चुनाव आयुक्त की नियुक्ति रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका, कांग्रेस नेता ने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग में खाली पदों पर वर्तमान कानून के अनुसार नियुक्तियां करने से केंद्र सरकार को रोकने की मांग की गई है. वर्तमान कानून भारत के मुख्य न्यायाधीश को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया से बाहर करता है. चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने नौ मार्च को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 11, 2024, 12:58 PM IST
  • कांग्रेस नेता ने दायर की याचिका
  • अब इस तरह होती है नियुक्ति
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका, कांग्रेस नेता ने की मांग

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर चुनाव आयोग में खाली पदों पर वर्तमान कानून के अनुसार नियुक्तियां करने से केंद्र सरकार को रोकने की मांग की गई है. वर्तमान कानून भारत के मुख्य न्यायाधीश को मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया से बाहर करता है. चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने नौ मार्च को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

कांग्रेस नेता ने दायर की याचिका

आवेदन में शीर्ष अदालत की मार्च 2023 की संविधान पीठ के फैसले के अनुसार चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति का निर्देश देने की मांग की गई है. इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश के पैनल की सलाह पर चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा करने की बात कही गई है.

कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की स्थिति और पद ग्रहण की अवधि) अधिनियम, 2023 की वैधता को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की है.

अब इस तरह होगी नियुक्ति

केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से जारी गजट अधिसूचना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं हैं. इस अधिसूचना में कहा गया है कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष व प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री से मिलकर बनी चयन समिति की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा सीईसी और ईसी की नियुक्ति की जाएगी.

गौरतलब है कि इस साल जनवरी में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया था, लेकिन संसद द्वारा हाल ही में बनाए गए कानून के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया था. पीठ ने कहा था, 'हम इस तरह के कानून पर रोक नहीं लगा सकते.' पीठ में न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता भी शामिल थे.

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