फैज़ अहमद फैज़ : एक कवि जो बन गए क्रांतिकारी, जानिए उनके जीवन का रोचक सफर!

फैज़ अहमद फैज़ का जन्म 13 फरवरी, 1911 में पंजाब के सियालकोट में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान में है. 

Written by - Harsh Agrawal | Last Updated : Nov 20, 2021, 07:48 AM IST
  • फ़ैज़ को एक ब्रिटिश नागरिक एलिस फ़ैज़ से प्यार हो गया
  • 31 की उम्र में फ़ैज़ ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए
फैज़ अहमद फैज़ : एक कवि जो बन गए क्रांतिकारी, जानिए उनके जीवन का रोचक सफर!

नई दिल्ली: फैज़ अहमद फैज़ एक शायर, एक लेखक या फिर एक क्रांतिकारी आप इन्हें कुछ भी बोल सकते हैं. फ़ैज़ की लिखी हुई हर नज़्म, हर रचना ने लोगों के अंदर एक अलग छाप छोड़ी है, वो ना सिर्फ़ पाकिस्तान में ही मशहूर हैं बल्कि हिंदुस्तान में भी उनको उसी अदब के साथ पूछा जाता है, उनके चाहने वाले एक मुल्क या एक देश तक ही सीमित नहीं है, पूरी दुनियां में फ़ैज़ की रचनाओं की कद्र की जाती है.

तो आख़िर कौन है फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फैज़ अहमद फैज़ का जन्म 13 फरवरी, 1911 में पंजाब के सियालकोट में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान में है. फैज़ एक अकादमिक परिवार से थे जो साहित्यिक हलकों में जाना जाता था, उनके घर में अक्सर स्थानीय कवियों और लेखकों की सभा हुआ करती थी. इन सब चीजों का फ़ैज़ के जीवन पर काफ़ी असर पड़ा. उन्होंने सियालकोट में एक ब्रिटिश परिवार द्वारा संचालित एक स्कूल में पढ़ाई की, उन्हें बचपन से ही भाषा का ज्ञान था. 15 साल की उम्र में लाहौर के प्रतिष्ठित सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया.

एमएन रॉय का बड़ा प्रभाव पड़ा
22 साल की उम्र में उन्होंने अरबी में परास्नातक पूरा किया और उसके बाद अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक किया. इस दौरान उन्होंने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारी संस्थापक Manabendra Nath Roy से भी मुलाकात की, फ़ैज़ पर एमएन रॉय का बड़ा प्रभाव पड़ा. 28 तक फ़ैज़ एक प्रगतिशील लेखक बन चुके थे इसके साथ ही वे अमृतसर कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ा रहे थे और एक मासिक उर्दू पत्रिका के प्रधान संपादक भी थे. 30 साल की उम्र में फ़ैज़ को एक ब्रिटिश नागरिक एलिस फ़ैज़ से प्यार हो गया, जिनसे उन्होंने बाद में शादी भी की.

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ब्रिटिश भारतीय सेना में हुए शामिल
31 साल की उम्र में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए, जहां उन्होंने प्रचार विभाग में काम किया और लेफ्टिनेंट कर्नल बन गए. 36 साल की उम्र में, विभाजन के बाद उनकी कविताओं ने लोगों की पीड़ा व्यक्त की. कश्मीर को भारत से छीनने में नाकाम रहने के कारण पाकिस्तानी सेना से फ़ैज़ का मोहभंग हो गया और उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उसी वर्ष फ़ैज़ ने पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना में मदद की.

उन्होंने पाकिस्तान टाइम्ज़ का संपादन भी किया और सामाजिक असमानताओं पर, धार्मिक कट्टरवाद पर और सैन्य तानाशाही के अत्याचार पर भी कविताएं लिखी. इसके लिए उन्हें पाकिस्तान की दक्षिणपंथी पार्टियों से धमकियां मिलती थी. 40 साल की उम्र में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने अगले चार साल जेल में बिताए.

जेल में अपनी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएं भी लिखीं
फ़ैज़ ने जेल में अपनी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएं भी लिखीं. उन्हें अंततः रिहा कर दिया गया लेकिन अगले दशक के लिए उन्हें निर्वासन, प्रतिबंध, गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ा. जब फ़ैज़ 51 वर्ष के थे तब उन्हें समाजवादी कविता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए यूएसएसआर (USSR ) का लेनिन शांति पुरस्कार भी मिला. दो साल बाद, वे उभरते राजनेता जुल्फिकार अली भुट्टो के आश्वासन के बाद कराची लौट आए. भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्हें सरकार में पुरस्कार और पद से सम्मानित किया गया, लेकिन जब वह 67 वर्ष के थे, तो सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक ने भुट्टो को गद्दी से उतार दिया और उन्हें मार डाला.

राज्य एक बार फिर उनके खिलाफ हो गया. फिर 68 साल की उम्र में उन्होंने जिया उल-हक़ के सैन्य शासन के संचालन के खिलाफ अपनी प्रतिष्ठित कविता हम देखेंगे लिखी. बोल के लब आज़ाद हैं तेरे, हम देखेंगे और मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब ना मांग उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में से एक है. तो ये है फैज़ अहमद फ़ैज़ कवि जो एक क्रांतिकारी बन गए.

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