सवाल में डाला था 'मोहम्मद' का नाम, PFI ने हाथ काटा, अब मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार

करीब 12 साल पहले PFI ने ऐसी हरकत की थी जिसकी चर्चा देशभर में हुई थी. तब TJ जोसेफ नाम के एक प्रोफेसर को PFI कार्यकर्ताओं ने लगभग मौत के घाट पर पहुंचा दिया था. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 1, 2022, 11:06 PM IST
  • बदले के लिए चार महीने का इंतजार
  • 12 साल पहले PFI ने की थी हरकत
सवाल में डाला था 'मोहम्मद' का नाम, PFI ने हाथ काटा, अब मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार

नई दिल्ली: देश में विभिन्न घटनाओं को लेकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया फिर चर्चा में है. उदयपुर हत्याकांड से लेकर कर्नाटक में हुई बीजेपी के युवा नेता तक ही हत्या में PFI लिंक की जांच की जा रही है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने तो इस संगठन के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत भी दे दिए हैं. दरअसल दक्षिण भारत में PFI बीते कई वर्षों से चर्चा का विषय रहा है. करीब 12 साल पहले PFI ने ऐसी हरकत की थी जिसकी चर्चा देशभर में हुई थी. तब TJ जोसेफ नाम के एक प्रोफेसर को PFI कार्यकर्ताओं ने लगभग मौत के घाट पर पहुंचा दिया था. 

घटना 2010 की है. केरल के थोडूपूझा स्थित न्यूमैन कॉलेज में जोसेफ एक लेक्चरर के रूप में पढ़ा रहे थे. तब क्लास टेस्ट में सिर्फ एक सवाल रखने के लिए जोसेफ का दाहिना हाथ PFI कार्यकर्ताओं ने काट डाला था. इसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई. लेकिन जोसेफ ने जिजिविषा दिखाई और बाएं हाथ से एक किताब लिखी जिसे इस साल केरल में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है. 

2010 में क्या हुआ था
न्यूमैन कॉलेज में मलयालम भाषा के लेक्चरर जोसेफ ने इंटरनल एक्जाम के लिए एक प्रश्न पत्र तैयार किया था. इसमें एक सवाल थिराकथायुडे रीति शास्त्रम् नाम की किताब से रखा. यह किताब फिल्मकार पीटी कुंजू मुहम्मद ने लिखी है जो सीपीएम के पूर्व विधायक भी थे. यह सवाल एक अनाम कैरेक्टर और भगवान के बीच बातचीत से जुड़ा हुआ था. इस सवाल में जोसेफ ने सिर्फ इतना बदलाव किया कि उन्होंने अनाम कैरेक्टर का नाम 'मोहम्मद' कर दिया. यह बदलाव उन्होंने लेखक के नाम को ध्यान में रखकर किया था. लेकिन एक शब्द बदलने से जोसेफ की पूरी जिंदगी ही बदलने वाली थी. 

बदले के लिए चार महीने का इंतजार
क्लासरूम में एक स्टूडेंट ने इस सवाल पर आपत्ति जताई. उस वक्त इसे लेकर थोड़ा विवाद हुआ लेकिन फिर मामला शांत हो गया. करीब चार महीने बाद जोसेफ पर बदले का अंबार टूटा. दरअसल उस सवाल को लेकर कुछ लोग मुस्लिम समुदाय को भड़का रहे थे. हमलावरों ने जोसेफ से बदला लेने के लिए चार महीने का इंतजार किया. 

हाथ काटा, जांघों पर गंभीर हमला
2010 के जुलाई महीने में जोसेफ एक दिन संडे मास के बाद अपनी मां और बहन के साथ चर्च से लौट रहे थे. इसी वक्त उनकी कार पर करीब 8 लोगों ने तलवार और चाकुओं से हमला किया. हमलावरों ने कार के शीशे तोड़े और जोसेफ का दाहिना हाथ काट डाला. उनकी दाहिनी जांघ पर भी बेहद गंभीर हमला किया गया. लहुलुहान जोसेफ की बहन के साथ भी बदतमीजी की गई और जोसेफ को साफ संदेश दिया गया कि उनसे बदला लिया गया है. निकलने के पहले हमलावरों ने एक बम भी फोड़ा था.

नौकरी छूटी, समाज से बहिष्कृत, पत्नी का सुसाइड
जोसेफ के दिन और बुरे तब हुए जब उन्हें कॉलेज की नौकरी से भी निकाल दिया गया. साइरो मालाबार चर्च की तरफ से जारी एक सर्कुलर में जोसेफ को ही जिम्मेदार ठहराया गया. सभी पार्टियों के विरोध के बाद जोसेफ को समाज निकाला दे दिया गया. तब राज्य के शिक्षा मंत्री एमए बेबी ने जोसेफ की हरकत को 'बेवकूफाना' करार दिया था. जोसेफ और उनके बेटे को केरल पुलिस ने प्रताड़ित किया था. 2014 में जोसेफ पर तकलीफों का अंबार टूटा और आर्थिक-सामाजिक दिक्कत झेलने के कारण उनकी पत्नी ने सुसाइड कर लिया. 

तकलीफों के बीच लिखी किताब
जोसेफ ने इन तकलीफों के बीच बाएं हाथ से ही पूरा वाकया किताब के रूप में लिखने की ठानी. 300 पन्नों की यह किताब जोसेफ ने मलयाली भाषा में लिखी जिसका नाम अट्टूपोकथा ओरमकल है. साल 2018 में उन्होंने यह किताब पूरी की. इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद नंदकुमार. के. ने किया है और इसका टाइटल है- A Thousand Cuts: An Innocent Question and Deadly Answers.

जोसेफ पर हमला करने वालों को कोर्ट से सजा
जोसेफ पर हमले के मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने की थी. साल 2015 में इस मामले में कोर्ट का निर्णय आया था जिसमें 13 लोगों को सजा सुनाई गई थी. सबके संबंध पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से थे.

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