नई दिल्लीः चर्चा है कि 19 नवंबर को जैसे ही PM मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया, उसके बाद से संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने पश्चिमी यूपी के किसान नेता राकेश टिकैत को साइडलाइन कर दिया था, जो गुरुवार को आंदोलन खत्म करने की घोषणा के दौरान जगजाहिर हो गया. पढ़िए ऐसी चर्चा क्यों है और इसकी वजह क्या है.
टिकैत को नहीं दिया आंदोलन का श्रेय
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर किसान आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया. इस दौरान SKM के बड़े नेता और आंदोलन में प्रवक्ता के तौर पर शुरुआत से ही सक्रिय योगेंद्र यादव ने भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और गाजीपुर बॉर्डर के सिपहसलार राकेश टिकैत को टैलेंडर बता दिया. योगेंद्र यादव ने बड़े मौके पर बातों-बातों में टिकैत को आंदोलन के श्रेय से दरकिनार कर दिया. एक सवाल के जवाब पर योगेंद्र यादव ने कहा कि "हमारे लिए पंजाब के किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ओपनर (सबसे पहले) हैं और राकेश टिकैत टैलेंडर (सबसे लास्ट) नेता हैं". इसके बाद लगभग ये सार्वजनिक हो गया कि संयुक्त किसान मोर्चा ने राकेश टिकैत को अब पंगु कर दिया है.
"SKM के लिए आंदोलन के ओपनर राजेवाल जी हैं और राकेश टिकैत आखिरी व्यक्ति"- योगेन्द्र यादव#FarmersProtests pic.twitter.com/J6mpk5poJX
— Shivam Pratap (@journalistspsc) December 9, 2021
आइए आपको सिलसिलेवार तरीके से वो घटनाएं और बयान बताते हैं, जो ये स्पष्ट करते हैं कि किसान आंदोलन मुख्यतः पंजाब और हरियाणा का आंदोलन था और SKM में पंजाब और हरियाणा के नेताओं ने वर्चस्व के चलते राकेश टिकैत को ना सिर्फ दरकिनार कर दिया, बल्कि उन्हें आंदोलन समाप्त करने पर भी मजबूर कर दिया.
चढूनी बनाम टिकैत
सबसे पहले आपसी खटास तब शुरू हुई जब हरियाणा के बड़े किसान नेता और 5 सदस्यीय कमेटी के सदस्य गुरुनाम सिंह चढ़ूनी ने राकेश टिकैत के हरियाणा में बढ़ते प्रभाव और उनके लगातार दौरों पर सवाल उठाए. बातों ही बातों में कई बार चढूनी यह इशारा भी कर चुके थे कि टिकैत को उत्तर प्रदेश देखना चाहिए. हरियाणा को हम संभाल ही लेंगे.
एक और घटना में हिसार के आईजी ने राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी को बातों ही बातों में कह दिया कि उत्तर प्रदेश के सीएम और हरियाणा के सीएम एक ही दिन अपने-अपने राज्यों में सरकारी दौरे पर आते हैं, लेकिन आप उत्तर प्रदेश की बजाय हरियाणा में आंदोलन को हिंसक बनाने से नहीं चूकते. इसके बाद चढूनी का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वह यह कहते हुए सुनाई दिए कि जब आईजी ने यह बात कही तो उन्हें बहुत शर्म आई. यानी वह आईजी की बात पर मुहर लगाने के साथ ही टिकैत पर भी सवाल उठा रहे हैं कि वह उत्तर प्रदेश के नोएडा और गाजियाबाद में सरकारी दौरे पर आए वहां के सीएम पर इतने मेहरबान कैसे हैं.
ऐसी ही एक और घटना में चढूनी ने बयान दिया था कि उपद्रव मचाने वालों का हमारे आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है, इसके बाद टिकैत ने कहा कि चढूनी ने जो बयान दिया है, वह उनका निजी विचार हो सकता है. मैं खाट डालकर बैठ रहा हूं और गिरफ्तार लोगों को रिहा कराकर रहूंगा.
इन सभी घटनाओं के बाद चढूनी ने सार्वजनिक तौर पर टिकैत पर हमला जारी रखा और उन्हें आंदोलन से दूर करने की कोशिश शुरू कर दी और यही एक बड़ी वजह रही कि SKM द्वारा गठित 5 सदस्यीय कमेटी में टिकैत का नाम नहीं था.
पंजाब की जत्थेबंदी टिकैत के खिलाफ
टिकैत को आंदोलन से दरकिनार करने की बड़ी वजह पंजाब के जत्थेदार संगठन भी थे, सूत्रों के हवाले से खबर मिली थी कि जिस तरह से टिकैत को मीडिया में कवरेज मिल रही थी, ऐसे में पंजाब के किसान नेताओं को लगा कि टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर पूरे किसान आंदोलन के श्रेय को लूट रहे हैं और जानबूझकर ऐसे बयान देकर मीडिया में छाए रहते हैं. धीरे-धीरे पंजाब के किसान जत्थेबंदियों ने माहौल बनाकर टिकैत को महत्व देना कम कर दिया. पंजाब के जत्थेबंदी कृषि कानूनों की वापसी के बाद ही घर लौटना चाहते थे और वो इसको लेकर मन बना चुके थे. यही वजह थी कि SKM अचानक से सक्रिय हुआ और कमेटी बनी, परदे की पीछे बात हुई और आंदोलन को खत्म किया गया.
टिकैत का राजनीतिक हित
अगर अन्य ऐसी ही एक और वजह की बात करें तो कृषि कानूनों की वापसी के बाद भी टिकैत लगातार सभी मांगों को लेकर आंदोलन जारी रखने की बात करते रहे, लेकिन BKU चढूनी के राष्ट्रीय महासचिव और SKM के सदस्य सतीश लंबरदार ने कृषि कानूनों की वापसी के बाद खुलकर राकेश टिकैत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने जी मीडिया से बात करते हुए कहा कि "यूपी का एक किसान नेता शुरुआत से आंदोलन को खराब कर देना चाहता है, वो चाहता है कि आंदोलन और चले, ताकि उसे यूपी में राजनीतिक लाभ हासिल हो जाए, जबकि बाकी किसान संगठन घर जाना चाहते हैं".
कमेटी में टिकैत नहीं
11 चरणों की वार्ता के बाद भी सरकार और किसान नेताओं के बीच सहमति नहीं बनी थी, जिसके बाद सरकार ने किसान नेताओं से कहा कि आप कुछ लोग तय करिए, जो आधिकारिक तौर पर बात कर सकें. SKM ने कमेटी के लिए 5 लोग चुने. इनमें टिकैत नहीं थे. सूत्रों की मानें तो पंजाब-हरियाणा के किसान संगठन टिकैत के नाम पर तैयार नहीं हुए, जिसके बाद उनकी ही कमेटी के युद्धवीर सिंह को कमेटी में शामिल किया गया.
टिकैत की मांगें दरकिनार
29 नवंबर को SKM की बड़ी बैठक में किसान नेता शिवकुमार कक्का, गुरुपंत सिंह संधू, और मंजीत राय आंदोलन खत्म करने या कोई बड़ा एलान करने की बात करते रहे, लेकिन टिकैत आंदोलन को जारी रखने का एलान कर रहे थे. उसी बैठक से पहले किसान नेताओं को सरकार का प्रस्ताव मिल गया था और वो आंदोलन खत्म करने का मन बना चुके थे. टिकैत ने आंदोलन में जब्त ट्रैक्टर, अजय मिश्र टेनी की गिरफ़्तारी जैसी मांगों को भी जोड़ दिया, लेकिन एसकेएम ने इन मांगों का जिक्र तक नहीं किया और बिना इनके ही सरकार का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.
योगेंद्र यादव का टिकैत पर हमला
SKM ने लखीमपुर हिंसा में मारे गए बीजेपी कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के परिवारवालों से मिलकर संवेदना प्रकट करने के मामले में योगेंद्र यादव को किसान मोर्चा से एक महीने के लिए निलंबित कर दिया था. इस कार्रवाई पर राकेश टिकैत ने कहा कि योगेंद्र यादव के मामले में कमेटी ने फैसला लिया है, और उनका फैसला बिलकुल सही है.
योगेंद्र यादव भी टिकैत को जवाब देने के लिए सही वक्त का इंतजार कर रहे थे और आज उन्होंने सार्वजनिक प्रेस वार्ता में टिकैत को आइना दिखा दिया.
दरअसल, दिल्ली के लाल किले में हुई हिंसा के बाद राकेश टिकैत ही इस आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे बन गए थे, उनके कंधे पर ही महीनों तक ये आंदोलन चलता रहा. एक तरह से योगेंद्र यादव के ओपनर और टैलेंडर वाले बयान पर यह कहा जा सकता है कि बीते दिनों जिस तरह से टिकैत के नाम पर आंदोलन को उग्र किया गया, पश्चिमी यूपी में पकड़ बनाए गई उस टिकैत को अहम पड़ाव पर साइड लगा दिया गया.
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