नई दिल्ली: बराक ओबामा (Barak Obama) ने अपनी आत्मकथा 'ए प्रॉमिस्ड लैंड' (A promised Land) में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul gandhi) की तुलना एक ऐसे छात्र से की है 'जिसका व्यवहार नर्वस और बेतरतीब होता है. वह अपने शिक्षक को प्रभावित करने के लिए उत्सुक तो रहता है, लेकिन अपने विषय में महारत हासिल करने के लिए उसके पास या तो योग्यता नहीं है या जुनून की कमी है'.
ओबामा को ऐसा क्यों लगा? इसकी एक नहीं 4 कारण हैं.
जिम्मेदारी से भागते 'अनगढ़' राहुल गांधी
राहुल के नाम के साथ गांधी लगा हुआ है. 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी से जुड़े करोड़ों लोगों की उम्मीदें उनके साथ जुड़ी हुई हैं. अपनी सबसे बुरी हालत में भी राहुल की पार्टी देश का सबसे बड़ा विपक्षी दल है. यह सब उनको जन्म के साथ विरासत में हासिल हुआ है. उनके साथ उनके पुरखों की कमाई है. लेकिन राहुल गांधी को इसकी कद्र नहीं है. बानगी देखिए-
2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी कुछ इस अंदाज में इस्तीफा दिया था. चंद लाइनें लिखकर उन्होंने खुद को राजनीति से लगभग काट लिया है. बिना ये सोचे कि उनके साथ करोड़ो कांग्रेस समर्थकों की उम्मीदें चस्पां हैं.
राहुल गांधी विरासत में मिली इस अनमोल वरदान की कीमत ही नहीं समझते. अगर इतना विशाल जनसमर्थन और विरासत में मिली बनी बनाई पार्टी किसी मंजे हुए राजनीतिक बुद्धि से युक्त व्यक्ति के पास होती, तो शायद वह देश ही नहीं दुनिया के शीर्ष पर बैठा होता. जहां बड़ी जद्दोजहद के बाद नरेन्द्र मोदी पहुंच पाए हैं. लेकिन राहुल के साथ उनकी पार्टी हर रोज अपनी स्थिति से नीचे की तरफ ही जा रही है.
राहुल की इसी कमजोरी की तरफ इशारा करते हुए बराक ओबामा ने उन्हें एक अनगढ़ व्यक्ति करार दिया है. जो अपनी योजनाओ और कार्य व्यवहार में पूरी तरह अव्यवस्थित है.
राहुल में 'जुनून' नहीं
बराक ओबामा का दूसरा सबसे बड़ा आरोप है कि राहुल गांधी में जुनून की कमी है. राजनीति जैसे काम में जहां जीत मिलने पर आसमान की ऊंचाईयां मिलती हैं. वहीं मात खाने पर सत्ता से बाहर रहने का दंश और अपमान सहना पड़ता है. वहां पर सफल होने के लिए जुनून पहली शर्त है.
सफल राजनेता बनने के लिए पूरी शारीरिक और मानसिक ताकत झोंकना जरुरी है. जो कि बिना जुनून के संभव ही नहीं. अब राहुल बाबा के जुनून का तो क्या ही कहें? उन्हें हर अंतराल के बाद लंबी छुट्टियों की जरुरत पड़ती है. कई बार तो राहुल बाबा बेहद संकट की घड़ी में अपने साथियों को जूझता छोड़कर विदेश छुट्टियां मनाने चले जाते हैं. जो कि उनमें जुनून की कमी को साफ तौर पर दर्शाता है.
- बिहार चुनाव के तुरंत बाद राहुल गांधी छुट्टियां मनाने के लिए राजस्थान के जैसलमेर पहुंचे. इस सैर सपाटे में राहुल का साथ उनके 10 वीआईपी मित्र ने भी दिया. 2 दिवसीय यह यात्रा सूर्यगढ़ फोर्ट से शुरु होकर रेत के धोरों पर बने वीआईपी टेंट कर चली है. राहुल बाबा ने भले ही बिहार में कांग्रेस को रसातल पर पहुंचा दिया. लेकिन जश्न में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
- साल 2015 में भी बिहार चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी फ्रांस में थे. ये कोई नई बात नहीं है. हर थोड़े दिनों के अंतराल पर राहुल गांधी छुट्टियां मनाने के लिए विदेश दौरे पर जरुर ही चले जाते हैं.
- साल 2018 के आखिर में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए माहौल तैयार हो रहा था. उस वक्त राहुल गांधी अपनी प्रस्तावित खाट सभा को छोड़कर नए साल की छुट्टियां मनाने लंदन पहुंच गए थे.
- 25 अगस्त, 2017 को चीन के डोकलाम विवाद के बीच राहुल गांधी नॉर्वे की राजधानी ओस्लो घूमने चले गए थे.
- दिसंबर 2016 में नोटबंदी के खिलाफ कांग्रेस ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई थी. तब राहुल गांधी विदेश चले गए थे. उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस का पूरा विरोध प्रदर्शन फुस्स हो गया था.
- फरवरी 2015 में संसद के सत्र के दौरान राहुल गांधी अचानक 57 दिनों के लिए गायब हो गए. बाद मे पता चला कि वह बैंकॉक और म्यांमार के बौद्ध मठों में ध्यान लगाना सीख रहे थे.
- 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भी राहुल गांधी अचानक छुट्टियां मनाने चले गए थे. इस दौरान राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क से उनकी खुली जीप पर फोटो भी आई थी.
- जून, 2013 में बाढ़ और भू-स्खलन से बर्बाद हुए उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा के दौरान राहुल गांधी विदेश में छुट्टी मना रहे थे. जबकि उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी.
- 16 दिसम्बर 2012 को हुए निर्भया बलात्कार और हत्या मामले में दिल्ली में चल रहे धरना प्रदर्शन के दौरान भी राहुल गांधी विदेश यात्रा कर रहे थे.
अब बराक ओबामा आखिर क्यों नहीं कहें कि राहुल में जुनून की कमी है. राजनीति जैसे पेशे में छुट्टियां मनाने का इतना शौक रखना राहुल गांधी में जुनून की कमी ही तो बताता है.
'नर्वस' राजनेता राहुल गांधी
राहुल गांधी का व्यवहार अजीबोगरीब होता है. जो कि उनके व्यक्तित्व की नर्वसनेस यानी घबराहट को दिखाता है. जिसे छिपाने के लिए वह बिना सोचे समझे कुछ भी कर जाते हैं. इसकी झलक दिखी जुलाई 2018 में जब नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था. संसद के इस अहम सत्र के दौरान राहुल गांधी ने संसद में आंख मारने जैसी आपत्तिजनक हरकत कर डाली.
राहुल गांधी की यह अजीब हरकत सिर्फ संसद में ही नहीं. बल्कि सड़कों पर भी जारी रहती है. साल 2018 में ही सितंबर के महीने में राहुल गांधी भोपाल गए थे. इस दौरान उन्होंने सड़क पर चाय और समोसा का लुत्फ उठाया. लेकिन इस दौरान उन्होंने एक बार फिर आंख मार दी.
चाय, समोसा और सेल्फी #CongressSankalpYatra pic.twitter.com/cewTNqnAFZ
— Congress (@INCIndia) September 17, 2018
अब सार्वजनिक रुप से ऐसी छिछोरी हरकतें करने पर राहुल गांधी को बराक ओबामा क्यों नहीं 'घबराया हुआ बच्चा' करार दें.
राहुल गांधी को अपनी विरासत, कांग्रेस जनों की उम्मीदों और देश में सशक्त विपक्ष देने की जिम्मेदारी को समझना चाहिए. अगर वह ऐसा कर पाने में सफल होते हैं तो कोई उनकी आलोचना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा. चाहे वह बराक ओबामा ही क्यों न हों.
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