फाल्गुन का त्यौहार होली पूरे देश भर में गुलाल के रंगों के साथ मनाया जाता है.होली पर रंग लगाने की परंपरा कैसे शुरू हुई इसके पीछे कई कारण हैं.
मान्यता हैं कि श्रीकृष्ण ने यशोदा से अपने काले रंग की शिकायत की, और राधा के गोरे होने की बात कही. यशोदा ने कहा तुम राधा को जिस रंग में देखना चाहते हो उसी रंग को राधा के मुख पर लगा दो.
भगवान श्रीकृष्ण को यह बात पसंद आ गई. उन्होंने फाल्गुन माह में अपने मित्रों के साथ राधा और सभी गोपियों को जमकर रंग लगाया.
नटखट श्री कृष्ण की यह प्यारी शरारत सभी ब्रजवासियों को बहुत पंसद आई. माना जाता है, कि इसी दिन से होली पर रंग खेलने का चलन शुरू हो गया.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था. इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था.
एक-दूसरे को रंगों में रगने को लेकर लोगों में बहुत उत्साह दिखाई देता है, हमारे जीवन में रंगों का एक विशेष महत्व जो है. जीवन में हर रंग की अपनी विशेषता है.
पहले के समय में होली पर सभी के साथ खेला जाने वाला एकमात्र रंग लाल (गुलाल) था,लेकिन अब एक-दूसरे को रंगने के लिए सिल्वर से लेकर गोल्डन तक कई तरह के रंग उपलब्ध हैं.
लाल रंग प्रेम और उर्वरता का प्रतीक हैं, पीला रंग शुभता को दर्शाता है, नीला कृष्ण का रंग है और हरा रंग बसंत की शुरुआत है.
कहीं-कहीं पर फूलों से भी होली खेली जाती है जैसे गुलाब, डेजी, सूरजमुखी और यहां तक कि मैरीगोल्ड के फूलों की पंखुड़ियों के साथ भी होली खेली जाती है.
यह जानकारी सामान्य जनमानस को जागरूक करने के लिए इंटरनेट से ली गई है. जी न्यूज इसकी पुष्टि नहीं करता.