नई दिल्ली. वास्तव में विविधता में एकता वाला देश है हिन्दुस्तान. इस देश का एक नागरिक जहां देश का नाम लेना पसंद नहीं करता है तो वहीं दूसरा नागरिक देश की सनातनी संस्कृति की वाहक संस्कृत भाषा में अपनी चुनावी शपथ लेता है. दोनों का व्यवहार आकाश और पाताल का है किन्तु दोनों ही भारत के नागरिक और नेता हैं, दोनों ही बिहार से हैं और दोनों ही इस्लामी सम्प्रदाय के प्रतिनिधि हैं किन्तु इनमें से एक को विवादों को जन्म देने के लिये जाना जा रहा है तो दूसरे को अपने बौद्धिक उत्कर्ष और भारतीय सोच के लिये सराहा जा रहा है,
एक सौ एक सदस्यों में सबसे अलग
बिहार को अपने इस लाल पर गर्व अवश्य होगा. मुस्लिम संप्रदाय के चुनावी प्रतिनिधियों के लिये एक नई परम्परा को जन्म दिया है कांग्रेस विधायक शकील अहमद खां ने संस्कृत में शपथ लेकर. सत्रहवीं बिहार विधानसभा के पहले सत्र की पहली बैठक में सोमवार 23 नवंबर को जब नवनिर्वाचित विधायकों को सदन की सदस्यता की शपथ दिलाई गई तब संस्कृत में अपनी शपथ सम्पन्न करके गौरवपूर्वक अपना स्थान ग्रहण कर रहे शकील अहमद के लिये बिहार विधानसभा के भीतर उपस्थित सभी सदस्यों ने मेज थपथपाई और उनका हार्दिक स्वागत किया. यद्यपि सोनवर्षा से रत्नेश सदा और सीतामढ़ी से मिथलेश कुमार ने भी संस्कृत में शपथ ली किन्तु कांग्रेस के विधायक और वो भी इस्लामी संस्कृति से संबंध रखने वाले शकील अहमद खां जब संस्कृत में शपथ लेते हैं तो वे एक आदर्श की स्थापना करते हैं.
जेएनयू के छात्र रहे हैं शकील
इस लेख को लिख रहे ज़ी न्यूज़ के पत्रकार पारिजात त्रिपाठी के साथ ही अब से लगभग तीस वर्ष पूर्व उस जेएनयू में छात्र जीवन के साक्षी रहे हैं शकील अहमद जब जेएनयू को विद्वता के गौरव के लिये जाना जाता था, विवादों और देश-द्रोह के लिये नहीं.. यद्यपि 1988 से 1996 के दौर में शकील वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के छात्र नेता रहे हैं और जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं. छात्र जीवन से ही विवादों से दूर रहने वाले और अल्पभाषी शकील मृदुभाषी भी रहे हैं जिसके कारण उनकी लोकप्रियता विश्वविद्यालय में उनका प्रतिनिधित्व करती रही है. बॉलीबॉल के विशेषज्ञ खिलाड़ी रहे शकील जेएनयू में लंबे शकील के नाम से भी प्रसिद्ध रहे हैं.
छात्र जीवन में वामपंथी थे शकील
एसएफआई के छात्र नेता शकील अहमद ने जेएनयू छोड़ने के बाद कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली और 1999 में आल इंडिया कांग्रेस कमेटी में सचिव पद का उत्तरदायित्व भी उनको सौंपा गया था. इसके बाद बिहार राजनीति में सक्रिय हो कर 2015 में कदवा विधासभा क्षेत्र से विधायक के रूप में विजेता रहे थे शकील और अब 2020 में फिर यहां की जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना है. और इस विजय के अनन्तर स्वरुचिपूर्वक संस्कृत भाषा में शपथ ले कर उन्होंने इतिहास रच दिया है.
दूसरा चेहरा है अख्तरुल इमान का
जहां एक तरह कांग्रेस के शकील अहमद खां बिहार विधानसभा की सदस्यता की शपथ संस्कृत में लेकर देश भर में भूरि-भूरि प्रशंसा के पात्र बने हैं, वहीं दूसरी तरफ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के विधायक अख्तरुल इमान ने शपथ लेते समय विवाद खड़ा कर दिया और अपनी शपथ में देश का नाम बोलने पर ऐतराज जताया. उनके पूर्वाग्रह में मजहबी कट्टरपंथ नज़र आया जब उन्होंने बताया कि - वे इंडिया भी कह सकते हैं और भारत भी कह सकते हैं किन्तु देश को हिन्दुस्तान कहने में आपत्ति है उन्हें !
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