नवरात्रि पर्व के करीब आते ही देश भर के बाजारों में रोनक हो जाती हैं लोगों की चहल-पहल लगी रहती हैं. ऐसे में प्रयागराज के ललगोपालगंज कस्बे में मुस्लिमों के हाथों से तैयार होने वाली देवी मां की चुनरी और कलावा की डिमांड प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने में बड़ जाती हैं. देश के सभी प्रमुख देवी धाम में चढ़ाई जाती है यहां की चुनरी और कलावा.
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प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज को आपसी सौहार्द और गंगा जमुनी संस्कृति के लिए जाना जाता है. शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर लाल गोपालगंज कस्बे में इसका जीता जागता उदाहरण आज भी नजर आता है. जहां पर नवरात्र में देवी दुर्गा को अर्पित होने वाली चुनरी और कलावा मुस्लिम परिवार अंग्रेजों के समय से तैयार करते आ रहे हैं. लालगोपालगंज कस्बे में मुस्लिम हाथों से तैयार होने वाली ख़ास किस्म की बनी चुनरी और कलावा को मां विंध्यवासिनी, मैहर देवी, ज्वाला देवी, कामाख्या धाम, वैष्णो देवी के साथ ही प्रदेश और देश के अन्य शक्तिपीठों में बेहद श्रद्धा और आस्था के साथ चढ़ावा जाता है. इस कस्बे के मुस्लिमों के हाथों से तैयार होने वाली देवी मां की चुनरी और कलावा की डिमांड प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने में रहती है.
मुस्लिमों को भी आस्था के इस महापर्व का इंतजार
प्रयागराज के ललगोपालगंज कस्बे के मुस्लिम परिवारों को भी शक्ति की प्रतीक देवी दुर्गा को समर्पित नवरात्रि पर्व का इंतजार रहता है. नवरात्रि पर्व से पहले यहां के मुस्लिम परिवार मां दुर्गा की आस्था और विश्वास वाली थाली में सजने वाली चुनरी और कलावा को रंग रोगन देना शुरू कर देते हैं. नवरात्रि पर्व के करीब आते आते यहां पर बनने वाली चुनरी और कलावा देश के देवी धामों में पहुंचना शुरू हो जाती है. अंग्रेजो के समय से देवी धाम को जाने वाली चुनरी और कलावा तैयार करने वाले मुस्लिमों को भी आस्था के इस महापर्व का इंतजार रहता है.
दर्जनों मोहल्ले के लिए यह रोजगार का सबसे बड़ा जरिया
मां की चुनरी और कलावा तैयार करने वाले करीब तीन दर्जनों मोहल्ले के लिए यह रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है. आस्था के इस महापर्व से सालभर का खर्च चलता है. इसी चुनरी और कलावा में आस्था का रंग चढ़ाकर वह अपने परिवार के भरण पोषण का जरिया बनाते हैं. लोगों की कई-कई पीढ़ीयां है जो देवी मां की चुनरी और कलावा को तैयार करने का काम कर रही है. देश में भले ही हिंदू मुस्लिम के बीच खाई बनाने की बात होती हो मगर उनका विश्वास कभी कमजोर नहीं हुआ.
पिछली पांच पीढ़ी से इसी काम में जुटें है मुस्लिम
मां की चुनरी और कलावा तैयार करके यहां के सैकड़ों मुस्लिम परिवार अपनी आजीविका चलाने का काम करते हैं. पिछली पांच पीढ़ी से इसी काम में जुटें है. दूसरे रोजगार के साधन पर उनके परिवार ने कभी सोचा भी नहीं. देवी मां की चुनरी और कलावा तैयार करना उनके परिवार के लिए किसी आस्था से कम नही है.
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