Ground Zero: लगातार हार के बाद सपा ने 'यादवलैंड' में बदली रणनीति, जीत के लिए बनाया ये प्लान

इटावा, फिरोज़ाबाद, बदायूं, मैनपुरी, संभल, एटा, कन्नौज जैसी सीटें ऐसी हैं, जहां समाजवादी पार्टी अपने गठन के बाद से ही चुनावी सफलता प्राप्त करती रही हैं.

Written by - Shivam Pratap | Last Updated : Jan 23, 2022, 06:23 PM IST
  • 2017 में भाजपा ने इसी यादव लैंड में सपा को बुरी तरह शिकस्त दी
  • 2019 में उन सीटों पर मात जहां से यादव परिवार चुनावी मैदान में था
Ground Zero: लगातार हार के बाद सपा ने 'यादवलैंड' में बदली रणनीति, जीत के लिए बनाया ये प्लान

नई दिल्ली: सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के गृह जनपद इटावा और उसके आस-पास के यादव बहुल इलाकों फिरोजाबाद, कन्नौज, औरैया, बदायूं, एटा, मैनपुरी आदि को समाजवादी पार्टी का 'गढ़' कहा जाता है. इटावा फ़िरोज़ाबाद, बदायूं, मैनपुरी, संभल, एटा, कन्नौज जैसी सीटें ऐसी हैं, जहां समाजवादी पार्टी अपने गठन के बाद से ही चुनावी सफलता प्राप्त करती रही है.

ख़ासकर तब, जबकि मुलायम सिंह यादव के परिवार के लोग चुनाव लड़ रहे हों. यहां तक कि साल 2014 में भी समाजवादी पार्टी ने जो 5 सीटें जीती थीं, उनमें से 4 सीटें (फिरोजाबाद, कन्नौज, मैनपुरी और बदायूं,) इसी इलाक़े की थीं और एक सीट पुर्वांचल में मुलायम सिंह यादव की आज़मगढ़ रही थी. इनमें से कई सीटें ऐसी हैं जहां यादव मतदाता भी क़रीब 18-20 प्रतिशत है, हालांकि इटावा सपा हाथ से 2014 में ही निकल गया था.

यादव लैंड में सपा को बुरी तरह शिकस्त मिली
2017 में भाजपा ने इसी यादव लैंड में सपा को बुरी तरह शिकस्त दी उसके बाद 2019 में BJP ने उन सीटों पर भी समाजवादी पार्टी को शिकस्त दे दी जहां से यादव परिवार के लोग चुनावी मैदान में थे. ऐसा तब हुआ जबकि ढाई दशक की राजनीतिक और व्यक्तिगत दुश्मनी को ताख़ पर रखकर बहुजन समाज पार्टी भी उसके साथ खड़ी थी. ऐसे में ये सवाल लाज़िमी हो जाता है कि आख़िर ऐसा क्यों हुआ?

2022 विधानसभा चुनाव में अब महज 20 दिन का भी समय नहीं बचा है ऐसे में समाजवादी पार्टी अपने प्रत्याशियों का चयन करके उनका एलान कर रही है. 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ लड़ने के बावजूद सपा का यादवलैंड से पूरी तरह सफाया हो गया था. 

सपा के हार की प्रमुख 3 वजह थी 
1- टिकट वितरण में हार जीत के कॉम्बिनेशन को नजरंदाज कर सिर्फ अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव के करीबियों को महत्व दिया गया, सपा से 2-2 बार लगातार चुनाव जीत रहे सिटिंग विधायकों के टिकट सिर्फ इसलिए काटे गए क्योंकि वो शिवपाल यादव के करीबी थे.

2- दूसरी बड़ी वजह पार्टी के संस्थापक सदस्य और पार्टी में संगठन की जान शिवपाल यादव को नजरंदाज करना था. इस पूरे क्षेत्र में मुलायम सिंह यादव सपा अध्यक्ष और CM बन जाने के बाद शिवपाल यादव ने ही सक्रियता बनाई और लोगों को पार्टी से जोड़ा, शिवपाल के अपमान से नाराज कई लोगों ने सपा को वोट नहीं दिया.

3. तीसरी और बड़ी वजह मोदी लहर रही जिसने सभी जातिगत समीकरण तोड़े और सपा के विरोधी एकजुट हो गए, PM मोदी ने रैली में कानून व्यवस्था और सपा परिवार का मनमानापन का जिक्र करके इटावा यादवलैंड में सपा बनाम सब का चुनाव कर दिया.

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इन सीटों पर गड़बड़ समीकरण

अगर उदाहरण स्वरूप बात करें तो  सदर इटावा से सिटिंग MLA और Ex MP रघुराज शाक्य का टिकट कट गया क्योंकि वो शिवपाल के करीबी थे. टिकट सपा की खिलाफत करके नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने वाले और रामगोपाल यादव के करीबी कुलदीप गुप्ता संटू को दिया गया. परिणाम स्वरूप BJP की सरिता भदौरिया विधायक बनीं. इटावा की ही दूसरी सीट भरथना जहां से मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ते रहे हैं, वहां पार्टी ने 2 बार से चुनाव जीत रहीं सिटिंग MLA सुखदेवी वर्मा का टिकट काटकर अखिलेश यादव के करीबी पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया को युवा बेटे को टिकट दिया, परिणाम स्वरूप BJP की सावित्री कठेरिया MLA बनीं. इटावा की तीसरी सीट जसवंतनगर से तो स्वयं शिवपाल यादव खड़े थे, सिर्फ वही चुनाव जीते. 2017 विधानसभा चुनावों में सपा ने गठन के बाद से सबसे बड़ी हार का सामना किया जबकि इस बार कांग्रेस भी साथ लड़ी थी. 

अब बदल गई है पूरी रणनीति
लगातार हार से मिली सबक के बाद स्थानीय नेताओं ने सपा के टॉप लीडरशिप के साथ चिंतन मनन किया और अब सपा वापस उसी ढर्रे पर लौटी जहां से जीत शायद मुमकिन हो, यानी टिकट सिर्फ उसे जो पार्टी को जीत दिलाए. पार्टी ने इस बार रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए पूरे यादावलेंड में किसी बड़े सपा नेता के कहने पर कोई टिकट नहीं दिया बल्कि हर समीकरण को देखकर टिकट वितरण किया है. 

सदर इटावा सीट पर पार्टी को 17 चुनाव से पहले रघुराज शाक्य ने 2 बार विधानसभा और 1 बार लोकसभा चुनाव में जीत दिलाई थी, इटावा सीट से ही पूर्व सांसद रहे राम सिंह शाक्य के पुत्र सर्वेश शाक्य को यहां से पार्टी अब टिकट दे सकती है जो शायद उनके लिए जीत के दरवाजे खोल दे क्योंकि इस सीट पर हमेशा से शाक्यों का दबदबा रहा है. इटावा की ही दूसरी सीट की बात करें तो यहां से पार्टी BSP में लगातार 2 चुनाव हारकर सपा में शामिल हुए राघवेंद्र दोहरे को टिकट दे रही है.

यहां तक कि पार्टी ने इटावा, औरैया, कन्नौज, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, संभाल इत्यादि सीटों पर संगठन के जरिए हर जगह से 4 नाम मांगे थे और उनको लेकर लगातार बैठकें की, और अंत में जिताऊ दिखने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया गया भले ही उनकी पहुंच पार्टी में बहुत ऊपर तक न हो. बहरहाल देखना होगा कि क्या इस बार अपने गढ़ में अखिलेश यादव अपना खोया हुआ वर्चस्व वापस ले पाते हैं या एक बार फिर मोदी और योगी की जोड़ी उन्हे झटका देगी.

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