नई दिल्ली. अयोध्या में 22 जनवरी का दिन ऐतिहासिक होने जा रहा है. रामजन्मभूमि विवाद में चली लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अब नवनिर्मित राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देश के गणमान्य लोगों को न्योता भेजा गया है और इन अतिथियों का अयोध्या आगमन शुरू भी हो चुका है. श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा पूर्व राज्यसभा सांसद और एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन डॉ. सुभाष चंद्रा को भी न्योता भेजा गया था. डॉ. चंद्रा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अयोध्या पहुंच गए हैं. इस अवसर पर ज़ी न्यूज से हुई खास बातचीत में डॉ. चंद्रा ने बताया है कि क्यों मंदिर निर्माण से उनके मन की पीड़ा समाप्त हो गई है.
डॉ. चंद्रा ने बताया है- मैं आज अयोध्या लगभग 45 वर्ष बाद आया हूं. तब मैं एक युवा होने के नाते आया था. तब मन में एक पीड़ा थी. पीड़ा ये थी कि जिस रामायण को पढ़कर, रामलीला देखकर हम बड़े हुए. अयोध्या के बारे में बहुत कथाएं सुनीं. जिस जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ, वहां पर एक विदेशी व्यक्ति...यह बात हमारे मुस्लिम भाइयों को समझनी चाहिए कि मंदिर को तोड़ने वाला एक विदेशी आततायी था. इसलिए देखकर पीड़ा होती थी और ये लगता था कि देश आजाद हुए होते हुए भी मंदिर क्यों नहीं बनाया गया. हमारे ऊपर जिन लोगों ने आक्रमण करके राज किया, उन लोगों और शासकों ने हमारे देश की संस्कृति, पूजा स्थल, आस्था के मंदिरों को तोड़ा तो क्यों नहीं जब हमारा अपना स्वराज हुआ तो उसको वापस लिया जा सकता है.
युवावस्था में नहीं मिला जवाब, आजाद हैं तो मंदिर क्यों नहीं?
डॉ. चंद्रा ने कहा- उस वक्त मुझे इसका उत्तर एक युवा व्यक्ति के नाते नहीं मिला. जब एक मित्र से पूछा तो उन्होंने कहा कि सुभाष जी आप नहीं समझेंगे, अभी आप बच्चे हैं. तो ऐसी पीड़ा लेकर मैं अयोध्या से वापस गया था. लेकिन अब जब मैं यहां आया हूं 20 जनवरी 2024 को तो मन में एक उल्लास है, भावना है कि मैं स्वतंत्र हूं और मेरा देश स्वतंत्र है.मेरे देश के नागरिक स्वतंत्र हैं.
लोग कुछ भी कह देते थे
डॉ. चंद्रा ने कहा- भगवान राम की कथा में बहुत सारी ऐसी बात मिलती हैं जिसने पता चलता है कि रामराज्य में सबको बोलने की आजादी थी. लेकिन ऐसी स्वतंत्रता होते हुए भी कोई किसी को कष्ट नहीं देता था. लेकिन जो माहौल हमने पिछले 40-50 वर्षों में देखा, आज के 15 साल पहले, वो बहुत दुखदायी था. लोग स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कह देते थे.
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