नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने और 2014 में देश के प्रधानमंत्री. मोदी की 13 वर्षों की इस सफल राजनीतिक कहानी के कई पड़ाव लोगों के बीच जाहिर हैं. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के पहले और प्रधानमंत्री बनने के बाद तक नरेंद्र मोदी एक संगठनकर्ता के रूप में कैसे हैं? एक रणनीतिकार के रूप में कैसे हैं? पहले संघ के कार्यकर्ता के रूप में फिर बीजेपी के नेता के रूप में मोदी ने रणनीतिकार के रूप में क्या कदम उठाए जो बाद में दूरगामी साबित हुए?
ऐसे सभी सवालों का जवाब तलाश रही है एक नई किताब जिसका नाम है- द आर्किटेक्ट ऑफ द न्यू बीजेपी: हाऊ नरेंद्र मोदी ट्रांसफॉर्म्ड द पार्टी (The Architect of the New BJP: How Narendra Modi Transformed the Party). इस किताब के लेखक अजय सिंह हैं जो वर्तमान में राष्ट्रपति के प्रेस सेक्रेटरी हैं. अजय सिंह चार दशक तक विभिन्न मीडिया समूहों का हिस्सा रह चुके हैं और इस दौरान उन्होंने भारतीय जनता पार्टी सहित देश के बड़े राजनेताओं की राजनीति को करीब से देखा है, इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं.
कम ज्ञात किस्सों का पिटारा है यह किताब
अजय सिंह की इस किताब में प्रधानमंत्री की रणनीतिक क्षमताओं से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जिससे या तो लोग अनभिज्ञ हैं या फिर जो कम ज्ञात हैं. जैसे 1979 में सौराष्ट्र का माछू बांध टूटा तो नरेंद्र मोदी ने संगठन के कार्यकर्ताओं का नेतृत्व कर त्रासदी पीड़ितों को मदद पहुंचाई थी. इतनी बड़ी त्रासदी में पीड़ितों को मदद मिलने के साथ एक और काम हो रहा था, संघ पर लगे हत्या का आरोप लोगों के जेहन से धुल रहा था. दरअसल अपने शुरुआती वर्षों में ही मोदी जानते थे कि गांधी की हत्या का प्रेत संघ के साथ इतना तरीके से चिपकाया गया था कि उसे छुड़ाने के लिए मेहनत के साथ आला दर्जे की रणनीति की भी जरूरत थी. लिहाजा वे संघ की सेवा के मकसद के साथ गांधी की हत्या के आरोप के दाग को अपनी बेहतर रणनीति से लगातार हल्का करते जा रहे थे.
किसान आंदोलन से गांधी के नाम को जोड़ने की रणनीतिक सूझबूझ
ऐसे ही गुजरात में बिखरे हुए किसान आंदोलन को एकजुट कर अहमदाबाद में 1 लाख किसानों को इकट्ठा कर, गांधी के नमक आंदोलन को इससे जोड़ना भी मोदी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. किसी आंदोलन को बड़ा जनमानस बनाता है, कैसे आंदोलन से आबादी का एक बड़ा हिस्सा जुड़े? इन सारी तरकीब पर नरेंद्र मोदी 80 के दशक में ही काम रहे थे.
मोदी में मानवीय व्यवहार को समझने का हुनर
इसी तरह क्राउड फंडिंग की तरकीब भी उस वक्त मोदी को ही सूझी थी. मोदी बेहतर संगठनकर्ता, प्रशासनिक कौशल से भरे हुए तो थे ही लेकिन यह किताब पूरी करते-करते आपको महसूस होगा, वे मानवीय व्यवहार को समझने का हुनर भी रखते हैं.
कैसे आगे बढ़ते गए मोदी?
दरअसल 'द आर्किटेक्ट ऑफ द न्यू बीजेपी' किताब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब 4 दशक से भी ज्यादा लंबी यात्रा की पड़ताल करती है. संघ के पूर्ण कालिक प्रचारक से संगठन के जनरल सेक्रेटरी, सीएम और फिर पीएम बनने वाले मोदी में आखिर वह क्या था जो उन्हें संगठन, पार्टी और फिर देश की जनता के भीतर स्थापित करता गया?
संघे शक्ति कलियुगे, यानी कलियुग में संगठन की शक्ति ही सर्वोपरि है- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मूल मंत्र यही है. नरेंद्र मोदी ने इस मंत्र को ऐसा गांठ बांधा कि उनका हर कदम इस मंत्र का प्रतिबिंब बनता गया. इस किताब में नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व के उन पहलुओं से जुड़े कई रोचक किस्से हैं, जो उन्हें कुशल संगठनकर्ता, नेतृत्व क्षमता का माहिर और प्रशासनिक कौशल में माहिर बनाते हैं. एक बात और वह यह भी बताते हैं कि वे संघ और भाजपा के वह सपूत हैं, जिसने दोनों को ही नए कलेवर के साथ पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया.
वाल्टर एंडरसन ने लिखी है प्रस्तावना
साउथ एशिया मामलों के एक्सपर्ट वाल्टर एंडरसन ने इस पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है, 'अजय सिंह ने एक जरूरी किताब लिखी है, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) को भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी के रूप में बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभावी संगठनात्मक कौशल का एनालिसिस करती है. इस पूरी प्रक्रिया में उनका (मोदी) खुद का करियर भी आगे बढ़ा और प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गया.'
यह किताब प्रकाशन हाउस पेंगुइन ने पब्लिश की है. किताब अभी औपचारिक रूप से रिलीज नहीं हुई है लेकिन यह ऑनलाइन उपलब्ध है. अमेजन पर इसके हार्ड कवर की कीमत 599 रुपए है.
यह भी पढ़िएः गैंगस्टर अबू सलेम को 2030 में करना होगा रिहा, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया आदेश
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.