सत्संग में प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने पूछा कि ईर्ष्या, क्रोध व नफरत को किस तरह से खत्म किया जाए?
इस पर प्रेमानंद महाराज ने जवाब दिया कि सबसे पहले इसके मूल में आएं.
प्रेमानंद महाराज ने ये भी कहा कि किसी वृक्ष को काटने के लिए पहले उसकी जड़ खोदनी चाहिए. बुद्धिमान पहले डाल नहीं काटेगा.
प्रेमानंद महाराज ने जवाब दिया कि क्रोध का मूल है काम. छोटी बातों में जो क्रोध आता है हमारी कामना होती है उसमें.
आज सभी अपने कर्तव्य को खोने लगे हैं. केवल अपने कर्तव्य का पालन करें कि भगवान ने हमें सेवा दी है.
हमारे प्रति कौन किस तरह का व्यवहार करता है यह सब हमारे प्रभु जानें. आपको इस तरह क्रोध कभी नहीं आएगा.
ईर्ष्या प्रेमानंद महाराज ने बोला कि ईर्ष्या हमेशा पराए से होती है, कभी भी अपने से ईर्ष्या नहीं होती है.
प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि ईर्ष्या को अपनेपन से हटाएं, सब में हमारा प्रभु है. नफरत तब होती है, जब हम किसी में गलत भाव देखें.
प्रेमानंद महाराज अपने विचार साझा करते हुए कहते हैं कि वास्तविक ज्ञान की ओर हमें बढ़ना चाहिए. हम सबमें ईश्वर है, केवल उसे खोजना है