नई दिल्ली: कोरोना महामारी के हालात किसी से छिपे नही हैं. पर देश के मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर शहर में अस्पतालों में कोरोना इलाज के नाम पर ठगी खेल फल फूल रहा है. हालात ये है कि स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य महकमे की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है.
कोरोना की आड़ में निजी अस्पतालों का 'लूट खेल'
निजी अस्पतालों के ठगी के खेल में प्रशासन ओर स्वास्थ्य महकमा मूक दर्शक बना हुआ है. ऐसा आरोप इंदौर शहर से सामने आ रहा है. देवास के रहने वाले और टेलरिंग का काम करने वाले राहुल धारीवाल ने खुग को इस ठगी का शिकार बताया है. इन्होंने अपनी मां भारती धारीवाल को 18 अप्रैल को इंदौर के अरिहंत हॉस्पिटल में एडमिट कराया. अस्पताल ने शुरुआती लक्षण निमोनिया का बताया, बाद में इनका COVID 19 सैम्पल लिया गया. 10 दिन बाद इस बुजुर्ग का रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव मिला.
इस बीच अरिहंत अस्पताल ने राहुल को 1 लाख 12 हजार रुपये का बिल दे दिया. साथ में 38 हजार रुपये दवाई के भी लग गए. अब राहुल की मां का इलाज, शहर के रेड जोन अस्पताल, यानी अरविंदो अस्पताल में चल रहा है.
तो क्या वाकई इंदौर में चल रहा है काला धंधा?
कुछ इसी तरह की कहानी मोम्मद शादाब की है. शादाब ने अपने पिता बूंदों खान को 6 अप्रैल को सुयश अस्पताल में एडमिट कराया. 7 अप्रैल को covid19 का सैम्पल लिया गया. 9 अप्रैल को रिपोर्ट निगेटिव आ गयी. मोहम्मद शादाब के पिता की हालत में सुधार नही आया.
इनका कोरोना सैम्पल दोबारा लिया गया. कोरोना रिपोर्ट निगेटिव बताकर अस्पताल ने इनसे 23 अप्रैल को 2 लाख 20 हजार रुपये लिए और मरीज को डिस्चार्ज कर दिया. एक दिन बाद ही यानी 24 अप्रैल को मोहम्मद शादाब को अस्पताल से फोन आया, उन्हें बताया गया कि उनके पिता की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव है.
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री महेंद्र हार्डिया का गंभीर आरोप
इंदौर में आजकल आपको ऐसे दर्जनों पीड़ित मिल जाएंगे. राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री महेंद्र हार्डिया ने निजी अस्पतालों पर लापरवाही और लूट का आरोप लगाया है. हालांकि अस्पताल संचालक ने पूर्व मंत्री के आरोपों को खारिज कर दिया.
दरअसल, अस्पतालों की ये चालाकी स्वास्थ्य विभाग की एक पहल के बाद तेज़ हो गई है. इंदौर को बचाने के लिए अस्पतालों को तीन जोन में बांट दिया है.
इंदौर में येलो ज़ोन के लगभग 12 बड़े अस्पताल हैं. मरीजो में कोरोना के प्रारंभिक लक्षण होने के बाद इन्हें संदिग्ध कोरोना मरीज मानते हुए येलो अस्पताल में भर्ती कराया जाता है.
भर्ती के बाद covid-19 सेम्पल से कोरोना रिपोर्ट आने में लगभग 10 से 12 दिन लग जाते हैं. इसी का फायदा उठाकर मरीज को अस्पताल की ओर से भारी भरकम बिल थमा दिया जाता है. हालांकि, इंदौर के चीफ मेडिकल और हेल्थ ऑफिसर की इस मामले पर अपनी सफाई है.
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शासन प्रशासन भले ही दम भर रहा हो कि कोरोना के खिलाफ जंग में पूरी तैयारी है, लेकिन कोविड 19 की रिपोर्ट आने में हो रही देरी अस्पतालों को पैसा बनाने का मौका जरूर देते नजर आ रहे हैं. ऐसे में अगर सचमुच इंदौर के प्राइवेट अस्पतालों में ये गंदा धंधा चल रहा है तो, उसकी जांच होगी जरूरी है.
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