Bday Special: हिंदी सिनेमा के 'मुगल-ए-आजम' थे पृथ्वीराज कपूर, कभी थिएटर के बाहर झोला फैलाकर होते थे खड़े

Prithviraj Kapoor Bday Special: पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर 1906 लायलपुर (वर्तमान में फैसलाबाद) के समुंद्री में हुआ था. यह शहर अब पाकिस्तान में आता है. उन्होंने हिंदी सिनेमा की दुनिया से पहचान कराई थी.  

Written by - Manushri Bajpai | Last Updated : Nov 3, 2022, 11:13 AM IST
  • बचपन से ही एक्टिंग के शौकीन थे पृथ्वीराज
  • हिंदी सिनेमा को दुनियां में दिलाई पहचान
Bday Special: हिंदी सिनेमा के 'मुगल-ए-आजम' थे पृथ्वीराज कपूर, कभी थिएटर के बाहर झोला फैलाकर होते थे खड़े

Prithviraj Kapoor Bday Special: हिंदी सिनेमा से कपूर खानदान का बहुत पुराना रिश्ता है. इस रिश्ते की नींवपृथ्वीराज कपूर ने रखी थी. हिंदी सिनेमा के  'मुगल-ए-आजम' कहे जाने वाले पृथ्वीराज कपूर का जन्म आज के दिन ही लायलपुर के समुंद्री में हुआ था. बंटवारे के बाद यह इलाका अब पाकिस्तान में चला गया. पृथ्वीराज कपूर के पिता बशेश्वरनाथ कपूर इंडियन इंपीरियल पुलिस में पुलिस अधिकारी थे. बचपन से ही अभिनेता को अभिनय का शौक था. अभिनेता ने लायलपुर से थिएटर की शुरुआत कर दी थी.

इस फिल्म से बने थे सुपरस्टार 

साल 1941 में सोहराब मोदी के निर्देशन में बनी फिल्म 'सिकंदर' ऐसी फिल्म थी जिसने पृथ्वीराज कपूर की किस्मत बदल दी थी. उन्हें इस फिल्म ने सुपरस्टार बना दिया था. इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, सोहराब मोदी और जहूर राजा लीड में थे.

हिंदी सिनेमा में अपार सफलता अर्जित करने के बाद इस फिल्म को पारसी में भी रिलीज किया गया. द्वितीय विश्वयुद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बनी इस फिल्म ने हिंदी सिनेमा को एक नया मुकाम और दुनिया में पहचान दिलाई.

पृथ्वी थिएटर है बेहद खास

हिंदी सिनेमा में कई साल फिल्म और थिएटरों से जुड़े रहने के बाद पृथ्वीराज ने सन 1944 में पृथ्वी थिएटर की को बनाया था. इस थिएटर से जुड़ा उनका समूह देश भर में घूम घूमकर कला प्रदर्शन किया करता था. कालिदास नाटक 'अभिज्ञानशाकुन्तल' इस थिएटर के रंगमंच पर प्रदर्शित होने वाला पहला नाटक था.

कहा जाता है कि महात्मा गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पृथ्वी थिएटर में नौजवानों को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने के प्रेरित करने के लिए कई नाटको को किया गया था. पृथ्वी थिएटर देश के कई ऐतिहासिक किस्सों और पलों का गवाह. इतना ही नहीं ये देश की अमूल्य इमारतों में से भी एक है.

झोला फैलाकर थिएटर के बाहर होते थे खड़े

कहा जाता है कि पृथ्वीराज कपूर बहुत ही दयालू लेकिन अनुशासन पसंद इंसान थे. थिएटर में हर शो के बाद पृथ्वीराज गेट पर एक झोला लेकर खड़े हो जाते थे. इससे शो के निकलने वाले लोग उस थैले में कुछ पैसे डाल दिया करते थे. इन पैसों से पृथ्वीराज थिएटर में काम करने वाले कर्मचारियों की मदद करते थे.

पृथ्वीराज ने लगभग 16 के करियर में पृथ्वी थिएटर में लगभग 2662 नाटकों का निर्देशन किया है. बात वर्तमान की करें तो अब इसकी देखभाल शशि कपूर की बेटी संजना कपूर करती हैं.

विदेशी फिल्म फेस्टिवल में पहली फिल्म हुई प्रदर्शित

पृथ्वीराज कपूर की फिल्म को अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में जगह मिली थी. देवकी बोस के निर्देशन और ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी के प्रोडक्शन में बनी फिल्म 'सीता' किसी भी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित होने वाली पहली भारतीय फिल्म थी.

इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर के साथ गुल हामिद और दुर्गा खोटे ने मुख्य किरदार निभाए थे. साल 1934 में इस फिल्म को दूसरे वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया था. फिल्म में पृथ्वीराज कपूर राम नाम के किरदार में नजर आए थे. 

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