Azadi ka Amrit Mahotsav: आजादी के 75 साल की 75 कहानियों में आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जिनके कलम ने ही अंग्रेजों को देश के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया. मैं बात कर रहा हूं. देश की आजादी में शहादत देने वाले पहले पत्रकार मौलवी मुहम्मद बाकर की. यह बात है 4 जून 1857 की जब मौलवी मुहम्मद बाकर ने अपने अखबार में एक लेख छापा था. जिसका शीर्षक था “ये मौका मत गंवाओ, चूक गए तो फिर कोई मदद को नहीं आएगा. अंग्रेजी हुकूमत से छुटकारा पाने का ये शानदार मौका है. अंग्रेज इस खबर से इतना धबरा गए कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 16 सितंबर 1857 को मौलवी मुहम्मद बाकर को तोप के आगे बांधकर उडा दिया गया! दिल्ली में साल 1780 में जन्में मौलवी मुहम्मद बाकर पहले अंग्रेजों के लिए ही काम करते थे. लेकिन साल 1834 में सरकार ने प्रेस एक्ट में संशोधन करके अखबार निकालने की इजाजत दे दी. जिसके बाद साल 1837 में मौलवी बाकिर ने एक प्रेस खरीदकर दिल्ली से ही ‘दिल्ली उर्दू अखबार’ निकालना शुरू कर दिया. और उसी अंग्रेजों के खिलाफ देश की जनता को जगाने का काम किया. जिससे वह अंग्रेजों की आंखों में खटकने लगे और लगातार उनके खिलाफ ब्रिटिश सरकार फरमान जारी करने लगी. और फिर साल 1857 के सितंबर माह में उन्हें गिरफ्तार करके तोप के सामने खड़ा करके उड़ा दिया गया.अंग्रेजों ने तो उन्हें मार दिया लेकिन इतिहास में वह हमेशा के लिए अमर हो गए. आजादी के बाद उन्हें वह मरतवा नहीं मिल सका जो उन्हें मिलना चाहिए. लेकिन आज भी जितने बच्चे पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर बनाना चाहते हैं. उनके लिए मौलाना मुहम्मद बाकर एक मिसाल है जो पत्रकारिता की असली महत्व को बताते हैं.