सुप्रीम कोर्ट प्रभावशाली अधिवक्ताओं के लिए नहीं, देश की आम जनता के लिए- कानून मंत्री

Laws and Legal news : अदालतों में स्थानीय भाषा के प्रयोग पर केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता आमने —सामने. दिल्ली विश्वविद्यालय ( Delhi University ) में कानून व्यवस्था और शिक्षा के भारतीयकरण विषय पर संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह 

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Sep 29, 2022, 09:01 PM IST
सुप्रीम कोर्ट प्रभावशाली अधिवक्ताओं के लिए नहीं, देश की आम जनता के लिए- कानून मंत्री

नई दिल्ली: केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ( Kiren Rijiju ) ने कहा हैं कि देश की सर्वोच्च अदालत में कुछ लोगो को विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिनकी कोर्ट में प्रभावशाली उपस्थिती होती हैं, जबकि देश की सर्वोच्च अदालत ( supreme court )  इन विशेषाधिकार प्राप्त अधिवक्ताओं के लिए नहीं है, बल्कि भारत देश के आम लोगों के लिए हैं. 

केन्द्रीय मंत्री रिजिजू दिल्ली विश्वविद्यालय ( Dehli University ) के 100वें वर्ष पर विश्वविद्यालय के लॉ फेकल्टी और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे. विश्वविद्यालय कानून व्यवस्था और शिक्षा का भारतीयकरण विषय पर संगोष्ठी का आयोजन कर रहा हैं. रिजिजू समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों को संबोधित कर रहे थे. विश्वविद्यालय के वाइस रीगल लॉज कन्वेंशन हॉल में आयोजित हुए इस समारोह के विशिष्ठ अतिथि सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस संजय किशन कौल और विशेष अतिथि सॉलिस्टर जनरल आफ इंडिया तुषार मेहता रहें. 

समारोह को संबोधित करते हुए रिजिजू ने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत में कुछ अधिवक्ता पूरी तरह से समर्पित रहते हैं. इसके साथ मैं ये कह सकता हूं कि कुछ लोगों की सर्वोच्च न्यायालय में प्रभावशाली उपस्थिति होती हैं, और ये हाईकोर्ट में भी हो सकती हैं.

रिजिजू ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त वकीलों की पहुंच इतनी आसानी से कैसे हैं. उन्होने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत विशेषाधिकार प्राप्त वकीलों के लिए नहीं हैं, बल्कि भारत देश के आम लोगों के लिए हैं. रिजिजू ने कहा कि सर्वोच्च अदालत को देश के हर व्यक्ति और हर क्षेत्र के लिए आसानी से स्वीकार्य और खुला होना चाहिए. 

समारोह को संबोधित करते हुए रिजिजू ने कहा कि मुझे कोई गिरोह या ऐसे लोगों का समूह पसंद नहीं है जो सिस्टम में हेरफेर करते हैं, और फायदा उठाते हैं. एक तरफ सर्वोच्च अदालत में लोगों को 15-20 साल की तारीख नहीं मिलती और कुछ वकीलों को साधारण एक उपस्थिति के साथ ही तारीख मिल जाती हैं. 

रिजिजू ने कहा कि ऐसा क्यों होता हैं. मैंने कुछ आम लोगों को देखा है जो समझ नहीं पा रहे हैं कि कोर्ट में क्या चल रहा हैं. कोर्ट के अंदर जज और वकीलों के बीच क्या बातचीत चल रही हैं ये पीड़ित या याचिकाकर्ता की समझ से बाहर हैं. इसलिए मैं हमेशा स्थानीय भाषा खासतौर लोअर कोर्ट में स्थानीय भाषा को प्रयोग में लाने में विश्वास करता हूं. 

कानूनी व्यवस्था और शिक्षा के भारतीयकरण विषय पर संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मौजूद मेहमानों के अलग-अलग विचार थे. समारोह की शुरुआत में सॉलिस्टर जनरल ने अदालतों में स्थानीय भाषा के प्रयोग को एक कानूनी बाधा बताया. तुषार मेहता ने अपने संबोधन में कहा कि हमें अपनी स्थानीय भाषा और मातृभाषा पर गर्व हैं लेकिन लीगल सिस्टम में सबकुछ स्थानीय रूप में बदल देना उचित समाधान नही हैं.

तुषार मेहता ने कहा कि ना केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया लगातार नई कानूनी चुनौतियां उभर रही हैं. इसके साथ हम यूएसए सुप्रीम कोर्ट, ब्रिटिश कोर्ट, युरोपियन कोर्ट से प्रभावित या मार्गदर्शित होते हैं, ये हम पर निर्भर करता और ये हमारी आजादी हैं कि हमें उन्हें स्वीकार करते हैं या नहीं, लेकिन हम भाषा के बैरियर के जरिए अपने दरवाजे बंद नहीं कर सकते कि हम सिर्फ स्थानीय भाषा में ही सीखना, लिखना या बोलना चाहते हैं. भाषा की बाधा को हमें तोड़ना होगा और उस भाषा को सीखना होगा जो अधिकतर देश समझते हैं या बोलते हैं.

केन्द्रीय मंत्री रिजिजू ने इसके जवाब में कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था के भारतीयकरण का वास्तविक मतलब क्या हैं. इसे समझने की जरूरत हैं. अगर कोई कानून भारतीय आम जनता की समझ से परे हैं तो उस कानून का क्या ​मतलब हैं. हमें कानून को बहुत ही सरल भाषा में बनाने की जरूरत हैं. 

कुछ भाषाएं मैं नहीं समझ पाता हूं. मैं एक सामान्य व्यक्ति हूं इसलिए सामान्य भाषा ही जानता हूं. जब हम सामान्य के बारे में बात करते हैं तब हम आम जनता द्वारा समझने की बात करते हैं. 

उदघाट्न समारोह में विशिष्ठ अतिथि के रूप में मौजूद सुप्रीम कोर्ट जस्टिस संजय किशन कौल ने दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली शहर में बिताए समय की अपनी यादों को याद करते हुए कई अनुभव शेयर किए. जस्टिस कौल ने अपने संबोधन में बाहरी आक्रमण के बावजूद भारतीय संस्कृति के अस्तित्व के बारे में बात करते हुए इसके समावेशी चरित्र की प्रशंसा की. जस्टिस कौल ने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था को अचानक नहीं बदला जा सकता. और धीरे धीरे नए परिवर्तनों को शामिल करते हुए इसका बेहतर विकास किया जा सकता हैं.

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