Uttarkashi: वाकई! सरकार नहीं खरीद रही भेड़ों का ऊन, तिल-तिल कर दम तोड़ रहा हस्तशिल्प उद्योग
Advertisement

Uttarkashi: वाकई! सरकार नहीं खरीद रही भेड़ों का ऊन, तिल-तिल कर दम तोड़ रहा हस्तशिल्प उद्योग

Woolen Handicrafts Industry: वर्तमान समय में बाजारों में ऊनी वस्त्रों की डिमांड भी बहुत कम हो हो गई है. वहीं, सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में पुराने तौर तरीकों से तैयार ऊनी उत्पाद, बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना तो दूर टिक भी नहीं कर पा रहे हैं. 

Uttarkashi: वाकई! सरकार नहीं खरीद रही भेड़ों का ऊन, तिल-तिल कर दम तोड़ रहा हस्तशिल्प उद्योग

हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी: कोरोना महामारी के चलते लगभग सभी व्यवसायियों पर असर पड़ा है. वहीं, उत्तरकाशी के सीमांत जनपद में जाड़ भोटिया जनजाति आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रही है. क्योंकि उनकी आय का मुख्य साधन ऊनी वस्त्र उद्योग है. ऐसे में आर्थिक तंगी की वजह कच्चे माल का महंगा होना और ऊनी वस्त्र उद्योग का प्रचलन काफी कम होना माना जा रहा है.

जानिए क्या है इसकी मुख्य वजह
आपको बता दें कि इसका मुख्य कारण ऊनी वस्त्रों का बाजार में न मिलना है. जिसकी वजह से वर्तमान समय में बाजारों में ऊनी वस्त्रों की डिमांड भी बहुत कम हो हो गई है. वहीं, सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में पुराने तौर तरीकों से तैयार ऊनी उत्पाद, बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना तो दूर टिक भी नहीं कर पा रहे हैं. जिसके चलते हस्तशिल्प का यह कारोबार दम तोड़ता नजर आ रहा है.

Ghaziabad: पकड़े गए राजधानी दिल्ली के शहंशाह, शव नहीं ले उड़ते थे पूरी शव वाहिनी

जाड़ भोटिया जनजाति की आय का मुख्य जरिया है ऊन
आपको बता दें कि उत्तरकाशी के हर्षिल बगोरी डुंडा वीरपुर गांव में जाड़ भोटिया जनजाति के लोग भेड़ के ऊन से कंबल, कालीन, शॉल व अन्य गर्म कपड़े बनाते हैं. इन उत्पादों को बेचने से जो आमदनी आती है, वही इनकी आय का मुख्य जरिया है. दूसरी तरफ आज बाजारों में ऊनी वस्त्रों के उत्पाद की डिमांड बहुत कम हो गई है, क्योंकि अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऊनी परिधानों को पहनना लोगों ने कम कर दिया है जिस कारण ऊनी वस्त्र बाजारों में कम बिक पा रहे हैं.

सरकार से ये है मांग 
ऊनी वस्त्र से जुड़े हस्तशिल्पी और व्यापारी लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार कदम बढ़ाए. वहीं, भेड़ पालकों का कहना है कि भेड़ों के लिए जंगलों में चरागाह पर भी पाबंदियां लगी हुई हैं. बताया जा रहा है कि भेड़ों से निकलने वाली ऊन को सरकार नहीं खरीद रही.

उत्पादक ऊन को राज्य से बाहर कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर 
आपको बता दें कि इसी वजह से पिछले दो-तीन सालों से ऊन को प्राइवेट कम्पनियां ओने पौने दामों में खरीद रही हैं. जिससे उत्पादन करने वाले लोगों को काफी घाटा हो रहा है. हालांकि, विभाग द्वारा ऊन प्रसंस्करण के लिए जनपद में तीन कार्डिंग और स्पिनिंग प्लांट लगे हैं, लेकिन इन कार्डिंग प्लांटों में भेड़ पालक ऊन की सफाई व कताई के लिए कम ही आते हैं. वहीं, उत्तरकाशी क्षेत्र में हर्षिल क्रॉस वाली उच्च गुणवत्ता की ऊन उत्पादित होती है, जो गुणवत्ता में श्रेष्ठ मानी जाती है. दूसरी तरफ सुविधा के अभाव में व्यवसायी ऊन को राज्य से बाहर की मंडियों में कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर हैं.

Trending news