आषाढ़ पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. इसे मुड़िया पूर्णिमा के नाम से भी लोग जानते हैं.इस साल मुड़िया मेला 10 जुलाई से 14 जुलाई तक आयोजित होगा. गोवर्धन पर्वत को भगवान श्री कृष्ण का साक्षात् रूप मानकर लोग उसे गिरिराजजी के नाम से भी पुकारते हैं.
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कन्हैयालाल शर्मा/मथुरा: मथुरा के गोवर्धन में सुप्रसिद्ध मुड़िया मेले की शुरुआत हो चुकी है. देश के अलग-अलग जगहों से श्रद्धालु गोवर्धन पहुंच रहे हैं. श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. बच्चे, युवा, महिलाएं, बुजुर्ग हर वर्ग गिरिराज महाराज की शरण में अपनी हाजिरी लगा रहा है. आस्था का यह अनूठा संगम ब्रज की इस पावन धरा पर अपनी अलग ही छाप छोड़ता है. भगवान श्री कृष्ण ने यूं तो बृज में कई लीलाएं की है लेकिन गोवर्धन का गिरिराज पर्वत उठाकर ब्रज वासियों की रक्षा करने वाली लीला सबसे अलग है.
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करोड़ों भक्त पहुंचेंगे
यहां भगवान श्री कृष्ण ने सात साल की आयु में सात दिन और सात रात अपनी उंगली पर 21 किलोमीटर में फैले विशाल गिरिराज पर्वत को उठा कर ब्रज वासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी. भगवान की इस लीला के बाद से ही गोवर्धन पूजा का महत्व शुरू हुआ. द्वापर युग से और आज तक गोवर्धन पूजा लगातार चली आ रही है. एकादशी से पूर्णिमा तक चलने वाले गुरु पूर्णिमा मेले को मुड़िया पूर्णिमा मिला भी कहा जाता है. इन 5 दिनों में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु गोवर्धन पहुंचते हैं. कोई अपने गांव से सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर गोवर्धन परिक्रमा करने आता है तो कोई ट्रेन बस और अपने निजी वाहनों के द्वारा यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है.
गोवर्धन परिक्रमा 21 किलोमीटर में फैली हुई है. यहां भक्त 21 किलोमीटर नंगे पांव पैदल चलकर गिरिराज महाराज की परिक्रमा लगाते हैं और अपनी मनोकामना करते हैं. आस्था का ऐसा दृश्य दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिल सकता. धूप हो गर्मी, बारिश हो सर्दी भक्तों पर कोई असर नहीं पड़ता. मुड़िया मेले को लेकर पुलिस प्रशासन ने भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. सुरक्षाकर्मियों को जगह-जगह तैनात किया गया है. मंदिरों में विशेष सुरक्षा कर्मी तैनात किए हैं जिससे मंदिर में दर्शन के दौरान किसी भी श्रद्धालु को कोई भी दिक्कत का सामना ना करना पड़े. गोवर्धन महाराज के दर्शन करने आने वाले भक्त काफी उत्साहित हैं. कोरोना की वजह से गोवर्धन का गुरु पूर्णिमा मेला आयोजित नहीं हो सका था. बड़ी संख्या में भक्त यहां नहीं पहुंच पाये थे.
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