Kerala में लाया गया उल्टा अध्यादेश जो मरेगा अपनी मौत

उल्टा अध्यादेश ला कर सिद्ध किया है भारत के केरल प्रान्त की सरकार ने कि उनका डीएनए ही उल्टा है, और इसमें कुछ किया नहीं जा सकता है. अन्य शब्दों में, यह देश की केन्द्रीय सरकार को सीधी चुनौती भी है कि दम है तो कीजिये हमारा कोई संवैधानिक समाधान..

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Nov 24, 2020, 09:03 PM IST
  • अदालतें कर देंगी अमान्य
  • ये है केरल पुलिस ऐक्ट की धारा 118 (A)
  • ये है मीडिया के अधिकार का हनन
  • पांच साल पहले रद्द हुआ था ऐसा क़ानून
  • पहले लाये थे ‘नागरिकता संशोधन कानून’ विरोधी कानून
  • असली एजेंडा है विपक्ष और मीडिया पर नियंत्रण
Kerala में लाया गया उल्टा अध्यादेश जो मरेगा अपनी मौत

नई दिल्ली.   स्थिति अत्यंत शोचनीय है. यह एक निरंकुशता की सरकारी परंपरा की शुरुआत है और दुखद होगा यदि बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों की सरकारों ने भी इसी उलटबन्सी का अनुसरण किया तो राष्ट्रीय एकता के सूत्र दुर्बल ही नहीं अशक्त भी हो सकते हैं जिसके दूरगामी परिणाम भयावह हो सकते हैं. यहां विचारणीय विषय ये है कि केरल में लाया गया है एक उल्टा अध्यादेश.

अदालतें कर देंगी अमान्य 

सर्वप्रथम समाधान तो न्यायालय ही कर देगा केरल की वामपंथी सरकार द्वारा लाये गए इस अध्यादेश का. अदालतें इसको असंवैधानिक घोषित करने में किञ्चिदपि विलम्ब नहीं करेंगे. उसके बाद राज्य विधानसभा में भी विपक्ष राज्य सरकार पर हल्ला बोल करेगा. किन्तु मूल प्रश्न ये है कि राज्य सरकार किस दिशा में बढ़ रही है? उसकी मंशा क्या है?

केरल पुलिस ऐक्ट की धारा में संशोधन

केरल सरकार इस अध्यादेश के माध्यम से केरल पुलिस अधिनियम में संशोधन करना चाहती है.  अध्यादेश के द्वारा पुलिस ऐक्ट की धारा 118 (A) में परिवर्तन करके महिलाओं और बच्चों पर होनेवाले शाब्दिक हमलों से उन्हें बचाने की बात कही जा रही है. केरल पुलिस एक्ट की ये धारा 118 (ए) के माध्यम से तथाकथित दोषी  व्यक्ति को तीन वर्ष का कारावास और दस हजार रु. का जुर्माना या दोनों ही भुगतने होंगे. आरोप इतना पर्याप्त होगा कि इस व्यक्ति ने ''किसी व्यक्ति या समूह को धमकाया है, गालियां दी हैं,  शर्मिंदा किया है या बदनाम किया है''

ये है मीडिया के अधिकार का हनन 

केरल सरकार केरल पुलिस अधिनियम में अनुच्छेद 118 (ए) जोड़ना चाहती है, जिसके अंतर्गत - "यदि किसी ने किसी व्यक्ति को धमकाया, उसका अपमान किया अथवा उसकी मानहानि के इरादे से किसी सामग्री की रचना की, उसे प्रकाशित किया अथवा किसी माध्यम से उसका प्रसार किया तो दोषी को पांच साल का कारावास या दस हज़ार रुपये का अर्थदंड अथवा दोनों ही भुगतने होंगे."

पांच साल पहले रद्द हुआ था ऐसा क़ानून 

इसी तरह का एक क़ानून जो कि इससे भी अधिक अशक्त था, वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था. दरअसल यह वर्ष 2000 में बने सूचना तकनीक कानून की धारा 66 ए का मामला था जिसे अदालत ने संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया था. केरल के इस अध्यादेश में तो किसी खबर या लेख या बहस के कारण अगर किसी के खिलाफ कोई गलतफहमी फैलती है या किसी को मानसिक कष्ट पहुंचता है तो उसी आरोप में पुलिस उसकी सीधी गिरफ्तारी कर सकती है. इस अध्यादेश से पुलिस को इतने अधिकार मिल गये हैं कि उसे किसी को गिरफ्तार करने के लिये किसी शिकायत या एफआईआर की भी जरूरत नहीं है. 

पहले लाये थे सीएए विरोधी कानून

केरल की सरकार का ये कदम वामपंथ स्टालिन वाले रुस और माओ वाले चीन की याद दिलाने लगा है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह अध्यादेश एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिया लाया जा रहा है जो ऊपर से देखने पर बिना सोचे-समझे जारी किया गया नजर आता है. इससे पहले इसी तरह से ऊपर से गैर-जिम्मेदाराना दिखने वाला कदम केरल की वामपंथी सरकार ने ‘नागरिकता संशोधन कानून’ के विरुद्ध विधानसभा में प्रस्ताव पारित करके किया था जो मूल रूप से राष्ट्र विरोधी एजेन्डे को समर्थन देने वाला है किन्तु संविधान की यह दुर्बलता पहले कभी चिन्हित नहीं की गई थी. पहले कभी नहीं सोचा गया कि राज्यों की संघीय सरकार के निर्णय राज्यों द्वारा स्वीकार न किये गये तो किस तरह का संवैधानिक संकट उत्पन्न हो सकता है?

एजेंडा है विपक्ष और मीडिया का दमन

 

परदे के पीछे केरल की कम्युनिस्ट सरकार की मंशा इस कानून के ज़रिये पत्रकारों, लेखकों और विपक्षी नेताओं को डराने और फंसाने की है. लेकिन केरल सरकार ने चालाकी ऐसी दिखाई है कि आरिफ मोहम्मद खान जैसे अनुभवी राजनीतिज्ञ और क़ानून के ज्ञाता राज्यपाल ने निश्शंक भाव से ऐसे अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए. पहले तो उन्होंने भी इस अध्यादेश को छह हफ्ते रोकने की कोशिश की फिर जब उन्होंने देखा कि राज्य में और केंद्र में सभी विपक्षी नेताओं ने चुप्पी साधी हुई है तो उन्होंने भी अपने सर पर ये तनाव नहीं लिया और हस्ताक्षर कर दिए. 

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