1200 साल पुराना शिव मंदिर, 'सर्वशक्तिशाली' राजा ने बनवाया, आ रही सबसे महंगी फिल्म

आज एक ऐसे मंदिर के बारे में आपको जानकारी देंगे जिसे देश के सबसे शक्तिशाली राजाओं में शुमार किए जाने वाले चोल वंश के राजा ने बनवाया था. राज राजा चोल प्रथम के नाम से मशहूर चोल राजा के जीवन पर जल्द ही एक फिल्म भी आ रही है जिसका नाम PS-1 है.  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 29, 2022, 06:28 AM IST
  • साउथ में भगवान शिव के कई पुराने मंदिर
  • 1200 साल पुराना है बृहदेश्वर मंदिर
1200 साल पुराना शिव मंदिर, 'सर्वशक्तिशाली' राजा ने बनवाया, आ रही सबसे महंगी फिल्म

नई दिल्ली. हिंदू धर्म के त्रिदेवों में एक भगवान शिव का पवित्र महीना सावन इस वक्त चल रहा है. ऐसे में हम आपके सामने भगवान शिव और उनके मंदिरों से जुड़ी कहानियां लेकर आ रहे हैं. इसी कड़ी में आज एक ऐसे मंदिर के बारे में आपको जानकारी देंगे जिसे देश के सबसे शक्तिशाली राजाओं में शुमार किए जाने वाले चोल वंश के राजा ने बनवाया था. राज राजा चोल प्रथम के नाम से मशहूर चोल राजा के जीवन पर जल्द ही एक फिल्म भी आ रही है जिसका नाम PS-1 है. इस फिल्म को मशहूर फिल्म डायरेक्टर मणिरत्नम ने निर्देशित किया है. यह देश की अब तक की सबसे महंगी फिल्म है. कई भाषाओं में रिलीज हुए इसके ट्रेलर को अब तक करोड़ों व्यूज़ मिल चुके हैं. 

थंजवुर में स्थित है बृहदेश्वर मंदिर
तो आज कहानी तमिलनाडु के थंजवुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर की. इस मंदिर का शुरुआती नाम पेरुवुडईयार कोविल था. इसे स्थानीय रूप से राजराजेश्वरम और थंजाई पेरिया कोविल के नाम से भी जानते हैं. मंदिर का नाम संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है. वृहद यानी विशाल और ईश्वर शब्द का इस्तेमाल भगवान शिव के लिए किया गया है.

थंजवुर में कावेरी नदी के तट पर बनाया गया
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर 1003 ईस्वी से 1010 ईस्वी के बीच बनवाया गया था. यह मंदिर थंजवुर में कावेरी नदी के तट पर बनाया गया था. द्रविण स्थापत्य शैली का नमूना यह मंदिर तमिल संस्कृति को बहुत खूबसूरत ढंग से प्रदर्शित करता है. 

यूनेस्को साइट है यह मंदिर, शैव-वैष्णव-शक्ति संप्रदाय की दिखती है स्टाइल
दुनियाभर की वैश्विक धरोहरों की रक्षा करने वाले यूनेस्को ने इस मंदिर को भी अपनी देखरेख में रखा हुआ है. मंदिर की शुरुआती संरचना में शैव संप्रदाय से जुड़े गोपुरा, मुख्य मंदिर, विशाल  स्तंभ, कलाकृतियां शामिल थे. दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण में शैव संप्रदाय के अलावा वैष्णव और शक्ति संप्रदाय से जुड़े प्रतीक चिन्ह और स्टाइल भी दिखते हैं. बेहद पुराना होने के कारण अब मंदिर के कई शुरुआती निर्माण अब देखने को नहीं मिलते. 16वीं शताब्दी में इस मंदिर में एक बार फिर निर्माण कार्य करवाए गए थे. 

ग्रेनाइट पत्थरों का हुआ है इस्तेमाल
ग्रेनाइट पत्थरों को इस्तेमाल कर बेहद विशाल विशेष 'विमान' बनवाए गए. इस मंदिर में बेहद विशाल आकार का कॉरिडोर है. देश में सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक इस मंदिर में है. मंदिर में भगवान शिव के अलावा नंदी, देवी पार्वती, कार्तिकेय, गणेश, सभापति, दक्षिणमूर्ति, चंदेश्वर की मूर्तियां भी मौजूद हैं. मंदिर में भक्तों की श्रद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये तमिलनाडु के सबसे मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशन में से एक है.

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