लखनऊ: बसपा प्रमुख मायावती ने केंद्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि लोग उम्मीदों के सहारे जीते हैं, लेकिन झूठी उम्मीदें क्यों? बजट पार्टी से ज्यादा देश के लिए हो तो बेहतर होता है क्योंकि देश के 130 करोड़ गरीब, मजदूर, वंचित और किसान अपने अमृतकाल को तरस रहे हैं. वहीं अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा कि भाजपाई बजट महंगाई एवं बेरोज़गारी दोनों को और बढ़ाता है .
क्या बोलीं मायावती
मायाती ने कहा कि पिछले नौ वर्षो में भी केन्द्र सरकार के बजट आते-जाते रहे जिसमें घोषणाओं, वादों, दावों व उम्मीदों की बरसात की जाती रही लेकिन मध्यम वर्ग महंगाई व बेरोजगारी के कारण निम्न मध्यम वर्ग बन गया हैं .
बातें ज्यादा हैं, मायावती बोलीं
बजट के बाद मायावती ने ट्वीट कर कहा,''केन्द्र सरकार जब भी योजना लाभार्थियों के आंकड़ों की बात करे तों उसे यह जरूर याद रखना चाहिए कि यह लगभग 130 करोड़ गरीबों, मजदूरों, वंचितों, किसानों आदि का विशाल देश है जो अपने अमृतकाल को तरस रहे हैं.बातें ज्यादा हैं. बजट पार्टी से ज्यादा देश के लिए हो तो बेहतर.''
मध्यम वर्ग निम्न वर्ग बन गया
उन्होंने कहा''देश में पहले की तरह पिछले 9 वर्षों में भी केन्द्र सरकार के बजट आते-जाते रहे जिसमें घोषणाओं, वादों, दावों व उम्मीदों की बरसात की जाती रही, किन्तु वे सब बेमानी हो गए जब भारत का मध्यम वर्ग महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि की मार के कारण निम्न मिडिल क्लास बन गया.'' मायावती ने कहा,''इस वर्ष का बजट भी कोई ज्यादा अलग नहीं.
पिछले साल की कमियां सरकार नहीं बताती और नए वादों की फिर से झड़ी लगा देती है. जमीनी हकीकत में 100 करोड़ से अधिक जनता का जीवन वैसे ही दांव पर लगा रहता है जैसे पहले था. देश के लोग उम्मीदों के सहारे जीते हैं, लेकिन झूठी उम्मीदें क्यों?'' उन्होंने कहा कि सरकार की संकीर्ण नीतियों व गलत सोच का सर्वाधिक दुष्प्रभाव उन करोड़ों गरीबों, किसानों व अन्य मेहनतकश लोगों के जीवन पर पड़ता है जो ग्रामीण भारत से जुड़े हैं और असली भारत कहलाते हैं. मायाती ने कहा, सरकार उनके आत्म-सम्मान व आत्मनिर्भरता पर ध्यान दे ताकि देश विकसित हो.
क्या बोले अखिलेश यादव
बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिलेश ने बुधवार को ट्वीट किया, '' भाजपा अपनी सरकार के बजट का दशक पूरा कर रही है, पर जब देश की जनता को पहले कुछ न दिया तो अब क्या देगी.’’ भाजपाई बजट महंगाई एवं बेरोज़गारी को और बढ़ाता है. किसान, मज़दूर, युवा, महिला, नौकरीपेशा, व्यापारी वर्ग में इससे आशा नहीं निराशा बढ़ती है क्योंकि ये चंद बड़े लोगों को ही लाभ पहुंचाने के लिए बनता है.'
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