नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कर्मचारी पेंशन योजना, 2014 को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू लिलित, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना 2014 की वैधता को बरकरार रखा है. लेकिन कोर्ट ने पेंशन फंड में शामिल होने के लिए 15,000 रुपये मासिक वेतन की सीमा को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर देश भर के लाखों कर्मचारियों पर पड़ेगा.
इन राज्यों की हाई कोर्ट ने कर दिया था रद्द
गौरतलब है कि केरल, राजस्थान और दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार की 2014 की ईपीएफ योजना को रद्द कर दिया था. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और केंद्र सरकार ने केरल, राजस्थान और दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
केरल हाईकोर्ट ने सर्वप्रथम 2018 में कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना 2014 को रद्द कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ ईपीएफओ ने सर्वोच्च अदालत में अपील दायर की थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. बाद में ईपीएफओ और केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुर्नविचार याचिका दायर की थी.
क्या तर्क दिया था केंद्र सरकार ने
पुर्नविचार याचिका दायर करते हुए केन्द्र सरकार ने ये तर्क दिया था कि पेंशन और भविष्य निधि दोनों अलग अलग हैं और भविष्य निधि की सदस्यता खुद पेंशन कोष में तब्दील नहीं होगी. केन्द्र ने अपने पक्ष में तर्क दिया था कि यह योजना कम उम्र के कर्मचारियों के लिए है और अगर इसकी सीमा बढ़ायी जाती है तो इससे वित्तीय बोझ बढे़गा और आर्थिक अंसतुलन पैदा होगा. जबकि कर्मचारियों की ओर से इसका विरोध करते हुए तर्क दिया गया था कि पेंशन का भुगतान ब्याज की राशि से किया जाता है और मूल कोष से इसका कोई लेना देना नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में हुई मामले की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की दो सस्दयों की पीठ ने केन्द्र की पुर्नविचार याचिका को स्वीकार करते हुए मामले को 3 सदस्यीय बेंच को रेफर कर दिया था. जिसके बाद सीजेआई यूयू ललित की बैंच ने इस मामले की सुनवाई की.इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट से उन कर्मचारियों को भी बड़ी राहत मिली है जिन्होंने पेंशन योजना में शामिल होने के किसी विकल्प का इस्तेमाल नहीं किया है, उन्हें छह महीने के भीतर ऐसा करने का मौका दिया है.
इस शर्त को रद्द किया सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही 2014 की योजना की उस शर्त को रद्द कर दिया है जिसके तहत कर्मचारियों को 15,000 रुपये से अधिक के वेतन पर 1.16 प्रतिशत का अतिरिक्त योगदान देना होता था. 2014 के संशोधन ने अधिकतम पेंशन योग्य वेतन को 15,000 रुपये प्रति माह पर सीमित कर दिया था. संशोधन से पहले अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 6,500 रुपये प्रति माह था.
सीजेआई यूयू ललित की पीठ ने सभी पक्षो की बहस सुनने के बाद 11 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा था. शुक्रवार को पीठ की ओर से जस्टिस अनिरूद्ध बोस ने फैसला सुनाया. जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 22 अगस्त 2014 की अधिसूचना संख्या जीएसआर संख्या 609ई में निहित प्रावधान कानूनी और वैध है और पीठ आर.सी. गुप्ता बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त के फैसले से सहमत हैं.
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