Shardiya Navratri 2022: हिंदू मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव की पहली पत्नी मां सती के अंग और आभूषण धरती पर जिन जगहों पर गिरे, वह सभी शक्तिपीठ बन गए. तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ माने जाते हैं.
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Sardiya Navratri 2022: 26 सितंबर 2022 से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. नौ दिनों के इस पर्व में माता के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन भक्त अपने घरों में कलश स्थापना कर देवी मां का स्वागत करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिन माता भक्तों के घर में वास करती हैं. वैसे तो पूरे देश में देवी मां के कई स्वरूपों के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जिनकी अपनी महिमा हैं.
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव की पहली पत्नी मां सती के अंग और आभूषण धरती पर जिन जगहों पर गिरे, वह सभी शक्तिपीठ बन गए. तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ माने जाते हैं. मां के इन शक्तिपीठों में से एक है देवी पाटन मंदिर..आइए जानते हैं इस मंदिर के महत्व, कथा और चमत्कारों के बारे में....
जानें शक्तिपीठ देवीपाटन का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव की पत्नी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था. उस यज्ञ में देवी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया गया था. जिससे क्रोधित होकर देवी सती अपने पति भगवान शंकर के अपमान को सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ कुंड में अपने शरीर को समर्पित कर दिया.
जब कैलाश पति भगवान शंकर को हुई तो वह खुद वहां पहुंचे और भगवान शिव ने अत्यंत क्रोधित होकर देवी सती के शव को अग्नि से निकाल लिया. शव को अपने कंधे पर लेकर तांडव किया. भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई, जिसके बाद भगवान बह्मा के आग्रह पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया जिससे भगवान शिव का क्रोध शांत हो सके. विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग जहां-जहां गिरा, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई. बलरामपुर जिले के तुलसीपुर इलाके में ही देवी सती का स्कंध के साथ पट गिरा था. इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम पाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है. सच्चे मन से प्रार्थना करने वाले भक्तों की सारी इच्छा पूरी कर देती हैं.
जानिए मां को किसका लगता है भोग
नवरात्रि के दिनों में है मां पाटेश्वरी की विशेष आराधना की जाती है. यहां चावल की विशेष पूजा की जाती है. नवरात्रि के 9 दिन माता की पिंडी के पास चावल की ढेरी बनाकर माता का विशेष पूजन किया जाता है और बाद में उसी चावल को भक्तों में वितरित कर दिया जाता है.
त्रेता युग से जल रही अखण्ड धूना
शक्तिपीठ के गर्भ गृह में एक अखण्ड धूना भी प्रज्जवलित है. पौराणिक कथाओं की मानें तो भगवान शंकर के अवतार माने जाने वाले गुरु गोरक्षनाथ जी महराज ने त्रेता युग में मां पाटेश्वरी को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी. एक अखण्ड धूना प्रज्जवलित की, जो त्रेता युग से आज वर्तमान समय में अनवरत रूप से जल रही है.
गर्भ गृह के सख्त नियम
इस गर्भ गृह के कुछ सख्त नियम भी हैं. यहां पर कोई भी भक्त बिना कपड़ा रखे प्रवेश नहीं कर सकता है. यहां की राख को लोग अपने घर ले जाते हैं और भूत. पिशाच या साए आदि से पीड़ित व्यक्ति को यह राख (भभूत) स्पर्श मात्र से उसके कष्ट मिट जाते हैं.
इस कुंड में कर्ण ने किया था स्नान
देवीपाटन मंदिर परिसर में ही उत्तर की तरफ एक विशाल सूर्यकुण्ड बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि महाभारत के समय में कर्ण ने यहीं पर स्नान किया था और सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया था. इसीलिए इस कुण्ड को सूर्यकुण्ड के नाम से जाना जाता है.
देवीपाटन में मुंडन संस्कार का महत्व
नवरात्रि के दिनों में देवीपाटन में मुंडन संस्कार का भी अपना महत्व माना गया है. ग्रामीण अंचलों से लोग मुंडन संस्कार के लिए देवीपाटन पहुंचते हैं. इसके लिए यहां पर विशेष मुंडान स्थल बनाया गया है.
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