिया का कोई भी भुक्तभोगी नहीं भूल पाता, लेकिन स्थिति सामान्य होने के बाद हम प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी दोबारा भूल जाते हैं. इन सोलह सालों में मानव समुदाय ने कई आपदाएं झेलीं. Corona महामारी ने पूरा एक साल खराब कर दिया. आए दिन हम भूकंप के झटके झेल रहे हैं. खतरे का अलार्म लगातार बजता जा रहा है. हम सुन नहीं रहे हैं. सवाल है हम कब सुनेंगे?  

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