Muzaffarnagar News: ग्रामीणों की माने तो जनप्रतिनिधि भी चुनाव के समय वोट मांगने के लिए यहां पर आकर बड़े-बड़े वादे करके जाते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई भी पीछे मुड़कर इस गांव की तरफ नहीं देखता है.
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मुजफ्फरनगर: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद में एक गांव ऐसा भी है, जो पिछले 26 सालों से अपने वजूद को तलाश रहा है. यह गांव ना ही तो शहर के नक्शे में मौजूद है और ना ही नगर पंचायत में 26 सालों से इस गांव के लोग बदहाली का जीवन जीने पर मजबूर हैं. विडंबना तो इन ग्रामीणों की ये है कि इन्हें पिछले 26 सालों से एक भी सरकारी सुविधा नहीं मिल पाई है. सुर्खियों में ये गांव उस समय आया, जब जिला प्रशासन को इसकी जानकारी हुई. बस फिर क्या था एडीएम प्रशासन की मौजूदगी में निकल पड़ी एक टीम इस गांव की ओर गांव में पहुंचकर जब यहां के हालात देखे तो सरकारी अधिकारी भी भौचक्का रह गए.
आज तक नहीं मिला कोई प्रधान
लगभग 1000 आबादी वाले इस गांव में ग्रामीणों के पास राशन कार्ड तो है, लेकिन हर महीने मिलने वाला राशन इस गांव में नहीं है, जिसके लिए इन्हें दूसरे गांव में कई किलोमीटर चलकर जाना पड़ता है. बच्चों के लिए गांव में प्राथमिक विद्यालय भी है, लेकिन इसकी जर्जर हालात के चलते यह भी बंद पड़ा हुआ है. जिसके चलते यहां के बच्चों को भी पढ़ने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. यही नहीं इस गांव की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पिछले 26 सालों में इस गांव को ना ही तो नाम मिल पाया है और ना ही आज तक कोई प्रधान ही मिला है.
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बेटियों को पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है 5 किलोमीटर दूर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद मुजफ्फरनगर की भौकारेहड़ी नगर पंचायत के आखिरी में हरिद्वार की सीमा पर बसे इस गांव के ग्रामीणों का कहना है कि ये जो हमारा गांव है इसके जंगल का नाम कभी हाजीपुरा हुआ करता था. सोनाली नदी के दूसरी तरफ हमारा गांव था. 1996 में यह गांव नदी के इस पार बसा दिया गया था, लेकिन इस गांव को तहसील के अंदर दर्ज नहीं कराया गया, जिसके चलते इस गांव को कोई नाम नहीं दिया गया. हमें यहां कोई सुविधा नहीं मिल पाती यहां पर पांचवी तक स्कूल है, लेकिन उसके बाद हमारी बहनों को 5 किलोमीटर दूर एक इंटर कॉलेज में जाना पड़ता है. जहां का सारा रास्ता जंगल का पड़ता है और वह भी टूटा फूटा है. अधिकारियों ने भी इन ग्रामीणों को आश्वासन दिया है कि जल्द ही जो भी सरकारी मूलभूत सुविधा है वह इस गांव को उपलब्ध कराई जाएंगी.
राशन के लिए कोटेदार की गांव में ही होगी व्यवस्था
इस बारे में जानकारी देते हुए एडीएम प्रशासन नरेंद्र बहादुर सिंह ने बताया कि ग्राम हजीपुरा नगर पंचायत भौकारेहड़ी के पास में है, जिसका संज्ञान में आया था कि वहां पर कोई भी कार्य नहीं हुए हैं जिसके बाद मैंने वहां पर तहसीलदार, एसडीएम और अन्य अधिकारियों के साथ विजिट किया. वहां पर लोगों से बात की. कई बातें वहां से निकल कर सामने आई हैं. यहां के लोग नगर पंचायत में वोट डालते हैं, लेकिन नगर पंचायत की जो सीमा है. उसमें वे शामिल नहीं हैं.
उन्होंने आगे बताया कि इस गांव को नगर पंचायत में जोड़ने की कोशिश की जा रही है. गांव में स्कूल की स्थिति थोड़ी सी खराब थी. उसको प्रशासन की ओर से ठीक कराने का काम जल्दी ही किया जाएगा. ग्रामीणों को राशन लेने के लिए भी काफी दूर जाना पड़ता है. उसके लिए भी हम लोगों ने निर्णय लिया है कि कोटेदार को एक या 2 दिन उसी गांव में राशन बांटने का काम करेगा. इसके अलावा भी जो भी विकास के कार्य हो सकेंगे. प्रशासन के माध्यम से वहां किया जाएगा.
क्या कहना है ग्रामीण का?
ग्रामीण संजीव कुमार ने बताया कि हाजीपुरा गांव में पड़ने वाले जंगल का नाम था. हाजीपुरा पुरानी नदी के दूसरी तरफ हमारा गांव था. 1996 में यह गांव नदी की दूसरी तरफ बसा दिया गया था, लेकिन इसको उस समय तहसील के अंदर दर्ज नहीं कराया गया था. हमें आज तक कोई नाम नहीं दिया गया. 1996 से लेकर आज तक हम ऐसे के ऐसे ही हैं.
संजीव कुमार ने बताया कि इस गांव के लोगों तो कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है. यहां पर पांचवी तक स्कूल है. पांचवी के बाद यहां एक इंटर कॉलेज 5 किलोमीटर दूर पड़ता है .उसी में हमारी बहने जाती हैं. जंगल का रास्ता है. अकेली लड़की जा रही है तो परेशानी आती है. प्रदेश सरकार और राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही किसी भी योजना का हमें लाभ नहीं मिल पाता है.
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