जस्टिस यू यू ललित: जिनके पिता को इंदिरा गांधी ने नहीं बनने दिया था स्थायी जज

जस्टिस ललित जिनके पिता को इंदिरा गांधी ने स्थायी जज नहीं बनने दिया था. दादा ने गांधी-नेहरू के साथ कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी. देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश के बारे में जानें सबकुछ..

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Aug 26, 2022, 10:59 PM IST
  • जस्टिस उदय उमेश ललित को जानिए
  • 74 दिन के लिए बनेंगे देश के सीजेआई
जस्टिस यू यू ललित: जिनके पिता को इंदिरा गांधी ने नहीं बनने दिया था स्थायी जज

नई दिल्ली: जस्टिस उदय उमेश ललित ये वो नाम हैं, जो पिछले एक माह में सर्वाधिक बार देश के अखबार, टीवी से लेकर इंटरनेट पर लिखा, देखा और सर्च किया गया. देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में सिर्फ 74 दिन के लिए वे सर्वोच्च अदालत की कमान संभालेंगे, लेकिन बेहद कम वक्त के बावजूद जस्टिस ललित से उम्मीदें बेतहाशा हैं. इसके पीछे कारण भी साफ है उनके द्वारा दिए गए फैसले, राष्ट्रीय लोक अदालतों की सफलता और उनका बेहद सरल और सौम्य व्यवहार.

शांत रहकर विवादों से कैसे दूर रहा जाए?
जस्टिस एन वी रमन्ना अपने 16 माह के सीजेआई के कार्यकाल के दौरान जहां 29 भाषण और दर्जनों टिप्पणियों के जरिए हमेशा चर्चा में रहे, वहीं जस्टिस ललित ने अदालत से बाहर सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी बेहद कम टिप्पणियां की है. यहां तक की अदालत में उनकी गिनी चुनी 1 या 2 टिप्पणियां ही सामने आयी हैं. शांत रहकर विवादों से कैसे दूर रहा जा सकता है जस्टिस ललित एक बेहतरीन उदाहरण हैं.

न्याय के प्रति सम्मान बना रहे इसके लिए उन्होंने दर्जनों महत्वपूर्ण केसों की सुनवाई से दूर होने में एक पल भी नहीं लगाया. यहां तक की ऐतिहासिक अयोध्या-बाबरी केस से भी अपना नाम वापस लेने में उन्होंने देरी नहीं की.

एक लीडर के रूप में नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद साबित कर दिया कि वे बेहद सीमित संसाधनों से अधिकतम आउटपुट देने पर विश्वास करते हैं. नालसा के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन रहते हुए जस्टिस ललित ने कोविड के बावजूद करीब 22 राज्यों का दौरा किया. इस रूप में वे एक स्वस्थ जीवन के भी उदाहरण बन जाते हैं.

गांधी-नेहरू के साथ कार्यक्रम में शामिल होते थे दादा
जस्टिस ललित के लिए वकालत केवल एक पेशा नही था, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलने वाली एक ऐसी संस्कृति के रूप में शामिल हो गया, जो उन्हें बचपन से ही परिवार के माहौल में मिला. जस्टिस ललित के दादा रंगनाथ ललित खुद भी एक सम्मानित वकील रहे हैं. रंगनाथ ललित महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू से बेहद प्रभावित थे.

सोलापुर में एक सम्मानित घराने का प्रतिनिधित्व करते रंगनाथ ललित ने देश की आजादी के समय सोलापुर में कई कार्यक्रम का आयोजन करते रहे थे. महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू भी जब सोलापुर में आयोजित अलग अलग नागरिक कार्यक्रम में शामिल हुए तो उन कार्यक्रमों की अध्यक्षता रंगनाथ ललित ने ही की थी.

दादा के बाद वकालत के इस सफर को उनके पिता आर यू ललित ने एक कदम और भी आगे बढ़ा दिया और वे वकालत के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट के जज भी नियुक्त हुए. जस्टिस यूयू ललित अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी के वकील हैं, वकालात के पेशे के इस परिवार में दादा वकील, पिता हाईकोर्ट जज और अब पोते के रूप में जस्टिस ललित ना केवल सुप्रीम कोर्ट जज बने, बल्कि देश के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचे हैं.

वकालत में कैसे आए यूयू ललित?
जस्टिस ललित बचपन से ही अनुशासन में रहने वाले छात्र रहे हैं. उनके वकालत में आने के पीछे भी एक बेटे और पिता के बीच मजबूत संबंधों की कहानी है. जस्टिस ललित के पिता यू आर ललित भी एक बेहद सम्मानित विधिवेत्ता रहे हैं. जस्टिस यू आर ललित बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में एडिशनल जज रहे हैं.

वर्ष 1975 में हाईकोर्ट जज रहते हुए जस्टिस यू आर ललित ने आपातकाल के दौरान देशद्रोह के समान धाराओं में गिरफ्तार किए गए 3 युवाओं को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिये थे. इन युवाओं पर आरोप था कि वे सरकार के खिलाफ कार्य कर रहे थे. उनसे सबूत के तौर पर 48 पर्चे बरामद किए गए थे. इन पर्चो में आपातकाल की निंदा करने वाले लोकसभा सदस्य मोहन धारिया के भाषण की रिपोर्ट थी.

जस्टिस यू आर ललित के इस फैसले को उस समय देश के अलग-अलग हिस्सों में मजिस्ट्रेट की अदालतों में एक नजीर के रूप में पेश किया जाने लगा. इसके जरिए विपक्ष और इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले असंतुष्टों की रिहाई होने लगी.

कहा जाता है कि इस फैसले की वजह से ही इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट जज के रूप में जस्टिस यू आर ललित के कार्यकाल को और बढ़ाने से इनकार कर दिया. तत्कालिन हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस यू आर ललित को स्थायी करने के लिए सिफारिश भेजी थी. जिसे तत्कालीन सीजेआई और कानून मंत्री ने भी अपनी सहमति दे दी थी.

लेकिन इंदिरा गांधी ने कार्यकारी विरोधी न्यायिक फैसलों का हवाला देते हुए एक्सटेंशन बढ़ाने से इंकार कर दिया. जिसके चलते जस्टिस आर यू ललित दो वर्ष बाद ही एडिशनल जज के रूप में ही सेवानिवृत्त हो गए. 6 फरवरी 1976 को सेवानिवृति के बाद जस्टिस यू आर ललित दिल्ली में ही वकालत करने लगे. बाद में उन्हें हाईकोर्ट जज के चलते सुप्रीम कोर्ट का सीनियर काउंसिल मनोनीत किया गया.

जब वकालत ही बन गया लक्ष्य
जिस वक्त उनके पिता हाईकोर्ट से एडिशनल जज के रूप में सेवानिवृत हुए, उस समय जस्टिस यू यू ललित की आयु 19 वर्ष थी और वे उस समय अपनी उच्च स्कूली शिक्षा पूर्ण कर चुके थे. विरासत में मिले वकालत के पेशे का असर जस्टिस ललित पर भी रहा और स्कूली शिक्षा के बाद इसी राह पर आगे बढ़ने लगे. उन्होने मुंबई के गर्वमेंट लॉ कॉलेज में लॉ में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन लिया.

1983 में वकालत की डिग्री मिलने के बाद जस्टिस ललित ने जून 1983 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र और गोवा में वकील के रूप में रजिस्टर्ड हुए. यहीं शुरू हुआ उनके वकालत का सफर जो आज देश के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंच गया है.

और बन गए सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड
जस्टिस ललित ने अपनी शुरुआती प्रेक्टिस उस समय बॉम्बे के बेहद प्रसिद्ध वकील एम ए राणे के साथ शुरू की. एम ए राणे को कट्टरपंथी मानवतावादी विचारधारा के समर्थक के रूप में जाना जाता था, राणे का मानना था कि सोशल वर्क भी एक मजबूत कानून के निर्माण जितना ही महत्वपूर्ण है. एम ए राणे के विचारों का प्रभाव जस्टिस ललित पर ना हुआ हो ऐसा नहीं कह सकते.

बॉम्बे में दो साल की वकालात के बाद 1985 में जस्टिस ललित ने अपनी प्रेक्टिस बॉम्बे से दिल्ली ट्रांसफर कर दी. दिल्ली में उन्होंने सीनियर एडवोकेट प्रवीण एच पारेख का चैम्बर जॉइन किया. कुछ समय बाद ही 1986 में जस्टिस ललित ने देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का आफिस जॉइन किया और उनके साथ ही प्रैक्टिस करने लगे.

1992 तक जस्टिस ललित सोली सोराबजी के आफिस में तब तक रहें जब तक वे खुद सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड नहीं बन गए. 3 मई 1992 को जस्टिस ललित ने सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की योग्यता हासिल कर ली और वे सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के रूप में पंजीकृत भी हो गए.

रामजेठमलानी भी करने लगे थे तारीफ
1992 से लेकर 2004 तक जस्टिस ललित ने अपने प्रेक्टिस को पूरी तरह से अपराधिक मामलों की पैरवी की ओर मोड़ दिया. वे सुप्रीम कोर्ट के साथ देशभर के अलग-अलग हाईकोर्ट में बहुचर्चित मामलो में पेश होने लगे. उनका राम जेठमलानी के बाद आपराधिक केसों की पैरवी वाले बेहतरीन वकीलों में शुमार हो गया.

कई मौकों पर देश के ख्यातनाम वकील राम जेठमलानी ने भी एडवोकेट के रूप में जस्टिस ललित की तारीफ करने से पीछे नहीं रहे. खुद जस्टिस ललित भी रामजेठमलानी का बेहद सम्मान करते रहे.

जस्टिस ललित के बढ़ती प्रैक्टिस ने उन्हे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट जजों की नजर में ला दिया. 29 अप्रैल 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हे सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित कर दिया.

2004 से 2014 - सलमान से लेकर अमित शाह तक की पैरवी
सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट नामित होने के बाद जस्टिस यू यू ललित आपराधिक मामलों में बहुत तेजी से आगे बढ़े. उनके पास देशभर से बहुचर्चित और बेहद गंभीर केसों की एक लंबी सूची तैयार हो गयी. 2014 में सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने से पूर्व उनके द्वारा पैरवी किए गए कुछ महत्वपूर्ण और बहुचर्चित केस इस प्रकार रहे हैं.

- राजस्थान के जोधपुर में अभिनेता सलमान खान के खिलाफ हिरण शिकार मामला
- पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के भ्रष्टाचार का मामला
- गुजरात का बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामला
- इस एनकाउंटर मामले में अमित शाह का पक्ष रख चुके हैं
- पूर्व आर्मी चीफ जनरल वीके सिंह की जन्मतिथी से जुड़ा विवाद
- बाबरी विध्वंस मामले में उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याणसिंह की पैरवी
- तरुण तेजपाल से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में पैरवी
- सूर्यनेली रेप केस के एक अभियुक्त का मामला
- मालेगांव ब्लास्ट से जुड़े एक अभियुक्त के मामले की भी पैरवी
- 2जी घोटाले में सीबीआई की मदद के लिए स्पेशल पीपी नियुक्त किया

पूर्व सीजेआई आरएम लोढा की पसंद
सीनियर एडवोकेट के रूप में जस्टिस ललित ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. उनके सौम्य और सरल व्यवहार के चलते भी वे सुप्रीम कोर्ट जजों के बीच काफी पसंद किए जाने लगे. सीनियर एडवोकेट के रूप में जस्टिस ललित ने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी. उनके सौम्य और सरल व्यवहार के चलते भी वे सुप्रीम कोर्ट जजों के बीच काफी पसंद किए जाने लगे.

इसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्कैम जैसे महत्वपूर्ण मामले में उन्हे सीबीआई का सहयोग करने के लिए स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त किया था. इस केस की सुनवाई के दौरान ही जस्टिस ललित तत्कालिन सीजेआई जस्टिस आर एम लोढ़ा की पहुंच में आये थे.

जस्टिस ललित को देश के पूर्व सीजेआई आरएम लोढा की पसंद माना जाता है. जस्टिस लोढ़ा ने ही सीजेआई रहते हुए उन्हें एक अधिवक्ता से सीधे सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की थी. जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजी गयी सिफारिश को केन्द्र सरकार की मंजूरी के बाद 13 अगस्त 2014 को वे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए. बार काउंसिल से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने वाले वे देश के 16वें जज हैं.

जस्टिस ललित सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जज है जो सीधे बार से जज बनकर सीजेआई के पद तक पहुंचे हैं, उनसे पहले जस्टिस ए एम सीकरी 1971 में बार से सीधे मुख्य न्यायाधीश बनने वाले पहले जज थे.

बतौर जज यूयू ललित के दिए प्रमुख फैसले
सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने के बाद जस्टिस ललित लगातार अपने फैसलो से चर्चा में रहे हैं. जस्टिस ललित कई ऐसी बेंच के सदस्य रहे है जिसने ऐतिहासिक फैसले दिये है तो वही कई फैसलो में वे बेंच के अध्यक्ष रहे हैं. उनके द्वारा दिए गए प्रमुख फैसलों में ये शामिल है.

- तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया
- राजद्रोह कानून को लेकर केन्द्र को नोटिस जारी किया
- कोर्ट अवमानना के मामले में भगोड़े विजय माल्या को 4 माह की सजा
- आम्रपाली के 4200 से अधिक फलैट खरीददारों को बड़ी राहत दी
- एससी एसटी में तुरंत गिरफ्तारी करने पर रोक लगाने का फैसला
- रंजना कुमारी बनाम उत्तराखंड मामले में राज्य के बाहरी लोगों को राहत देने से इंकार
-  प्रद्युम्न बिष्ट केस में कोर्ट के अंदर और बाहर बिना ऑडियो रिकॉर्डिंग सीसीटीवी लगाने के आदेश
- आपसी सहमति से तलाक के मामले में 6 माह का समय की बाध्यता समाप्त
- दहेज प्रताड़ना की आईपीसी की धारा 498 ए में गिरफतारी पर रोक
- केरल के पद्यनास्वामी मंदिर पर त्रावणकोर राजपरिवार का अधिकार
- विवादित स्किन टू स्किन टच फैसले को खारिज करने का फैसला

याकूब मेमन से लेकर अयोध्या केस तक- जिनकी सुनवाई से हुए अलग
सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने के बाद जस्टिस यू यू ललित सर्वाधिक केसों से खुद अलग करने वाले जज के रूप में भी जाने जायेंगे. वकालत के समय देश के अधिकांश बहुचर्चित आपराधिक मामले भी पैरवी के लिए उन्हीं के पास आते थे, ऐसे में सुनवाई के लिए आपराधिक मामले सूचीबद्ध भी उन्ही की बेंच के समक्ष हो जाते थे.

ऐसे मुकदमों की लंबी सूची है जिन मामलों की सुनवाई से जस्टिस ललित ने खुद को अलग कर दिया और वजह कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट है. किसी जज के लिए कॉन्फिलक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मतलब है कि उस मुकदमे से जुड़ी किसी भी पार्टी से कोई पुराना सरोकार होना. सीजेआई बनने से पूर्व जस्टिस ललित इन बहुचर्चित मामलो से खुद को अलग कर चुके है.

- 2014 में सुप्रीम कोर्ट में याकूब मेनन की पुनर्विचार याचिका
- 2015 मालेगांव ब्लास्ट के एक अभियुक्त से जुड़ी याचिका
- 2016 आसाराम बापू केस के गवाह से जुड़े केस की याचिका
- 2017 सूर्यनेली रेप केस को लेकर दायर याचिका से किया अलग
- 2018 मालेगांव ब्लास्ट से जुड़े एक अभियुक्त की याचिका
- 2019 अयोध्या मामले को लेकर संवैधानिक पीठ से किया अलग
- 2018 शिक्षक भर्ती घोटाले में ओम प्रकाश चौटाला की याचिका

सीजेआई के रूप में ये है चुनौतियां
देश के 49 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस यूयू ललित का कार्यकाल मात्र 74 दिनों का ही क्यों ना हो, इसके बावजूद की उनके सामने चुनौतियां भी बेहद मजबूत है. जस्टिस रमन्ना द्वारा जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में लायी गयी तेजी को बनाए रखना भी एक चुनौती होगी.

1). सीमित संसाधनो से अधिकतम आउटपुट देने की चुनौती
2). संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों का शीघ्र निस्तारण
3). लोअर ज्यूडिशरी में पेंडेसी और नियुक्तियों की चुनौती
4). सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में रिक्त पदों को भरना
5). जजों और उनके फैसलों के प्रति सोशल मीडिया पर बढ़ते हमले

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