युवा वयस्कों के रोमांटिक संबंध पर हाई कोर्ट की टिप्पणी, इसे अपराध बनाना नहीं है मकसद

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पॉक्सो पर यह अहम टिप्पणी की है.  दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय मोहब्बत की बुनियाद पर बने सहमति के रिश्ते पर विचार किया जाना चाहिए और मौजूदा मामले में आरोपी को जेल में परेशान होने के लिए छोड़ देना न्याय का मजाक बनाने जैसा होगा. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 14, 2022, 02:24 PM IST
  • किशोरी से शादी करने वाले एक लड़के को जमानत देते हुए टिप्पणी की
  • आरोपी को पॉक्सो अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था
युवा वयस्कों के रोमांटिक संबंध पर हाई कोर्ट की टिप्पणी, इसे अपराध बनाना नहीं है मकसद

नई दिल्ली: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम का मकसद कम उम्र के वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी भी नहीं था. इस कानून का इरादा बच्चों को यौन शोषण से बचाना है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने पॉक्सो पर यह अहम टिप्पणी की है. उच्च न्यायालय ने 17 साल की किशोरी से शादी करने वाले एक लड़के को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की, जिसे पॉक्सो अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया था. 

संबंध की प्रवृत्ति पर गौर करना जरूरी
अदालत ने सचेत किया कि हर मामले से जुड़े तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर संबंध की प्रवृत्ति पर गौर करना जरूरी है, क्योंकि कुछ मामलों में पीड़ित पर समझौता करने का दबाव हो सकता है. 

क्या कहा कोर्ट ने
अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में लड़की को लड़के के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं किया गया था. उच्च न्यायालय ने कहा कि लड़की के बयान से स्पष्ट था कि दोनों के बीच रोमांटिक रिश्ते थे और उनके बीच सहमति से यौन संबंध बने थे. 

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मेरी राय में पॉक्सो का मकसद 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाना था. इसका इरादा कम उम्र के वयस्कों के बीच सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को अपराध बनाना कभी भी नहीं था.” 

प्यार की बुनियाद पर बने सहमति के रिश्ते 
कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय मोहब्बत की बुनियाद पर बने सहमति के रिश्ते पर विचार किया जाना चाहिए और मौजूदा मामले में आरोपी को जेल में परेशान होने के लिए छोड़ देना न्याय का मजाक बनाने जैसा होगा. 

उच्च न्यायालय ने कहा, “हालांकि, पीड़ित लड़की नाबालिग है और इसलिए उसकी सहमति के कोई कानूनी मायने नहीं हैं, लेकिन हमारा मानना ​​है कि जमानत देते समय प्यार की बुनियाद पर बने सहमति के रिश्ते के तथ्यों पर विचार किया जाना चाहिए. मौजूदा मामले में पीड़िता के बयान को नजरअंदाज करना और आरोपी को जेल में परेशान होने के लिए छोड़ देना जानबूझकर न्याय न देने जैसा होगा.” अदालत ने आरोपी को 10,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की गारंटी पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया. उच्च न्यायालय ने आरोपी से जांच में सहयोग देने, अपना पासपोर्ट सौंपने और किसी आपराधिक गतिविधि में लिप्त न होने को कहा. 

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