नई दिल्ली: कोरोना संकट के बीच जापान की राजधानी टोक्यो में आयोजित होने जा रहे ओलंपिक खेलों के आगाज में एक पखवाड़े से भी कम का समय बचा है. ऐसे में एक बार फिर भारतीय खिलाड़ियों से ओलंपिक खेलों में अधिक से अधिक पदक जीतने की आस सवा अरब से अधिक भारतीयों को है.
इस बार ओलंपिक खेलों की ट्रैक एंड फील्ड यानी एथलेटिक्स स्पर्धाओं के लिए बड़ी संख्या में भारतीय खिलाड़ियों ने क्वालीफाई किया है. जिसमें 15 खिलाड़ी व्यक्तिगत और 2 टीमें रिले स्पर्धा में भाग लेंगी. ऐसे में हर भारतीय की चाह है कि भारत इस बार खिलाड़ी ज्यादा से ज्यादा पदक जीतकर अपना और देश का नाम रोशन करें.
ओलंपिक इतिहास में एथलेटिक्स स्पर्धाओं में भारत का इतिहास शानदार तो नहीं रहा है लेकिन फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह से लेकर गोल्डन गर्ल या स्वर्ण परी के नाम से विख्यात मशहूर धाविका पीटी ऊषा का नाम आज भी लोगों को भुलाए नहीं भूलता. सत्तर अस्सी के दशक में पीटी ऊषा ने एथलेटिक्स स्पर्धाओं में ऐसा इतिहास लिखा जिसकी चमक आज भी फीकी नहीं पड़ी है.
सेकेंड के सौवें हिस्से से नहीं जीत पाईं थी कांस्य
1979 में एथलेटिक्स करियर की शुरुआत करने वाली पीटी ऊषा ने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा. लेकिन साल 1984 में लॉस एंजलिस ओलंपिक में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में ऊषा कांस्य पदक जीतने से सेकेंड के 100वें हिस्से से चूक गई थीं. कांस्य पदक हासिल करने वाले का फैसला दांतों तले उंगली दबा लेने वाले फोटो फिनिश के साथ हुआ. उनकी ये हार हाल ही में दुनिया के रुख्सत होने वाले फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की हार से कम नहीं थी.
400मीटर स्पर्धा के सेमीफाइनल में ऊषा ने पीटी ऊषा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पहला स्थान हासिल किया था. इस ऐतिहासिक प्रदर्शन के साथ ऊषा ओलंपिक प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनी थीं.
1980 में किया था ओलंपिक डेब्यू
41 साल पहले ओलंपिक डेब्यू करने वाली पीटी ऊषा के करियर की शुरुआत तब हुई थी जब चौथी कक्षा में पढ़ने वाली पीटी ऊषा ने सीनियर स्कूल चैंपियन को स्कूल में मात दी थी. इसके कुछ साल बाद 16 साल की उम्र में वो ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करती नजर आईं. साल 1980 में मॉस्को ओलंपिक में भाग लेने वाली ऊषा भारतीय दल की सबसे युवा खिलाड़ी थीं.
फाउल शुरुआत ने खराब की लय
ओलंपिक डेब्यू में वो प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंचने में नाकाम रहीं लेकिन इसके चार साल बाद ऊषा ने भारत को ओलंपिक खेल इतिहास का सबसे शानदार पल दिया. ये हार पिछले 41 साल से पीटी ऊषा के साथ-साथ पूरे देश को चुभ रही है. चार साल के अंतराल में आयोजित होने वाले ओलंपिक खेलों के करीब आते ही वो पुराना दर्द लोगों के जेहन में ताजा हो जाता है. इस हार के बारे में पीटी ऊषा ने बताया था कि उनके पदक नहीं जीत पाने की वजह रेस की फाउल शुरुआत रही. दोबारा रेस शुरू होने के बाद वो अपनी लय हासिल नहीं कर सकीं. इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा.
एशियाई खेलों में रहा दबदबा
पीटी ऊषा ओलंपिक में भले ही कोई पदक अपने नाम नहीं कर सकीं लेकिन एशियाई खेलों में उनका दबदबा रहा. साल 1982 में दिल्ली में आयोजित नवें एशियाई खेलों में उन्होंने 100 एवं 200 मीटर स्पर्धाओं में उन्होंने रजत पदक जीता. इसके एक साल बाद कुवैत में आयोजित एशियाई ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता में नए एशियाई रिकॉर्ड के साथ 400 मीटर स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता. 1983 से 1989 के बीच ऊषा ने एटीएफ खेलों में 13 स्वर्ण जीते.
एक स्पर्धा में जीते रिकॉर्ड 6 मेडल
1985 में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित एशियाई ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में ऊषा ने महिलाओं की 100, 200, 400, 400 मीटर बाधा, 4 गुणा 400 रिले सहित पांच स्पर्धाओं में स्वर्ण और 4 गुणा 100 रिले में कांस्य पदक अपने नाम किया. यह किसी भी महिला द्वारा किसी एक ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धा में पदक जीतने का नया वर्ल्ड रिकॉर्ड है. उनका यह रिकॉर्ड आज भी कायम है.
1986 के एशियाई खेलों में उन्होंने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 4 स्वर्ण और एक रजत पदक अपने नाम किए. इस प्रदर्शन की खासियत यह थी कि जिन स्पर्धाओं में ऊषा ने स्वर्ण पदक जीता उन सभी में उन्होंने नया एशियाई रिकॉर्ड कायम किया.
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