नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना का गठन 8 अक्टूबर 1932 को हुआ था.वायुसेना दिवस पर अलग अलग विमानों की उड़ान ने लोगों को रोमांचित किया.इन उड़ानों ने देश की जनता को आश्वस्त किया कि इन वायुवीरों की वजह से हमारे देश की सरहदें सुरक्षित हैं.लेकिन इस बार वायु वीरांगनाएं भी अपना परचम लहरा रही हैं.
वायुसेना का आदर्श वाक्य 'नभ: स्पृशं दीप्तम' है.इसका अर्थ होता है "आप का रूप आकाश तक दमक रहा है.आकाश तक अपनी पहुंच बनाने और खुद की चमक दमक से दुनिया को परिचित करवाने में महिला शक्ति को एक लंबा समय लग गया.
वायुसेना का हिस्सा बनने को लेकर महिलाओं की दुविधा
कुछ वर्ष पहले जब भारतीय वायुसेना के इतिहास में पहली बार पायलट कैडेट अवनि चतुर्वेदी, फ्लाइट कैडेट मोहना सिंह, फ्लाइट कैडेट भावना कांथा भारतीय वायुसेना में पहली महिला लड़ाकू पायलट के तौर पर शामिल हुईं तो देश को काफी उम्मीदें जगी,कई लड़कियों ने एयरफोर्स को एक बेहतर करियर ऑप्शन के तौर पर देखना शुरु किया लेकिन बाद के बैच में महिला लड़ाकू पायलट नहीं दिख रहीं.इसकी एक वजह लड़कियों को वायुसेना को एक करियर के तौर पर लेने के बारे में जानकारी का न होना भी है. साथ ही तमाम तरह की दुविधा भी है.
ऐसे बढ़ेगा वायुसेना में महिला शक्ति का वर्चस्व
वायुसेना में महिलाओं की स्थिति को लेकर शॉर्ट सर्विस कमिशंड ऑफिसर के तौर पर 11 साल एयरफोर्स में अपनी सेवा दे चुकीं रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर डिंपल रावत से जी हिंदुस्तान ने विस्तार से जानकारी ली.
सवाल: क्या लड़कियों को बड़ी संख्या में एयरफोर्स में भर्ती होना चाहिए ?
स्क.ली. डिंपल रावत: निश्चित रुप से लड़कियों को एयरफोर्स में आना चाहिए क्योंकि संख्या बल पर नजर डाले तो सिर्फ 8.5 फीसदी महिलाएं ही हैं. 2019 के एक सर्वे के मुताबिक बड़ी संख्या में महिलाएं नौकरी कर रहीं है. लेकिन सिर्फ 10 फीसदी महिलाएं ही लीडरशिप में हैं.रक्षा बलों में अधिक महिलाओं को लीडरशिप करने की काफी गुंजाइश है. बल्कि आज वो समय है जब हमें ऑफिसर के अलावा अन्य स्तरों पर भी महिलाओं को शामिल करने के बारे में सोचना चाहिए.
महिला अधिकारी की चुनौतियां
वायुसेना अधिकारी के तौर पर रिटायर्ड स्क्वाड्रन लीडर डिंपल रावत का अनुभव बहुत ही शानदार रहा है. इनके मुताबिक ये एक ऐसी नौकरी है, जहां एडवेंचर और चुनौतियां हर कदम पर आपका स्वागत करती है. जिसकी वजह से आपको मजबूती से प्रदर्शन के लिए तैयार होते हैं. डिंपल 1998 में एयरफोर्स में शामिल हुईं और इन्हें कारगिल और ऑपरेशन पराक्रम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला. इनका कहना है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए सेवा करने का अवसर आपके एक अलग ही तरह का संतोषजनक सुखद अनुभूति देता है. इसके अलावा नौकरी के दौरान आपको अलग अलग जगहों और वहां की संस्कृति से रुबरु होने का मौका मिलता है.कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं की तरह ही चुनौतियां सेना में भी है.
महिलाओं के लिए मां बनने का समय सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है, बच्चों के लालन पालन को लेकर चिंता होना एक मां के लिए स्वाभाविक होता है,चाहे वो किसी भी सेक्टर में नौकरी कर रही हों लेकिन सेना में थोड़ा और चुनौतीपूर्ण होता है.इसलिए एयरफोर्स में महिला अधिकारियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एयरफोर्स स्टेशन पर क्रेच शुरु करना चाहिए.बच्चों की देखभाल के लिए एक मजबूत सपोर्टिंग सिस्टम की जरूरत तो होती है.
पुरुष साथियों का रवैया
1999 में पहली यूनिट में डिंपल इकलौती महिला ऑफिसर थीं. इनके पुरुष साथियों ने न सिर्फ इनके साथ समान व्यवहार किया बल्कि काम के दौरान कम्फर्टेबल माहौल भी दिया. पुराने दिनों को याद करती हुई डिंपल का कहना है कि एयर कमोडोर आर. झा ने न केवल हौसला बढ़ाया बल्कि एक मजबूत अधिकारी बनने में भी हर संभव मदद की. इन्होंने कभी किसी तरह के भेदभाव का अनुभव नहीं किया.इसी का नतीजा था कि डिंपल को बेस्ट एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग ऑफिसर का अवार्ड मिला.
एक महिला अधिकारी का सर्वश्रेष्ठ निकालने के पीछे स्टेशन अधिकारी की भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
सर्विस के दौरान बराबरी का अधिकार
ऐसी गलतफहमी है कि सेना में महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं मिलता है. लेकिन जिन्होंने खुद एयरफोर्स में सेवा दी है- बकौल उनके समय के साथ माहौल काफी बदला है. पहले परमानेंट कमीशन महिलाओं के लिए नहीं था. लेकिन अब खुशी की बात है कि परमानेंट कमीशन मिलने लगा है. जिससे जॉब सिक्योरिटी का भरोसा कायम हुआ है. अब उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि 10 साल बाद क्या करेंगे ? रिटायर होने के बाद डिंपल बॉर्को इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड में डीजीएम एआर (DGM HR) के पद पर कार्यरत हैं. लेकिन अब परमानेंट कमीशन होने से महिलाओं के लिए बेहतर स्थिति हो रही है उन्हें दूसरे करियर ऑप्शन के बारे में नहीं सोचना है.
वहीं महिलाओं को बराबरी का हक मिलता है बात चाहे प्रमोशन (Promotions)में हो या फिर पोस्टिंग की ये पूरी तरह आपकी क्षमता और प्रदर्शन के हिसाब से ही होता है (The promotions are totally based on the capabilities, potential and performance). पुरुष ऑफिसर के साथ कड़ी प्रतियोगिता के बीच कई महिला ऑफिसर्स अपनी मेरिट के दम पर ग्रुप कैप्टन भी बनीं.
डिंपल खुद एक उदाहरण हैं. इन्हें ट्रेनिंग सेंटर में गोल्ड मेडल मिला था. एयरफोर्स में 11 साल सेवा देने के बाद कह रहीं हैं कि यहां महिला पुरुष में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है.
बल्कि सेना में आप महिला पुरुष नहीं बल्कि सिर्फ एक ऑफिसर होते हैं. जिसका काम देश की सरहदों की रक्षा करना और करवाने की प्लानिंग करना होता है चाहे ग्राउंड ड्यूटी में हो या फिर आसमान में प्लेन उड़ाना हो.
अगर आप वायु वीरांगना बनना चाहती हैं तो ऐसे करें तैयारी
एयरफोर्स का हिस्सा बनने के लिए कुछ क्वालिफिकेशन की जरूरत होती है. एडमिन, टेक्निकल, ATC, लॉजिस्टिक, फ्लाइंग जैसी ब्रांच में जाने के लिए लिखित परीक्षा होती है, जिसे AFCAT कहते हैं. इसके अलावा 5 दिन की SSB (service selection board) परीक्षा होती है,जिसमें सॉकोलॉजिकल,ग्रुप और व्यक्तिगत टॉस्क के अलावा पैनल इंटरव्यू होता है.जिसके लिए दो तरह की तैयारी की जरूरत होती है.
1-पहला टेक्निकल एस्पेक्ट (Technical aspect) ( Air force combined aptitude test) जिसमें आपको अपने विषय की पूरी जानकारी होनी चाहिए.
2. सेल्फ मास्टरी (Self-mastery ) जिसमें सॉफ्ट एंड लाइफ स्किल (SOFT AND LIFE SKILL ) टेस्ट की जाती है,जैसे सुनने की क्षमता(listening),मुश्किल समय में निर्णय लेने की क्षमता(decision making in tough times),लीडरशिप,समस्या का समाधान (problem solving and service before self approach).
डिंपल एयरफोर्स में भविष्य बनाने की इच्छुक लड़कियों को सलाह देती हैं कि आप जैसी हैं वैसी ही बने रहिए बनावटीपन से बचे (try to be authentic and be yourself).
अधिक जानकारी के लिए careerairforce.nic.in पर लॉगिन करें जहां हर जानकारी मिल जाएगी.
जिस तरह सरकार लड़कियों को सेना की सेवा में जाने के बेहतर मौके मुहैया करवा रही है ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि जब हम 100वां वायुसेना स्थापना दिवस मना रहे होंगे उस समय महिला शक्ति अपने पूरे दमखम के साथ सरहदों की रक्षा में जुटी होगी और आधी आबादी का अनुपात भी बढ़ेगा.
ये भी पढ़ें- भारतीय वायुसेना की पूरी कहानी..सिर्फ एक क्लिक में
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