भारत में कई ऐसी नदियाँ हैं जो धरती के भीतर बहती हैं. इनमें से एक प्रमुख उदाहरण है प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था) में बहने वाली सरस्वती नदी. प्रयागराज महाकुंभ की दुनिया भर में धूम है. ऐसा माना जाता है कि Prayagraj में तीन नदियों का संगम है.
प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ 2025 का आयोजन हो रहा है, जो 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा.महाकुंभ में कुल 6 मुख्य स्नान होंगे, जिसमें पहला स्नान पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) पर हुआ और दूसरा स्नान मकर संक्रांति (14 जनवरी) को हुआ.
संगम पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का मिलन होता है, जहां सरस्वती को गुप्त रूप में मौजूद माना जाता है.
सरस्वती नदी प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों के संगम के पास से होकर गुजरती है, लेकिन इसका अधिकांश भाग धरती के भीतर है. वैज्ञानिक भी मानते हैं कि सरस्वती नदी का अस्तित्व कभी था, जो हिमालय से निकलकर राजस्थान होते हुए अरब सागर में मिलती थी.
यह नदी लगभग 20 किलोमीटर लंबी है और इसका पानी इतना साफ और शुद्ध है कि इसे पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
सरस्वती नदी का इतिहास बहुत पुराना और रहस्यमय है. सरस्वती नदी का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी बहुत अधिक है.
यह नदी हिंदू धर्म में एक पवित्र नदी मानी जाती है और इसका उल्लेख कई प्राचीन हिंदू ग्रंथों में मिलता है.जैसे कि ऋग्वेद और महाभारत में.ऋग्वेद की ऋचाओं में कहा गया है कि यह एक ऐसी नदी है जिसने एक सभ्यता को जन्म दिया.
पौराणिक काल में सरस्वती नदी को यमुना और गंगा से भी अधिक शक्तिशाली माना जाता था. इस महाकुंभ आप भी इस अदृश्य नदीं के साक्षात दर्शन कर सकते हैं.
मान्यता है कि हर तीन साल में कुम्भ के दौरान सरस्वती कूप में पानी अपने आप भर जाता है, जैसे मां सरस्वती दर्शन देने आई हों. सरस्वती कूप करीब 70 फीट गहरा है, जिसमें 30-35 फीट तक पानी भरा रहता है और यहां मां सरस्वती की सफेद प्रतिमा भी स्थापित है.
सरस्वती नदी को सिन्धु नदी के समान दर्जा प्राप्त था और इसे भाषा, ज्ञान, कलाओं और विज्ञान की देवी भी माना जाता था.
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