नई दिल्ली: तबलीगी जमात का इतिहास 93 साल पुराना है. यह संस्था इस्लाम के प्रचार के लिए बनी है. लेकिन इसका मुख्यालय दुनिया के 57 इस्लामी देशों में न होकर भारत में है. इस संगठन के तार आतंकियों से भी जुड़े हैं. ये सब ऐसे खुलासे हैं जिनपर हमारा ध्यान अब गया है. जब कोरोना संकट के दौरान तबलीगियों के काले कारनामे सामने आ रहे हैं.
देश में कोरोना फैलाने के जिम्मेदार तबलीगी
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने जानकारी दी है कि भारत में फिलहाल कोरोना के मरीजों की कुल संख्या दोगुनी होने में औसतन 4.1 दिन का समय लग रहा है. अगर तबलीगी तब्लीगी जमात के मरीजों को इसमें से हटा दिया जाए तो यह रफ्तार बेहद कम यानी कि लगभग आधी हो जाती है.
तबलीगी जमात से इतर मरीजों की संख्या को दोगुनी होने में अभी 7.4 दिन का वक्त लग रहा है. आंकड़े बताते हैं कि देश में कोरोना मरीजों की कुल संख्या में एक तिहाई अकेले तब्लीगी जमात से जुड़े हैं. उसपर से डॉक्टरों, नर्सों और सुरक्षाकर्मियों से तबलीगी जमातियों का रवैया अत्यधिक घिनौना है. जिसे देखकर पूरा देश गुस्से से उबल रहा है.
तबलीगियों के इस घृणित रवैये के पीछे है कट्टरपंथी सोच
तबलीगी जमात की स्थापना 1927 में हरियाणा के मेवात इलाके में हुई. इस संगठन का पहला सम्मेलन यानी मरकज 1941 में हुआ. इस संगठन का उद्देश्य वही है जिसके लिए हर कट्टरपंथी पूरी जिंदगी संघर्ष करता है. यानी दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाना(पूरी दुनिया को मुसलमान बना देना).
यही सोच इस संगठन की जहालत और पिछड़ेपन का कारण है. तबलीगी जमात इस्लाम की सलाफी विचारधारा से प्रभावित है. इसके तौर तरीके इतने दकियानूसी हैं कि इस्लाम को पैदा करने वाले देश सउदी अरब ने भी इसपर प्रतिबंध लगा दिया.
आतंकवाद पैदा करते हैं तबलीगी
तबलीगी जमात अपने आप में कोई आतंकवादी संगठन नहीं है. लेकिन इसे आतंकवाद की जननी कहा जा सकता है. क्योंकि ये आतंकवाद को पनपने के लिए खाद पानी मुहैया कराती है.
- साल 2011 में जारी विकीलीक्स के दस्तावेज़ों से खुलासा हुआ कि कि अलकायदा ने कई यात्रा सबंधी दस्तावेज़ और छिपने का ठिकाना हासिल करने के लिए दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित तबलीगी जमात के हेडक्वार्टर का इस्तेमाल किया था
-आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सुडानी सदस्य हामिर मोहम्मद ने तबलीगी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान का वीज़ा लेने की कोशिश की थी.
-ग्लास्गो एयरपोर्ट पर हमले की कोशिश के आरोप में जिस संदिग्ध भारतीय नागरिक कफील अहमद को गिरफ्तार किया गया था. उसके तार भी निजामुद्दीन के इसी तबलीगी जमात से जुड़े पाए गए.
इस तरह काम करती है तबलीगी जमात
तबलीगी जमात के मुख्यालय से दुनिया के हर देश एक अमीर(अध्यक्ष) नियुक्त किया जाता है. उसके नीचे राज्य स्तर पर सूबा-अमीर(प्रदेश अध्यक्ष) नियुक्त किये जाते हैं और फिर उनके नीचे हर एक धर्मस्थल तक एक अमीर(जिला प्रमुख) नियुक्त किया जाता है.
ये अमीर हर धर्मस्थल से 10-20 लोगों का झुंड बनाकर किसी दूसरे इलाके की यात्रा करता है. इस दौरान इनकी कोशिश रहती है कि बाहरी लोगों की निगाह इनपर नहीं पड़े. ये अपनी संख्या कम से कम रखते हैं. इसके अलावा ये लोग अपना सारा राशन-पानी, यहां तक कि गैस चूल्हा और बर्तन तक साथ लेकर चलते हैं. जिससे कि स्थानीय प्रशासन की निगाहों में आने से बचा जाए.
तबलीगी जमात का इस्लामिक प्रचार लगातार चलता रहता है. इसके लिए नए नए रंगरुट भर्ती किए जाने की प्रक्रिया लगातार जारी रहती है.
ये लोग स्थानीय लोगों को पहले से तय सिलेबस के अनुसार व्याख्यान देते हैं और उन्हें अपनी जमात से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं. इस तरह के हर सेशन के बाद वहां बैठे लोगों में से 5 से 10 फीसदी लोग इनसे जुड़ने के लिए सहमत हो जाते हैं.
इन्हीं लोगों में से अगला प्रचारक चुना जाता है. जिन्हें अपना निश्चित समय इस्लाम के प्रचार के लिए देना होता है.
ये निश्चित समय चार चरणों में बंटा हुआ होता है- जिसे कि तीन दिन, दस दिन(अशरा), 40 दिन(चिल्ला) और 120 दिन (माय्यावा अशरा) कहते हैं.
तबलीगी जमात की गतिविधियां साल के कुछ खास वक्त में अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती हैं. तब्लीगी जमात का पहला चरण तीन दिन का होता है जिसमें स्कूल-कॉलेजों के छात्र, नौकरीपेशा लोगों और व्यस्त जीवन जीने वाले लोगों को लक्ष्य बनाया जाता है. ये सेशन ज्यादातर वीकेंड या फिर दो तीन दिन की लगातार सरकारी छुट्टियों के दौरान आयोजित किया जाता है. इसका दायरा स्थानीय स्तर पर 15-20 कि.मी. के इर्द गिर्द होता है.
तबलीगियों का दूसरा सेशन दस दिन(अशरा)का होता है. जो कि आम तौर पर साल के आखिरी हिस्से यानी 25 दिसंबर से 5 जनवरी के बीच आयोजित किया जाता है. इस दौरान 30 से 40 किलोमीटर इलाके को कवर किया जाता है.
तबलीगी जमात का तीसरा चरण चालीस दिन (चिल्ला) का होता है. ये देश में हर जगह कहीं ना कहीं चलता ही रहता है. इसकी कोई खास समय अवधि नहीं होती है. इसका दायरा 400-500 कि.मी. तक का होता है.
तबलीगी जमात का चौथा चरण 120 दिन(माय्यावा अशरा) का होता है. इसका दायरा अंतरराष्ट्रीय होता है. इन चरण में उन्हीं विश्वासपात्र लोगों को भेजा जाता है जो बहुत लम्बे समय से जमात की गतिविधियों से जुड़े हुए होते हैं. ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें आने वाले समय में किसी इलाके का अमीर(अध्यक्ष) बनाया जाना होता है.
दिल्ली का दफ्तर है तबलीगी जमात का मुख्यालय
तबलीगी जमात इस्लाम के प्रचार का सबसे बड़ा मूवमेन्ट है. लेकिन मजेदार बात ये है कि इसका मुख्यालय दुनिया के 56 इस्लामिक देशों में ना होकर धर्मनिरपेक्ष देश भारत में है. निजामुद्दीन दरगाह के पास ग़ालिब की मज़ार के ठीक सामने बनी हुई तीन-मंजिला सफ़ेद बिल्डिंग, इस अंतर्राष्ट्रीय कट्टरपंथी विचारधारा की प्रचारक तब्लीगी जमात का वैश्विक मुख्यालय है. जहां दुनिया भर के जमाती आकर ट्रेनिंग प्राप्त करते हैं और उसे दुनिया भर के 200 से अधिक देशों में कट्टरपंथ फैलाते हैं.
भारत में कोरोना त्रासदी के दौरान नर्सों के सामने नग्न हो जाना. सुरक्षाकर्मियों और डॉक्टरों पर थूकना, जहां तहां मलत्याग कर देने जैसी हरकतों से पता चलता है कि तबलीगी जमात के लोगों को किस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. कट्टरपंथ फैलाने के लिए यह लोग इंसानियत को ताक पर रख देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.
देश पर कोरोना संकट आने के बाद ही मीडिया और सरकार का ध्यान तबलीगी जमात नाम के इस धीमे जहर पर गया है जो कि देश को पिछले 93 सालों से खोखला करने में जुटा हुआ है. इसकी करतूतों पर कानूनी रुप से रोक लगाना बेहद आवश्यक है.
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