Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह क्या है और शालिग्राम का क्या अर्थ है? जानें- धर्म से जुड़ी बड़ी बात

Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह पर तुलसी का विवाह शालिग्राम से क्यों किया जाता है? शालिग्राम क्या है? आपके सभी सवालों के जवाब नीचे दिए गए हैं.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Nov 12, 2024, 07:19 PM IST
  • तुलसी विवाह क्या है?
  • इसलिए आज से शुरू होंगी शादियां
Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह क्या है और शालिग्राम का क्या अर्थ है? जानें- धर्म से जुड़ी बड़ी बात

What is Tulsi Vivah: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में किसी बड़े त्यौहार से कम नहीं. इस साल 12 नवंबर को तुलसी विवाह मनाया जा रहा है. यह दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी है. इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है. तुलसी विवाह औपचारिक रूप से हिंदू धर्म में शादी के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है.

तुलसी विवाह के पीछे क्या कारण है और तुलसी किससे विवाह कर रही है?

तुलसी विवाह क्या है?
तुलसी विवाह तुलसी, यानी पवित्र तुलसी के पौधे का विवाह शालिग्राम से किया जाता है, जो भगवान विष्णु का एक रूप हैं. ऐसा माना जाता है कि तुलसी पिछले जन्म में वृंदा थीं, जो कालनेमि नामक एक असुर (राक्षस) की पुत्री थीं. उनका विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था, जो जल से पैदा हुआ था और अत्यंत शक्तिशाली था.

वृंदा एक पवित्र और धार्मिक महिला थीं और इस प्रकार, उनके पति के प्रति उनकी भक्ति उनके चारों ओर एक शक्तिशाली ढाल के रूप में काम करती थी. जालंधर को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि जब तक उसकी पत्नी उसके प्रति वफादार रहेगी, तब तक कोई भी उसे हरा नहीं पाएगा.

इसलिए, जालंधर ने सबपर जीत हासिल करना शुरू कर दिया और देवताओं को जल्द ही भगवान विष्णु से मदद मांगनी पड़ी. पद्म पुराण में कहा गया है कि विष्णु को एहसास हुआ कि जब तक वृंदा की निष्ठा उसकी रक्षा करती रहेगी, तब तक जालंधर को रोका नहीं जा सकता. लेकिन राक्षस को मारना जरूरी था. इसलिए विष्णु ने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास गए.

यह मानते हुए कि उसके पति युद्ध से वापस आ गए हैं, वृंदा ने भगवान विष्णु को गले लगा लिया और इस तरह उसकी सतीत्व की रक्षा टूट गई. तब देवता जालंधर को मारने में सफल हो गए. जब ​​वृंदा को छल का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह एक काले पत्थर में बदल जाएंगे. विष्णु ने श्राप स्वीकार कर लिया और वृंदा से कहा कि वह तुलसी के पौधे में बदल जाएगी, जिस रूप में वह उससे विवाह करेंगे. तुलसी हमेशा के लिए भक्ति की वस्तु बनी रहेगी.

इसलिए आज से शुरू होंगी शादियां
इस प्रकार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु अपनी चार महीने की निद्रा, चातुर्मास से जागते हैं, (इस अवधि में शुभ कार्य नहीं होते) इसके बाद वे तुलसी से विवाह करते हैं और विवाह का मौसम शुरू होता है. ऐसा माना जाता है कि तुलसी के पौधे की खुशबू वास्तव में वृंदा की पवित्रता और भक्ति की खुशबू है. जब भगवान विष्णु और उनके रूपों की पूजा की जाती है, तो तुलसी के पत्ते हमेशा अनुष्ठान का हिस्सा होते हैं.

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