वायनाड के त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे राहुल गांधी, एनी राजा-सुरेंद्रन ने बढ़ाई मुश्किलें, क्षेत्र में देना पड़ेगा ज्यादा वक्त

2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो करीब पौने तीन लाख वोट पाने के बावजूद भी सीपीआई के कैंडिडेट सुनीर को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन अब एनी राजा के कैंडिडेट होने के कारण सीपीआई इस बार इस सीट पर और भी ज्यादा जोर लगा सकती है. वहीं बीजेपी ने भी तुषार वेलापल्ली की तुलना में ज्यादा मजबूत और लोकप्रिय कैंडिडेट मैदान में उतारा है. सुरेंद्रन भले ही चुनाव न जीत सकें लेकिन अपने दमखम से चुनावी नतीजे का रुख मोड़ सकने में सक्षम हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 1, 2024, 05:07 PM IST
  • वायनाड में दिलचस्प हुई लड़ाई.
  • राहुल के लिए है कितनी बड़ी चुनौती.
वायनाड के त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे राहुल गांधी, एनी राजा-सुरेंद्रन ने बढ़ाई मुश्किलें, क्षेत्र में देना पड़ेगा ज्यादा वक्त

नई दिल्ली. केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर इस बार चुनावी लड़ाई राहुल गांधी के लिए 2019 जैसी आसान नहीं होने वाली है. इस सीट पर राजनीतिक लड़ाई दिलचस्प बनाई है CPI महासचिव डी राजा की पत्नी एनी राजा राजा ने. इस दिलचस्प लड़ाई को त्रिकोणीय संघर्ष में तब्दील करने की कोशिश कर रही है केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी. बीजेपी ने यहां से पार्टी की केरल यूनिट के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को चुनावी मैदान में उतारा है.  

एनी राजा ने लड़ाई बनाई 'मुश्किल'
मुस्लिम बहुल लोकसभा सीट पर ईसाई लोगों की आबादी भी अच्छी खासी है. एनी राजा के लड़ाई में कूद जाने से राहुल गांधी के लिए वायनाड सीट इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह 'केक वॉक' नहीं साबित होती दिख रही है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का केरल में अभी अच्छा खासा प्रभाव है और केरल की सत्ता पर एलडीएफ का काबिज है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी केरल के सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है. ऐसी स्थिति में राहुल गांधी को एक मजबूत लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है. यानी देश में चुनाव प्रचार के साथ-साथ राहुल को अपनी सीट पर भी अच्छा खासा वक्त देना पड़ सकता है.

बीजेपी के तेजतर्रार नेता हैं के.सुरेंद्रन
भारतीय जनता पार्टी के नेता के सुरेंद्रन भी केरल में काफी लोकप्रिय हैं. हालांकि अभी तक वह लोकसभा या विधानसभा का चुनाव नहीं जीत सके हैं. लेकिन विधानसभा के चुनाव में एक बार उन्हें महज 89 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी के तेजतर्रार नेताओं में शुमार किए जाने वाले सुरेंद्रन ने बीता लोकसभा चुनाव पत्थमथिट्टा सीट से लड़ा था. पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर एनडीए की तरफ से भारत धर्म जन सेना के प्रत्याशी तुषार वेलापल्ली ने चुनाव लड़ा था. सीपीआई ने पीपी सुनीर को मैदान में उतारा था. राहुल गांधी को सात लाख से ज्यादा वोट हासिल हुए थे और वो चार लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे. 

लड़ाई को सुरेंद्रन ने त्रिकोणीय बनाया 
लेकिन इस बार के. सुरेंद्रन लड़ाई को त्रिकोणीय बना रहे हैं. वैसे भी दक्षिण भारत में इस बार भाजपा अपना प्रभुत्व-प्रभाव और सीटें बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रयासरत है. कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी के वायनाड सीट पर खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोई बड़ी रैली हो. कांग्रेस की गढ़ कहीं जाने वाली अमेठी सीट से भारतीय जनता पार्टी पहले ही राहुल गांधी को हरा चुकी है. अब बीजेपी पूरी कोशिश करेगी कि राहुल गांधी अपनी दूसरी लोकसभा सीट यानी वायानाड से भी हार का सामना करें.

वायनाड की हार से दूरगामी संदेश!
इससे दो दूरगामी असर देखने को मिलेंगे. पहला, राहुल गांधी की वायनाड सीट से हार यानी दक्षिण भारत की सीट से हार एक बहुत बड़ा सांकेतिक संदेश देगी. बीते कुछ सालों के दौरान कांग्रेस पार्टी यह मैसेज देने की कोशिश करती रही है कि दक्षिण भारत में वह बीजेपी से ज्यादा मजबूत है. वायनाड में राहुल की हार से कांग्रेस के इन नैरेटिव को झटका लग सकता है. दूसरा संदेश यह भी जाएगा कि जब राहुल अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं पा रहे हैं तो पार्टी का कायाकल्प कैसे करेंगे!

नतीजों का रुख मोड़ सकते हैं सुरेंद्रन
हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो करीब पौने तीन लाख वोट पाने के बावजूद भी सीपीआई के कैंडिडेट सुनीर को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन अब एनी राजा के कैंडिडेट होने के कारण सीपीआई इस बार इस सीट पर और भी ज्यादा जोर लगा सकती है. वहीं बीजेपी ने भी तुषार वेलापल्ली की तुलना में ज्यादा मजबूत और लोकप्रिय कैंडिडेट मैदान में उतारा है. सुरेंद्रन भले ही चुनाव न जीत सकें लेकिन अपने दमखम से चुनावी नतीजे का रुख मोड़ सकने में सक्षम हैं. 

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