तीन प्रधानमंत्री जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव में गंवाई सत्ता, 1 वोट से भी देश में गिरी है सरकार

भले ही अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा न दिख रहा हो लेकिन पूर्व तीन प्रधानमंत्री ऐसे रहे हैं जिन्हें इसकी वजह से अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है. इनमें से एक प्रधानमंत्री तो बीजेपी के ही थे. इन तीनों प्रधानमंत्रियों के नाम हैं- विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवेगौडा, और अटल बिहारी वाजपेयी.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 26, 2023, 06:21 PM IST
  • तीन प्रधानमंत्रियों ने गंवाई है कुर्सी.
  • केवल एक वोट से भी गिरी थी सरकार.
तीन प्रधानमंत्री जिन्होंने अविश्वास प्रस्ताव में गंवाई सत्ता, 1 वोट से भी देश में गिरी है सरकार

नई दिल्ली. कांग्रेसी सांसद गौरव गोगोई द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा ने चर्चा के लिए स्वीकार कर लिया है. हालांकि अभी इस पर चर्चा का दिन नहीं तय हुआ है. इस अविश्वास प्रस्ताव को नए बने विपक्षी गठबंधन यानी इंडिया का समर्थन हासिल है. कई राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल होने के बावजूद इस अविश्वास प्रस्ताव से नरेंद्र मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं दिख रहा है. इसका कारण है केंद्र की एनडीए सरकार के पास मौजूद पर्याप्त संख्या बल. विपक्षी गठबंधन संख्याबल के मामले में एनडीए से लगभग आधी शक्ति रखता है. 

खैर, भले ही अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा न दिख रहा हो लेकिन पूर्व तीन प्रधानमंत्री ऐसे रहे हैं जिन्हें इसकी वजह से अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है. इनमें से एक प्रधानमंत्री तो बीजेपी के ही थे. इन तीनों प्रधानमंत्रियों के नाम हैं- विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवेगौडा, और अटल बिहारी वाजपेयी.

विश्वनाथ प्रताप सिंह (1990)
विश्ननाथ प्रताप सिंह 1989 में देश के प्रधानमंत्री बने थे और उनकी सरकार 1990 तक रही थी. तब कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए दक्षिण पंथी पार्टी बीजेपी से लेकर लेफ्ट की पार्टियों तक का समर्थन वीपी सिंह को मिला था. लेकिन राम मंदिर के मु्द्दे पर बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. इसी के बाद जब 10 नवंबर 1990 को उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो वह टिक नहीं सकी. अविश्वास प्रस्ताव में वीपी सिंह के समर्थन में सिर्फ 142 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में 346 वोट. अविश्वास प्रस्ताव के बाद वीपी सिंह समेत उनकी पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया था. 

एचडी देवेगौडा (1997)
साल 1996 में हुए लोकसभा चुनावों के बाद देश के प्रधानमंत्री समाजवादी नेता एचडी देवेगौडा बने थे. उस वक्त भी गठबंधन की सरकार बनी थी क्योंकि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस के समर्थन से बनी यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में देवेगौड़ा ने देश के 11वें प्रधानमंत्री की शपथ ली थी. हालांकि यह सरकार केवल दस महीने तक ही चल पाई थी. सीताराम केसरी की अगुवाई वाली कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और एचडी देवेगौडा की सरकार औंधे मुंह गिर पड़ी थी. 11 अप्रैल 1997 को लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में देवेगौडा की अगुवाई वाला गठबंधन केवल 158 वोट हासिल कर सका था. 

अटल बिहारी वाजेपयी (1999)
भारतीय जनता पार्टी से प्रधानमंत्री बनने वाले पहले नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अविश्वास प्रस्ताव में सरकार गंवा दी थी. वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था. पहले अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई थी. दरअसल अन्राद्रमुक की नेता जयललिता ने वाजपेयी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. तब 17 अप्रैल 1999 को लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में वाजपेयी सरकार एक वोट की वजह से गिर गई थी. हालांकि इसके कुछ  महीने बाद ही अटल बिहारी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बने थे. 

क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव, कैसे करता है काम?
अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए जरूरी है कि उसे कम से 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो. सदस्य नियम 184 के तहत लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हैं और इस पर चर्चा की तिथि तय करने के संदर्भ में 10 दिनों के भीतर फैसला करना होता है. सदन की मंजूरी के बाद इस पर चर्चा और मतदान होता है. अगर सत्तापक्ष इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में हार जाता है तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है.

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