नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पर तारीख’ वाली अदालत बने: जस्टिस चंद्रचूड़

जस्टिस चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ उस समय नाराज हो गई जब एक वकील ने एक मामले पर बहस करने के लिए समय मांगा और कहा कि उसने स्थगन के लिए एक पत्र दिया है.

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 9, 2022, 10:11 PM IST
  • वकील के स्थगन की मांग पर की टिप्पणी.
  • फिल्म दामिनी के डायलॉ का किया जिक्र.
नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पर तारीख’ वाली अदालत बने: जस्टिस चंद्रचूड़

नई दिल्ली. वकीलों के बार-बार स्थगन के अनुरोध पर नाराजगी प्रकट करते हुए सु्प्रीम कोर्ट के जस्टिस न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा ‘हम नहीं चाहते कि  सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पर तारीख’ वाली अदालत बने.’ जस्टिस चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ उस समय नाराज हो गई जब एक वकील ने एक मामले पर बहस करने के लिए समय मांगा और कहा कि उसने स्थगन के लिए एक पत्र दिया है.

पीठ ने कहा, ‘हम सुनवाई को स्थगित नहीं करेंगे. अधिक से अधिक, हम सुनवाई टाल सकते हैं लेकिन आपको इस मामले पर बहस करनी होगी. हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट ‘तारीख पर तारीख’ वाली अदालत बन जाए. हम इस धारणा को बदलना चाहते हैं.’ 

'अदालत की प्रतिष्ठा बनी रहे'
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ‘दामिनी’ फिल्म के एक चर्चित संवाद को दोहराते हुए दीवानी अपील में एक हिंदू पुजारी की ओर से पेश वकील से कहा, ‘यह शीर्ष अदालत है और हम चाहते हैं कि इस अदालत की प्रतिष्ठा बनी रहे.’ 

दामिनी फिल्म में था 'तारीख पर तारीख' डायलॉग
‘दामिनी’ फिल्म में अभिनेता सनी देओल ने मामले में लगातार स्थगन और नयी तारीख दिए जाने पर आक्रोश प्रकट करते हुए ‘तारीख पर तारीख’ वाली बात कही थी. पीठ ने कहा कि जहां न्यायाधीश मामले की फाइल को ध्यान से पढ़कर अगले दिन की सुनवाई की तैयारी करते हुए आधी रात तक तैयारी करते रहते हैं, वहीं वकील आते हैं और स्थगन की मांग करते हैं.

हस्तक्षेप से किया इंकार
पीठ ने सुनवाई रोक दी और बाद में, जब बहस करने वाले वकील मामले में पेश हुए, तो पीठ ने अपील में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और पुजारी को हाईकोर्ट का रुख करने के लिए कहा. एक अन्य मामले में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक वकील के खिलाफ एक हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को यह कहते हुए हटाने से इनकार कर दिया कि हाईकोर्ट को अदालत कक्ष में अनुशासन बनाए रखना होता है और शीर्ष अदालत के लिए उनके गैर पेशेवर आचरण पर उन टिप्पणियों को हटाना उचित नहीं होगा.

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