NCERT की किताबों को फिर से लिखना बहुत जरुरी, ये हैं 4 प्रमुख कारण

भारतीय बच्चों को उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत से काट देने की साजिश हर रोज की जाती है. लेकिन सभी मौन खड़े देखते रहते हैं. बच्चों के कोमल मन को गलत इतिहास के जरिए भारतीयता से दूर किया जा रहा है. NCERT की किताबें हमारे 'संस्कृति और शिक्षा संबंधी मौलिक अधिकार' के भी विरुद्ध हैं. क्योंकि यह गलत नजरिया थोपती हैं और स्वतंत्र विचार का अवसर नहीं देतीं. 

Written by - Anshuman Anand | Last Updated : Jul 21, 2020, 08:40 AM IST
    • इतिहास को फिर से लिखने की जरुरत
    • बच्चों के कोमल मन में भरी जा रही है गलत जानकारी
    • भारत की विरासत पर गर्व की बजाए शर्म करना सिखाया जा रहा है
NCERT की किताबों को फिर से लिखना बहुत जरुरी, ये हैं 4 प्रमुख कारण

नई दिल्ली: एनसीईआरटी यानी राष्ट्रीय शैक्षिक और अनुसंधान परिषद् की वैसे तो 182 किताबें प्रचलन में हैं. लेकिन उसकी इतिहास की पुस्तकें विशेष रूप से विवादित हैं. इसकी असली वजह ये है कि NCERT की इतिहास की किताबें तथ्य देने की बजाए गलत नजरिया पेश करने की कोशिश करती हैं. लेकिन इनका आधार बड़ा ही खोखला है. पहली नजर में ही यह साफ दिखता है कि चंद इतिहास लेखक करोड़ो बच्चों के उपर अपना एजेन्डा थोपने की कोशिश कर रहे हैं.  

1. NCERT किताबों में गलत नजरिया थोपने की कोशिश
आज भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की पूरी दुनिया कायल हो रही है. लेकिन हमारे युवा पीढ़ी को इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. इसकी मूल वजह है हमारी शैक्षणिक किताबें. जो भारतीय समाज में फूट डालने और और बच्चों को उनकी विरासत पर गर्व की बजाए शर्म करना सिखाती हैं. भारतीय विचारक नीरज अत्री ने भारतीय इतिहास लेखकों कुत्सित मंशा पर 'ब्रेनवाश्ड रिपब्लिक' नाम की एक पुस्तक लिखी है. उदाहरण के तौर पर भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति पर इतिहास की किताब का ये अंश देखिए-


इस आलेख के जरिए ये साबित करने की कोशिश की गई है कि भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति खराब थी. हालांकि लेखक इस तथ्य को छिपा नहीं पाता है कि प्रभावती गुप्त नाम की महिला शासक के पास पर्याप्त अधिकार और संपत्ति उपलब्ध थी. लेकिन यहां जबरन कुतर्क देते हुए प्रभावती की स्थिति को अपवाद साबित करने की कोशिश की गई है. लेखक के अनुसार 'संस्कृत धर्मशास्त्रों' के अनुसार महिलाओं को संपत्ति का अधिकार नहीं था. लेकिन वह यहां उस धर्मशास्त्र का नाम नहीं छिपा ले जाते हैं. इस पन्ने को गौर से देखें तो इसमें 'संभवत:' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. यानी करोड़ो बच्चों के मनोमस्तिष्क को प्रभावित करने वाला आलेख लिखने वाले इतिहासकार को खुद ही नहीं पता कि वह जो लिख रहे हैं वह सही या नहीं. 
गलत इतिहास पढ़ाए जाने का दूसरा उदाहरण देखिए. इसमें भारतीय समाज के जातिगत भेद को जबरन उभारने की कोशिश की गई है. 


यहां भी 'संभवत:' शब्द का इस्तेमाल किया गया है. यानी लेखक को खुद ही यह पता नहीं है कि जाति व्यवस्था जन्म से है या नहीं. 
भारतीय इतिहास लेखन की विसंगति समझने के लिए आप यह एक और पन्ना देख सकते हैं. यहां भी भारतीय समाज के जातिगत विभेद को उभारा गया है. 


लेकिन इसमें लेखक यह स्वीकार करने के लिए मजबूर हो जाता है कि ब्राह्मणों के बनाए जटिल सामाजिक नियम पूरे भारत में लागू नहीं होते थे. लेकिन यह किन क्षेत्रों में लागू होते थे. कहां इनका पालन नहीं होता था. इस बारे में विस्तार से जानकारी देने की जरुरत नहीं समझी गई है. बस अधकचरा नजरिया पेश करके लेखक अध्याय पूरा कर देता है. 
इन आलेखों को देखकर साफ पता लगता है कि इतिहास लिखने वालों का उद्देश्य सही जानकारी छात्रों तक पहुंचाना नहीं है. बल्कि उनका मकसद अतीत की काल्पनिक गलतियों पर शर्म महसूस कराना है. खास बात ये है कि भारतीय इतिहास जिन विद्वानों ने लिखा है. उनमें से कोई भी पालि, प्राकृत, ब्राह्मी, खरोष्ठी जैसी प्राचीन भाषाओं का जानकार नहीं था. बिना प्राचीन भाषाओं की जानकारी हासिल किए ये कथित इतिहासकार और विद्वान प्राचीन भारतीय इतिहास और सामाजिक जीवन पर वो कैसे सही तथ्य रखे गए होंगे? यह आप खुद ही सोच लीजिए. 
    
भारतीय इतिहास लेखकों के इस गलत उद्देश्य के बारे में डॉ. नीरज अत्री के विचार आप यहां क्लिक करके जान सकते हैं.  

2. लोगों का ध्यान खींच रही हैं ये गलतियां 

ऐसा नहीं है कि NCERT के इतिहास लेखन में जानबूझ कर की गई इन गलतियों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. कई जाने माने लोग लगातार इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. दो साल पहले मशहूर अभिनेत्री रवीना टंडन ने अपनी बेटी की किताब में कुछ ऐसी ही विसंगतियां देखी थीं. जिसके बाद उन्होंने ट्विटर के जरिए इसपर लोगों का ध्यान दिलाया था.

रवीना टंडन का लाइव ट्विट देखने के लिए यहां क्लिक कर सकते हैं. 
रवीना टंडन ने जिस कुतुबुद्दीन ऐबक को महान बताए जाने पर उंगली उठाई थी. उसे NCERT के इतिहास लेखकों ने महान और गरीबों का मददगार साबित करने की कोशिश की. लेकिन अगली ही पंक्तियों में वह सच नहीं छिपा पाए और आखिरकार उन्हें बताना ही पड़ा कि इस अत्याचारी शासक ने हजारों मंदिर तोड़ दिए थे. वामपंथी लेखकों ने बड़ी सफाई से ये बात छिपा ली कि हजारों मंदिर तोड़े जाने के दौरान हजारो आस्थावान हिंदुओं की हत्या भी की गई थी.  
रवीना टंडन के ट्वीट पर हजारों लोगों की प्रतिक्रिया सामने आई. कई लोगों ने इस तरह के अपने अनुभव भी शेयर किए. रवीना की एक दोस्त ने मध्यकालीन शासकों के बर्बर अत्याचारों और सोमनाथ मंदिर तोड़े जाने से संबंधित कुछ तथ्य और गलतियों के बारे में ट्विट किया.  


स्वाति गोयल शर्मा का लाइव ट्विट देखने के लिए यहां क्लिक करें
रवीना ने जिस कुतुबुद्दीन ऐबक के महिमामंडन पर उंगली उठाई थी. उसके अत्याचार की निशानियां अब तक मिलती हैं. नीचे दिए गए इस वीडियो में आप कुतुब मीनार का सच देख सकते हैं-

- दिल्ली के कुतुबमीनार के साथ कुतुबद्दीन ऐबक का नाम जोड़ा गया है. सन् 1194 में उसने यहां पर 27 प्राचीन हिंदू मंदिरों और वेधशालाओं को तुड़वाकर उनकी जगह पर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई. 

- मस्जिद के आसपास के इलाकों में उन मंदिरों के टुकड़े आज भी दिखाई देते हैं. क्योंकि मस्जिद बनाते वक्त कुतुबुद्दीन ऐबक ने पुराने प्रतीकों को इसलिए छोड़ दिया था कि हिंदुओं की अगली पीढ़ियां अपनी हार की निशानियां देख सकें. 
- कुतुबद्दीन ऐबक ने अलीगढ़ में युद्ध के बाद मारे गए लोगों की लाशों को कुत्तों के खाने के लिए फेंक दिया था. 
-अजमेर में कुतुबद्दीन ऐबक ने राजा विशालदेव के संस्कृत विद्यापीठ को तुड़वाकर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम की मस्जिद बनवा दी. 
-कुतुबद्दीन ने 1196 में गुजरात पर हमला किया और 50 हजार निरपराध लोगों की हत्या कर दी तथा 20 हजार औरतों बच्चों को गुलाम बनाकर बेच दिया. 
- कुतुबद्दीन ऐबक ने साल 1202 में कालिंजर के युद्ध के बाद वहां स्थित कई मंदिरों तो तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी और वहां की सनातनी जनता पर घोर अत्याचार किया. 50 हजार जवानों, बच्चों और स्त्रियों को गुलाम बनाकर उनपर अमानवीय अत्याचार किए गए. 
(ये तथ्य काल्पनिक नहीं बल्कि 12वीं सदी के इतिहासकार हसन निजामी ने अपनी किताब में कुतुबद्दीन के जुल्मों का विस्तार से वर्णन किया है. लेकिन NCERT के इतिहासकारों ने इसे छिपाकर कुतुबद्दीन को महान बताने की शर्मनाक कोशिश की)

3. क्यों की गई ये साजिश 
भारतीय छात्रों को उनकी विरासत से काटने की साजिश बेहद स्पष्ट है. एनसीईआरटी की किताबें इस बात का लिखित सबूत हैं कि कैसे पश्चिमी नजरिए के वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीयों को उनके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से काटने की कोशिश की. ऐसे में सवाल उठता है कि इसकी वजह क्या है?
दरअसल भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जो हजारों सालों से लगातार चली आ रही एक आध्यात्मिक चेतना से जुड़ा है. जो उसके संस्कारों में बसा हुआ है. दुनिया का ऐसा कोई वैज्ञानिक, दार्शनिक और आध्यामिक सूत्र नहीं हो भारत के पास उपलब्ध नहीं हो. 
इसके बावजूद भारत को सैकड़ों सालों की गुलामी का शिकार होना पड़ा. वह इसलिए नहीं कि भारत कमजोर था. बल्कि इसलिए कि भारतीयों ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रुप से इतनी उन्नति कर ली थी कि उन्हें लगता था कि पूरी दुनिया उनके जैसी ही सुसभ्य है. 
इस्लामी और पश्चिमी बर्बरों ने भारतीयों की इसी सदाशयता का लाभ उठाकर उन्हें गुलाम बनाने में सफलता हासिल की. लेकिन उन्हें ये हमेशा डर लगा रहा कि अगर भारत अपनी प्राचीन विरासत से परिचित हो गया तो वह उसे दुनिया पर राज करने से रोक नहीं पाएंगे. 
वर्तमान समय में कुछ ऐसा ही हो रहा है. पिछले 7 सालों में ही भारत ने पूरी दुनिया के सामने हजारों साल पुरानी बहुत सी जड़ताओं से निजात पा लिया है. 
इसी प्रक्रिया को रोकने के लिए आजादी के बाद भी कई दशकों तक कोशिश जारी रही. जिसकी कड़ी में हमारे इतिहास को तोड़ा मरोड़ा गया. लेकिन बदले वक्त में सच का सामना बेहद जरुरी हो गया है. हमारे बच्चों को यह जानना चाहिए कि उनका वास्तविक इतिहास क्या है. 

4. भारतीयों से लगातार झूठ बोला गया
भारतीयों को उनकी विरासत से काटने के लिए सदियों तक झूठ का सहारा लिया गया. जिसका असर इतिहास की किताबों में अब भी दिखाई देता है. वामपंथी और पश्चिमी जड़बुद्धि विचारकों ने तो भारत को एक देश मानने से भी इनकार किया.  
- वामपंथी इतिहासकारों के कथित ईश्वर कार्ल मार्क्स ने  22 जुलाई, 1853 के लेख में कहा था, 'भारतीय समाज का कोई इतिहास ही नहीं है...जिसे हम उसका इतिहास कहते हैं, वह वास्तव में निरंतर आक्रांताओं का इतिहास है'. 
- ब्रिटिश जॉन स्ट्रैची ने 1780 में कहा कि भारत नाम का कोई देश नहीं है.   
लेकिन ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी का इंडिया शब्द ग्रीक इण्डिका से निकला है. जिस शब्द का इस्तेमाल हेरोटोडस ने 600 ई.पू. में किया था.
पश्चिमी और वामपंथी इतिहासकारों के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि 
- जब भारत था ही नहीं तो सिकंदर और सेल्यूकस कहां पहुंचे थे? 
-जिस जमाने में ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज का नामोनिशान नहीं था. तब तक्षशिला, नालंदा और उज्जैन जैसे विश्वविद्यालय किस जगह स्थित थे?
- ह्वेनसांग, इत्सिंग, फाहियान जैसे यात्रियों ने किस देश की यात्रा की? 
- कोलंबस किस इंडिया की खोज में पूरे समुद्र की यात्रा कर रहा था? 
- अंग्रेजों, फ्रांसीसियों, डच और पुर्तगालियों ने अपनी कंपनियों का नाम 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' क्यों रखा?  

आजादी के बाद से ही भारत में कई ऐतिहासिक गलतियां दोहराई जाती रही हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है कि उन गलतियों को दुरुस्त कर लिया जाए. वामपंथी और ईसाई मिशनरी प्रभाव वाले इतिहास लेखकों ने भारतीय इतिहास के साथ बेहद अन्याय किया है. उनकी लिखी किताबें हमारे बच्चों को अपनी विरासत पर शर्म करना सिखाकर उनके कोमल मन में जहर भरने का काम कर रही हैं.

इसलिए इतिहास का पुनर्लेखन अति आवश्यक है. 

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