नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि ‘अच्छे एवं पढ़े-लिखे’ लोग राजनीति से जुड़े और देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जायें. उन्होंने किशोरों से राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेने का आह्वान किया.
नकारे गए लोग ही राजनीति में शामिल होते हैं?
उन्होंने देश की राजनीति को आकार प्रदान करने में सुभाष चंद्र बोस, अरविंद घोष, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश, मोरारजी देसाई जैसे विद्वान नेताओं के योगदान को याद किया. उन्होंने ग्रेटर नोएडा स्थित बिम्सटेक कॉलेज में ‘बिजनेस लिटरेचर फेस्टिवल’ के उद्घाटन सत्र के दौरान छात्रों के साथ बातचीत करते हुए कहा, 'हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि जीवन के अन्य क्षेत्रों से नकारे गए लोग ही राजनीति में शामिल होते हैं. यह एक गलत धारणा है.'
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने आईसीएस छोड़ी, अरविंद घोष ने भी आईसीएस छोड़ी, राम मनोहर लोहिया ने जर्मनी से एमए किया फिर राजनीति में आ गए.
भूपेंद्र यादव ने इन नेताओं का दिया उदाहरण
उन्होंने अरुण जेटली, एस जयशंकर, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल का उदाहरण देते हुए कहा कि राजनीति में काफी पढ़े-लिखे लोग हैं तथा वे हर विधा को बखूबी से जानते और पहचानते हैं. उन्होंने कहा कि मीडिया में नेताओं के प्रति नकारात्मक खबरें आती है, इसलिए आम जनता के मन में यह छवि बनी है कि राजनीति में कम पढ़े-लिखे लोग आते हैं.
उन्होंने कहा कि उनका यह मानना है कि राजनीति में अभी प्रतिभाशाली लोगों के लिए खासी जगह है. उन्होंने कहा, '...आप में से कोई 25 साल बाद मेरी जगह होगा और देश को आगे ले जाने के लिए काम करेगा. अच्छे एवं पढ़े-लिखे लोगों की राजनीति में जरूरत है ताकि भारत की यात्रा अच्छे नेताओं के साथ और अधिक ऊंचाई तक जाए. मोदी जी भी यही चाहते हैं.'
भूपेंद्र यादव ने 21 साल तक जमीन पर रहकर किया काम
भूपेंद्र यादव ने अर्थशास्त्री इला पटनायक के साथ मिलकर ‘द राइज ऑफ द बीजेपी : द मेकिंग ऑफ द वर्ल्डस लार्जेस्ट पार्टी’ नामक पुस्तक का लेखन किया है. यह पुस्तक भगवा पार्टी की यात्रा का विवरण पेश करती है.
मंत्री ने कहा, 'मैंने 21 साल तक जमीन पर रहकर काम किया है. इसलिए मैं चाहता था कि भारतीय जनता पार्टी के संघर्ष एवं विचार को एक दस्तावेज तथा कहानी के रूप में सामने लाएं, लेकिन अगर मैंने इसे अकेले लिखा होता तो यह एक भाजपा कार्यकर्ता के नजरिये के तौर पर सामने आता. इसलिए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से शिक्षित इला पटनायक के साथ मिलकर पुस्तक का लेखन किया.'
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