Ramesh Sippy Birthday: फिल्मों का भारत में आना तो सबको याद है लेकिन उससे ज्यादा याद है फिल्मों में गब्बर का आना, रामगढ़ में ठाकुर का होना और जय-वीरू की जोड़ी का धमाल मचाना. इस कमाल की फिल्म को पर्दे पर लाने वाले कोई और नहीं द ग्रेट रमेश सिप्पी ही थे. रमेश सिप्पी ने काफी छोटी उम्र से ही डायरेक्शन और फिल्म प्रोडक्शन का मोर्चा संभाल लिया था. छोटी सी उम्र में अपने माथे पर कई वर्षों का अनुभव लिए रमेश सिप्पी का अकसर काम के प्रति लगाव देख लोग मजाक भी उड़ाया करते थे. आइए जानते हैं क्या था पूरा मामला-
रमेश सिप्पी का जब उड़ा मजाक
सलीम जावेद जिन्होंने मिलकर कई कमाल की स्क्रिप्ट लिखी और फिल्म 'शोले' में रमेश सिप्पी के साथ काम कर रहे थे. उन्होंने एक बार उन्हें लेकर एक कमाल की टिप्पणी कर दी कहते हैं कि आपको देखकर लगता है कि आपका कोई बचपन कभी था ही नहीं. ऐसा लगता है कि मानो पैदा होते ही आप करीब 20-21 साल के हो गए. हमेशा जरा गंभीर रहते हैं. रमेश कहते हैं कि बचपन का ज्यादा कुछ याद नहीं है बस इतना पता है कि जैसे ही 6 साल का हुआ स्टूडियो में एंट्री की और तबसे मेरी दुनिया वही हो गई.
कहां गया बचपन
रमेश सिप्पी कहते हैं कि ज्यादा बचपना नहीं था मुझमें. स्कूल के सामने सिनेमा था इसलिए फिल्में जरूर देखता और साथ ही किताबें पढ़ने का भी बहुत शौक था इसलिए पता ही नहीं चला कि कब बचपन खत्म हुआ और मैं सेट्स पर पहुंच गया. बता दें कि रमेश सिप्पी ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम करना शुरू कर दिया था.
ना मिले डायलॉग्स
'शहंशाह' में जब उन्हें बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट कास्ट किया गया तो कहते हैं कि उस रोल के लिए मुझे डायलॉग्स ही नहीं दिए गए. एक लाइन भी नहीं थी मेरे पास सिर्फ एक शब्द था मम्मी-मम्मी जिसे कहकर मुझे मां के गले लगना था. इस तरह से मेरा इंडस्ट्री में पहला इंट्रोडक्शन हुआ. बचपन से फिल्म मेकिंग प्रोसेस की तरफ रमेश सिप्पी का रुझान इस कदर बढ़ा कि 'शोले' से लेकर, 'सीता-गीता' और टीवी सीरियल 'बुनियाद' को हमेशा के लिए पर्दे पर अमर कर दिया.
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