Contempt petition filed against SBI: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए चुनावी बांड (EBs) का विवरण भारतीय चुनाव आयोग (ECI) को जमा करने की समय सीमा समाप्त होने के एक दिन बाद, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अदालत के निर्देश की अवहेलना के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की है.
ADR एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो केंद्र की 2018 EB योजना को रद्द करने वाले फैसले में मुख्य याचिकाकर्ता भी है. अब ADR ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय वाई चंद्रचूड़ के समक्ष मामले का उल्लेख किया और 11 मार्च को सुनवाई की मांग की. बता दें कि 30 जून तक समय बढ़ाने के लिए SBI ने आवेदन किया है, जिसपर विचार किए जाने की संभावना है, लेकिन उससे पहले अवमानना याचिका दायर हो गई है.
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने CJI के समक्ष प्रस्तुत किया कि ADR ने ECI को 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए EB का पूरा विवरण जमा करने के लिए 6 मार्च की अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करने के लिए SBI के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की है.
जवाब देते हुए, EB मामले में पीठ का नेतृत्व करने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अवमानना याचिका SBI की याचिका के साथ सुनवाई के साथ ली जाएगी यदि याचिका को विधिवत क्रमांकित और सत्यापित किया गया है. भूषण ने अदालत को आश्वासन दिया कि वह औपचारिकताएं पूरी करेंगे.
SBI ने क्या कहा था?
4 मार्च को SBI ने 30 जून तक समय बढ़ाने के लिए अपनी याचिका दायर की थी और तर्क दिया था कि डेटा को 'डिकोड करना' और दानकर्ताओं को दान से मिलान करना एक 'जटिल प्रक्रिया' है.
यदि आवेदन की अनुमति दी जाती है, तो इसका मतलब होगा कि ईबी के दाताओं और प्राप्तकर्ताओं का खुलासा आगामी लोकसभा चुनावों के बाद ही किया जाएगा, जो इस साल अप्रैल और मई के बीच होने की उम्मीद है.
बैंक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उसे 22,217 ईबी के विवरण को डिकोड करने की आवश्यकता है, जिसमें 44,434 (जारी ईबी की संख्या से दोगुना) सूचना सेटों को डिकोड करना, संकलित करना और तुलना करना शामिल होगा क्योंकि बांड के खरीदारों और प्राप्तकर्ताओं से संबंधित विवरण दो अलग-अलग सूचना साइलो में रखे गए हैं.
क्या है मामला?
15 फरवरी को पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र की राजनीतिक फंडिंग की 2018 ईबी योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, क्योंकि इसमें राजनीतिक दलों को दिए गए योगदान को पूरी तरह से अज्ञात कर दिया जाता और कहा गया था कि काले धन या अवैध चुनाव वित्तपोषण को प्रतिबंधित करने के कुछ स्पष्ट उद्देश्य हैं. योजना में मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन हो रहा था.
सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने उस समय एसबीआई को भी निर्देश दिया था (एकमात्र नामित ईबी-जारीकर्ता बैंक) कि वे तुरंत ईबी जारी करने से रोके. कहा गया था कि बैंक 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए ईबी का विवरण प्रस्तुत करे वो भी 6 मार्च तक.
फैसले में 12 अप्रैल, 2019 के बाद से राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त सभी फंडिंग को उजागर करने के आदेश हैं. इसके बाद ईसीआई की वेबसाइट पर जानकारी डालकर आंकड़े सार्वजनिक भी किए जाने के आदेश दिए गए हैं.
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