Azadi Ka Amrit Mahotsav: आजादी के 75 साल की 75 कहानियों में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी मुस्लिम वकील की जिसने तमाम लोगों के मना करने के बावजूद भगत सिंह का केस लड़ा. यह बात है 23 मार्च 1931 की जब सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई. उस वक्त सरदार भगत सिंह की पैरवी करने के लिए कोई भी वकील तैयार नहीं था. ऐसे में भगत सिंह के लिए कोर्ट में बिजनौर के रहने वाले देश के नामी वकील आसफ अली ने पैरवी की थी. आसफ अली का जन्म जनपद में हुआ था. जब वह बड़े हुए तो पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए. लेकिन जब वह वापस आए तो देश की स्थिति देख वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. और देश की आजादी में अपनी वकालत का भरपूर इस्तेमाल किया. जब भी कोई स्वतंत्रता सेनानी का केस लड़ने से मना करता तो आसफ अली उनका केस लड़ते और अंग्रेजों की सजा से उन्हें बचा लेते. ऐसा ही एक केस था भगत सिंह का जब उन्हें फांसी की सजा हुई तो उनका केस भी तमाम वकीलों ने लड़ने से मना कर दिया. लेकिन इसके बाहजूद आसफ अली ने उनका केस लड़ा, आसफ अली की पत्नी अरुणा आसफ अली भी क्रांतिकारियों के मुकदमे में उनकी मदद करती थीं. जब अपना देश आजाद हो गया तो आसफ अली अमेरिका में भारत के पहले राजदूत नियुक्त किए गए. लेकिन 2 जुलाई 1953 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. तो यह थी कहानी उस वकील की जिसने विदेश में रहकर वकालत करने से ज्यादा अपने देश की आजादी चुनी और इंग्लैड से वापस आकर आजादी की जंग में कूद पड़े.