नई दिल्लीः केंद्र सरकार में पर्यावरण और जलवायु मंत्रालय के राज्यमंत्री का प्रभार संभाल रहे हैं केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो. शुक्रवार को उन्होंने जी हिंदुस्तान के विमर्श डायरेक्ट मिनिस्टर अधिवेशन में हिस्सा लिया और कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. सवाल-जवाब के सिलसिले चले तो उन्होंने अपनी चुनौतियां भी बताईं और उनसे कैसे लोहा ले रहे हैं उसका ब्लू प्रिंट भी सामने रखा.
सवालः मंत्रालय में एक 1 साल के कार्यकाल के दौरान कितनी उपलब्धियां रहीं, क्या चुनौतियां अभी आपके सामने हैं?
जवाबः आपके चैनल के नाम में हिंदुस्तान हैं तो आप के जरिए सभी हिंदुस्तानियों को मैं शुभकामनाएं देता हूं. अभी जो 1 साल पूरा हुआ है. पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के कामकाज के जरिए हम लोगों तक समाज के अलग-अलग वर्गों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. ओवरऑल सही रहा है. मेरे मंत्रालय की जहां तक बात आती है मैं खुद भी वाइल्ड लाइफ का शौकीन हूं. बॉलीवुड में काम करने की वजह से पूरी दुनिया घूमने का मुझे मौका मिला. इसलिए क्लाइमेट का क्या असर पिछले 25 साल में शहरों के ऊपर हुआ है? इसे करीब से देखा है. मैं बहुत शुक्रगुजार हूं प्रधानमंत्री जी का कि मुझे एक अच्छा मंत्रालय मिला है. जहां मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलेगा और बहुत ही अच्छा बॉस मिला है.. प्रकाश जावड़ेकर जो हमारे सीनियर मंत्री हैं. हर राह में उनका एक सहयोग और प्यार मिलता है. उससे मैं बहुत अच्छे से डिपार्टमेंट का काम कर पा रहा हूं.
सवालः 20 लाख करोड़ का पैकेज आत्मनिर्भर बनने के लिए दिया गया है. इन सबके बीच विकास जब होगा तो पर्यावरण के साथ समझौता करना पड़ेगा. ऐसे में संतुलन कैसे बना रहेगा जिससे पर्यावरण क्लीयरेंस की जो प्रक्रिया है वह भी स्मूथ रहे और कार्यक्षमता पर भी प्रभाव न पड़े?
जवाबः पर्यावरण के साथ समझौते के अंग्रेजी में दो मतलब निकल सकते हैं. एक है कॉम्प्रोमाइज और दूसरा है को-एक्जिस्ट. पर्यावरण मंत्रालय में हम इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के ऐसे काम जिनसे पर्यावरण को क्षति हो सकती है, उस पर कॉम्प्रोमाइज बिल्कुल नहीं कर रहे हैं. हम को- एक्जिस्टेंस की बात कर रहे हैं. जैसे नॉर्थ ईस्ट में सरकारी पब्लिक लिमिटेड कंपनी को कोयला खदान के लिए एनवायरमेंटल क्लीयरेंस दिया गया था. वे जब उससे और ज्यादा एनवायरमेंट क्लीयरेंस और ज्यादा इलाके के लिए मांग रहे थे. वहां डेंस फॉरेस्ट था वहां पर अगर हम परमिशन दें तो वो सारे पेड़ कट जाएंगे और माइनिंग हो तो बायोडायवर्सिटी, पर्यावरण बोलिए, फॉरेस्ट कवर हर तरफ से नुकसान होगा. ऐसे में हमारी कोशिश है कि अगर जरूरत पड़ने पर काम हो तो ऐसे इलाके के गुड क्वालिटी कोड बरकरार रखते हुए काम हो. यहां पर हम आधुनिक प्रयोग के सहारे ऐसे काम करने की कोशिश करें. जंगल के नीचे से टनल बनाकर काम हो सकता है. परिवेश ऐप 2009 से चल रहा है. प्रधानमंत्री मोदी सिंगल विंडो क्लीयरेंस को जरूरी बता चुके हैं. उनका लक्ष्य है कि हमें टॉप 50 में आना चाहिए. उस दिशा में परिवेश ऐप आधुनिक प्रोएक्टिव जियो टैगिंग और मॉनिटरिंग फैसिलिटी के साथ सरल बनाने की कोशिश है. ताकि आप ऑनलाइन एप्लीकेशन दाखिल करें. एनवायरनमेंट को साफ रखने के लिए जनभागीदारी जरूरी है. यह रिस्पांसिबिलिटी तो मेरे ख्याल से सरकार और सभी लोगों की है. तभी सब स्वस्थ रहेंगे.
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— ZEE HINDUSTAN (@Zee_Hindustan) June 12, 2020
सवाल: केरल में जो गर्भवती हथिनी की हत्या हुई उसके बाद देश में गुस्सा है. ऐसे कई मामले सामने आए. ऐसे में किस तरह की कड़ी कार्रवाई के लिए सरकार प्रतिबद्ध है कि इस तरह से जानवरों को परेशान ना किया जाए?
जवाबः कानून तो हैं, लेकिन इंसान हैवानियत पर उतर जाए तो बहुत चिंता की बात है. खबर है कि केरल सरकार भी इन्वेस्टिगेशन कर रही है. हमारी तरफ से भी हमारे सभी ऑफिस इसमें जुटे हैं. उस इलाके में किसान भी इस वक्त कोरोना से परेशान हैं. अपनी फसलों को बचाने के लिए वह कभी-कभी ऐसे डेसपरेट अवैध उपाय अपना लेते हैं. जैसे पाइनएप्पल के अंदर विस्फोटक. यह पुष्टि हो रही है कि वहां कुछ लोगों ने पाइनएप्पल के अंदर जो एक्सप्लोसिव रखा थ, ताकि जंगली सूअर वहां न आएं. उनके साथ हाथी और बाकी जानवर भी वहां आते हैं. तो क्या यह हाथी को जानबूझकर खिलाया गया था. भले ही वह एक्सीडेंटली हो. एक हाथी ने यह खा लिया था. इसकी तहकीकात हो रही है. गिरफ्तारी भी हो चुकी है.हम सबसे यह अपील भी कर रहे हैं कि यह जितनी भी इलीगल प्रैक्टिसेस है उन्हें रोकने के लिए सख्त कदम उठाया जाएगा. प्रावधान तो सारे हैं. लेकिन क्या उससे हम क्राइम या मर्डर पूरी तरह से रोक पाते हैं. वह हमेशा कंप्लीट रुकता नहीं है. जो भी दोषी पाया जाएगा उनपर कार्रवाई होगी.
सवालः एक तरफ कोविड की दिक्कत है. दूसरी तरफ ओडिशा व पश्चिम बंगाल में तूफान आया. लग रहा है कि वाकई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में और वक्त लगेगा?
जवाबः हम धरती को धरती मां कहते हैं. गलत काम करने पर मां डांटती है. ताकि हम सही पटरी पर आ जाएं. कहीं ना कहीं 2020 में ऐसा लग रहा है कि धरती मां हमें डांट रही हैं. चेतावनी दे रही है कि अगर हम रिस्पांसिबल और बायोडायवर्सिटी को बरकार रखने के लिए जिम्मेदार नहीं हुए तो नतीजा अच्छा नहीं होगा. अब अम्फान से ओडिशा में और बंगाल में जो क्षति हुई है. उसकी भरपाई करना एक अलग बात है. प्रधानमंत्री जी जिस दिन दौरे पर गए थे तो मैं साथ था. उन्होंने एक अच्छी बात कही थी कि देखिए चैलेंज कैसा होता है. कोविड के टाइम हमें सोशल डिस्टेंस मेंटेन करनी है. और तूफान आया तो जो लोग घर में हैं उन्हें बाहर निकलकर एकजुट होकर रहना पड़ा. इन दोनों को बैलेंस करके कैसे हम आगे जा सकते हैं यह एक चैलेंज बिल्कुल हमारे सामने हैं.. केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर इस चैलेंज को जरूर पार करेंगे. आज से 100 साल पहले स्पेनिश फ्लू में 2 करोड लोगों की मौत हुई थी. 1891 के बाद मुंबई मैंने इस तरीके का साइक्लोन देखा जो इस बार आया. मैं समझता हूं कि इन सारी चीजों से इंसान जैसे स्मॉल पॉक्स प्लेग से निकल गया तो कोविड से भी हम बाहर निकल जाएंगे, पर हमें फेल नहीं होना है. एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते वही करना है जैसा कि सही हो. जैसे अनलॉक 1 हो रहा है. मैंने आज ही एक ट्वीट किया है कि मेन हथियार हमारा सोशल डिस्टेंसिंग ही रहता है. वैसे भी हम कौन सा भगवान जी से मिलते हैं. तो इस समय जब मंदिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा खुल गया है तो वहां पर बहुत भीड़ नहीं लगाकर हम थोड़ी सी सावधानी बरतें. ताकि बुजुर्ग लोग वहां पर ना जाएं या अगर बुजुर्ग लोग जाएं तो उन्हें उन्हें थोड़ी प्रायरिटी दें. हम उनके नजदीक न जाएं तो आपको थोड़ा चौकन्ना रहना पड़ेगा.
सवालः आपने एक ट्वीट की बात की, ट्वीट को लेकर आपके बहुत विवाद होते रहते हैं. इस पर भी आते हैं. आपके मंत्रालय की जो तस्वीरें इस वक्त सामने आई हैं. राज्य के पास क्या चुनौतियां हैं?
जवाबः अरुण जेटली जी ने एक बहुत अच्छी बात की थी कि अगर आपको सोशल मीडिया में रहना है तो आपको सहना पड़ेगा. मैं एक आर्टिस्ट हूं.. thick skinned हो जाऊं और लोग मुझे कुछ कहें. उससे मुझे बुरा न लगे. ऐसा मैं नहीं बनना चाहता हूं. मेरा साफ मानना है. मुझे पता है मैं किसके साथ लड़ रहा हूं. बंगाल में हमें रोज लड़ना पड़ता है. ट्वीट में अपनी बात से कंट्रोवर्सी बनना. हर सेलेब की पार्ट ऑफ लाइफ है. वो सॉफ्ट टारगेट होते हैं और कुछ लोग उसका गलत इस्तेमाल करते है. इस वजह से मज़ाक में कुछ लोग सोशल मीडिया को टॉयलेट भी कहते हैं. पर टॉयलेट भी हमारी ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है.. एक प्रेम कथा भी है तो उसके साथ आपको मिल जुल कर रहना है. बेवजह की बात जब आती है तो इस पर बहुत अच्छे अच्छे गाने हैं. कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना. छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत ना जाए रैना.
सवालः कई गैर भाजपा शासित राज्यों में बंगाल भी एक राज्य है और आप वहां से आते हैं. इस वक्त जब हमने मजदूरों के पलायन की.. घर वापसी की तस्वीर देखी. इससे हर कोई दुखी हुआ. लेकिन ममता बनर्जी का यह आरोप था कि केंद्र सरकार मजदूरों के पलायन में मदद नहीं कर रही है. क्या राज्य के साथ कोआर्डिनेशन में केंद्र सरकार की तरफ से कमी थी?
जवाबः केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने दो बार कहा कि पूरे देश में नोडल अफसर हैं वो कोऑर्डिनेट कर रहे हैं. दूसरे राज्यों ने श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों को राज्य में घुसने की अनुमति दी. तब पश्चिम बंगाल ने वहां ट्रेन को आने की अनुमति नहीं दी. तो ममता दीदी को कभी कभी आईने के सामने खड़ा होना चाहिए. कभी-कभी मुझ पर आरोप लगाती हैं तो कुछ टिप्पणी करना भी बड़ा मुश्किल हो जाता है. क्योंकि आपको सबसे पहले एंगर मैनेजमेंट देखना पड़ेगा. श्रमिक एक्सप्रेस को ममता ममता बनर्जी कोरोना एक्सप्रेस बोल रही हैं. आपको लग रहा है कि पश्चिम बंगाल के लोग इसे भूल जाएंगे. आप बिहार को उत्तर प्रदेश को देख लीजिए. लेकिन पश्चिम बंगाल की चीफ मिनिस्टर का क्या रवैया रहा. ममता बनर्जी के बंगाल में न तो इंडस्ट्री है न एग्रीकल्चर में उन्होंने कुछ किया है. हर जगह पर रोक लगा के रखती हैं. गलत लैंड पॉलिसी के कारण लोग बंगाल छोड़कर बाहर जाकर काम कर रहे हैं. उनको प्रोएक्टिव होकर ट्रेन को कोलकाता आने देना चाहिए. वह तो कर नहीं रहीं उल्टा उसे कोरोना एक्सप्रेस कह रही हैं.
'कोविड ऑडिट कमेटी बनाई'
उन्होंने कोरोना के मरीजों की संख्या को दबाने की कोशिश की. आप असली टेस्ट रिपोर्ट नहीं दिखा रहीं. डेड बॉडीज के वीडियो जो आ रहे हैं आप उसे छुपा रहे हैं. हम तो दिल्ली के हिसाब से ये सारा डाटा लोगों के सामने लाए.जब आपके पास बहुत सारा डाटा आता है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसमें से एक दो डाटा जो है गलत हो सकता है. अगर उसको लेकर कोई कॉन्ट्रोवर्सी होती है तो मैं इतना डरपोक नहीं हूं. मेरे में इतना ग्रेस है कि मैं कह दूंगा यह वाला जो डाटा है यह ठीक नहीं था. ममता दीदी ने जानबूझ कोविड ऑडिट कॉमेडी बिठाई जिन्हें ये दायित्व दिया गया है कि वह डिसाइड करेंगे. वो डिसाइड करेंगे कि कोरोना से किस मरीज की मौत हुई है और किसकी नहीं.
'पं. बंगाल में कमेटी तय करेगी कहां जाएंगें सैंपल'
ममता बनर्जी ने कई बार ऐसा किया है. डॉक्टर्स को उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गली-गली में धमकाया कि कोई अपनी प्रिस्क्रिप्शन न लिखे. आईसीएमआर कोलकाता में जो टेस्ट होते थे. वहां पर 27 हजार से 28 हजार किट्स पड़े हैं. मार्च के शुरुआत में सौ सौ सैंपल जाने लगे थे, लेकिन मार्च के अंत में वो सैंपल्स आठ और नौ की संख्या में पहुंच गए. क्यों? क्योंकि उन्होंने एक और कमेटी बैठा दी है जिनके पास सारे हॉस्पिटल को रिपोर्ट भेजना पड़ेगा. सैंपल्स को वह कमेटी डिसाइड करेगी कि टेस्ट का सैंपल जो है कहां भेजा जाएगा.
TMC में मुआवजे में जोड़ रही आने वाले चुनाव का खर्च-बाबुल
इसी तरह जो तूफान से नुकसान हुआ. उसे ममता बनर्जी एक लाख करोड़ का नुकसान बता रही हैं. कहती हैं कि इतना पैसा केंद्र को देना पड़ेगा. बंगाल को मालूम है. वहां की जनता देख रही है कि सच क्या है. असल में टीएमसी अगले साल होने वाले चुनाव का खर्च भी मुआवजे में जोड़ रही हैं. यह हकीकत है तो हम इसे जरूर कहेंगे. ट्विटर पर भले वो अपनी ट्रोल-वाहिनी लगा दें. प्रशांत किशोर को जो उन्होंने पब्लिक के पैसे से रखा है उन्हें लगा लें. हमें कुछ फर्क नहीं पड़ता है. इतनी तो शक्ति हममें है कि हम जो कर रहे हैं बंगाल में सही कर रहे हैं. 2021 में बंगाल में साफ सुथरी भाजपा सरकार लाने की उस मुहिम से हम बिल्कुल पीछे नहीं हटेंगे.
सवालः 2021 बहुत दूर नहीं है. आपने कहा कि 19 में हाफ हुए 21 में साफ हो जाएंगे.. इतना यकीन किस बात पर है आपको?
जवाबः बिल्कुल यकीन है. क्योंकि बंगाल की पूरी जनता हमारे साथ है. वो चाहती है कि बंगाल की जो लालिमा है वह वापस आ जाए और जो ये भ्रष्ट सरकार है. जो लोगों को वंचित रखती है उसे हटा दे. क्या आयुष्मान भारत योजना उन्होंने बंगाल में लागू होने दिया. अगर मैं आपको प्रैक्टिकल चीजें बताऊं तो कितने सारे घर बर्बाद हुए हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना से कितने करोड़ रुपये मिले 9 साल में. लेकिन मैंने टि्वटर पर पोस्ट किया है कि लास्ट ईयर जो बुलबुल तूफान आया था. तो मैं गाड़ी लेकर प्रभावित इलाके में गया. सुंदरवन में गया जहां पूरी भीड़ जमा थी. सारे लोग बोल रहे थे कि किसी को घर बनाने का पैसा नहीं मिला. प्रधानमंत्री आवास योजना जिन गरीब लोगों के लिए चलाई गई. अगर वो पैसे उनको मिलते तो इतने सारे कच्चे घर नहीं होते. सब घर पक्के होते और तूफान से खराब भी नहीं होते. कई लोग मरने से बच भी गए होते. उन्हीं सवालों के जवाब केंद्र सरकार ढूंढ रही है. लेकिन ममता बनर्जी हर चीज को केंद्र सरकार और राज्य सरकार की लड़ाई बना देती हैं और काम बिगाड़ देती हैं. इसी वजह से प्रधानमंत्री जी ने उनको स्पीड ब्रेकर दीदी भी कहा था. यह बंगाल में नहीं चलेगा. हम ऐसा नहीं होने देंगे. बंगाल को आगे बढ़ना है और उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. सब देखेंगे.
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