कौन हैं जस्टिस बी वी नागरत्ना, जिन्होंने पांच जजों की बेंच में अकेले नोटबंदी को 'गैरकानूनी' बताया

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना पांच जजों की बेंच में अकेली महिला हैं, जिन्होंने 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के केंद्र के 2016 के फैसले को बरकरार रखा था, बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी पर चार जजों के विचार से असहमति जताते हुए कहा कि नोटंबदी में दोष था और फैसला गैरकानूनी था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 3, 2023, 08:25 AM IST
  • '8 नवंबर 2016 की आपत्तिजनक अधिसूचना गैरकानूनी'- नागरत्ना
  • 'नोटबंदी के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया'- नागरत्ना
कौन हैं जस्टिस बी वी नागरत्ना, जिन्होंने पांच जजों की बेंच में अकेले नोटबंदी को 'गैरकानूनी' बताया

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना पांच जजों की बेंच में अकेली महिला हैं, जिन्होंने 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के केंद्र के 2016 के फैसले को बरकरार रखा था, बीवी नागरत्ना ने नोटबंदी पर चार जजों के विचार से असहमति जताते हुए कहा कि नोटंबदी में दोष था और फैसला गैरकानूनी था.

'8 नवंबर 2016 की आपत्तिजनक अधिसूचना गैरकानूनी'- नागरत्ना

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने 124 पन्नों के फैसले को लिखते हुए कहा, मेरा मानना है कि अधिनियम (आरबीआई अधिनियम) की धारा 26 की सब-धारा (2) के तहत जारी की गई 8 नवंबर 2016 की आपत्तिजनक अधिसूचना गैरकानूनी है. इन परिस्थितियों में 500 और 1,000 रुपये के सभी करेंसी नोटों को बंद करने की कार्रवाई गलत है.

उन्होंने कहा कि केंद्र 8 नवंबर 2016 की गजट अधिसूचना जारी करने में आरबीआई अधिनियम की धारा 26 की सब-धारा (2) के तहत शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता था. उन्होंने घोषणा की कि नोटबंदी की कवायद गैरकानूनी थी, क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया था न कि भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड द्वारा. आरबीआई के साथ सरकार के संचार को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने कहा कि बैंक द्वारा स्वतंत्र रूप से विचार का कोई आवेदन नहीं किया गया था.

नोटबंदी के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया 

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि अधिनियम की धारा 26 की सब-धारा (2) के तहत अपेक्षित अधिसूचना जारी करके नोटबंदी नहीं किया जा सकती थी और संसद के पास वास्तव में नोटबंदी करने की क्षमता है. उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में एक अध्यादेश जारी करने का उद्देश्य और उसके बाद, संसद द्वारा 2017 अधिनियम का कानून मेरे विचार में पावर के प्रयोग के लिए वैधता की झलक देने के लिए था.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी के अपने प्रस्ताव को लागू करने के लिए कानून के तहत सोची गई प्रक्रिया का पालन नहीं किया. न्यायमूर्ति नागरत्न ने आगे कहा कि नोटबंदी के फैसले को आरबीआई ने स्वतंत्र रूप से नहीं लिया था, इस मामले में आरबीआई से केवल राय मांगी गई थी. न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा, केंद्र सरकार के द्वारा उद्देश्यों को प्राप्त करने और उसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया मेरे विचार से कानून के अनुसार नहीं थी. नोटबंदी करेंसी के मूल्य का लगभग 98 प्रतिशत विनिमय किया गया है.

नोटबंदी पर अधिसूचना की शर्तें शामिल करना भी गैरकानूनी

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 2016 के अध्यादेश और 2017 के अधिनियम में नोटबंदी पर अधिसूचना की शर्तें शामिल करना भी गैरकानूनी था. उन्होंने कहा कि नोटबंदी केंद्र सरकार की एक पहल थी, जिसका उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाली अलग-अलग बुराइयों को दूर करना था, जिसमें काले धन की जमाखोरी, जालसाजी, आतंक के वित्त पोषण, ड्रग्स की तस्करी समेत अन्य प्रथाएं शामिल थीं. यह संदेह के दायरे से परे है कि उक्त उपाय जिसका उद्देश्य इन भ्रष्ट प्रथाओं को समाप्त करना था, नेक इरादे से किया गया था.

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि अधिनियम के प्रावधान केंद्र को नोटबंदी का प्रस्ताव देने या शुरू करने से नहीं रोकते हैं, लेकिन यह भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची में प्रविष्टि 36 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों के संबंध में ऐसा कर सकते हैं. हालांकि, यह केवल भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश के बाद संसद के एक अधिनियम या संसद के माध्यम से पूर्ण विधान द्वारा किया जाना है. केंद्र सरकार गजट अधिसूचना जारी करके नोटंबदी नहीं कर सकती है.

 (इनपुट- आईएएनएस)

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