लोहाघाट उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित है. लोहाघाट और इसके आसपास के क्षेत्र को पहले सुई के नाम से जाना जाता था, और यह शहर कत्यूरी राजाओं के शासनकाल के बाद से प्रमुख स्थान रहा है.
कत्यूरी राजवंश के एक वंशज ने आठवीं शताब्दी में सुई में अपनी रियासत स्थापित की थी . 10वीं शताब्दी के अंत में कत्यूरी साम्राज्य के पतन तक सुई के शासक कत्यूरी के सामंत थे.
सुई के अंतिम कत्यूरी गवर्नर ब्रह्मा देव कत्यूरी को स्थानीय खासिया प्रमुखों के कई विद्रोहों के कारण अपने क्षेत्रों को संभालने में परेशानी हो रही थी.
बाद में ब्रह्मदेव ने अपनी बेटी की शादी राजकुमार सोमचंद से की और उन्हें दहेज के रूप में अपनी रियासत प्रदान की.
सोम चंद ने चंपावत में अपनी राजधानी स्थापित की और सुई के राउत राजा को हराया और पूरे क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया और इस तरह कुमाऊं में चंद वंश के शासन की नींव रखी गई.
1790 में गोरखाओं के हाथों अल्मोड़ा गंवाने तक लोहाघाट कुमाऊं साम्राज्य के अधीन रहा. 12वीं शताब्दी में चंद राजाओं ने यहां बाणासुर किला बनवाया था.
एंग्लो-नेपाल युद्ध में गोरखाओं की हार और 1816 में सुगौली की संधि के बाद लोहाघाट ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में आ गया. अंग्रेज इस जगह की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित हुए और यहाँ बसने लगे.
जब भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ, तब लोहाघाट उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले की चंपावत तहसील में एक परगना था.
लोहाघाट को 1982 में पिथौरागढ़ जिले में शामिल किया गया और 1997 में पिथौरागढ़ जिले से अलग होने पर यह चंपावत जिले का हिस्सा बन गया.