Sawan Last somwar 2022: कनखल में है भगवान शिव का ससुराल, यहीं यज्ञ कुंड में कूद माता सती ने त्यागे थे प्राण
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Sawan Last somwar 2022: कनखल में है भगवान शिव का ससुराल, यहीं यज्ञ कुंड में कूद माता सती ने त्यागे थे प्राण

आज सावन का आखिरी सोमवार है. धर्मनगरी हरिद्वार के सभी शिव मंदिरों में सुबह से ही भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जा रहा है. कनखल स्थित भगवान शिव की ससुराल कहे जाने वाले श्री दक्षेश्वर महादेव मंदिर (Daksheshwar Mahadev Mandir) में भी सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है.

फाइल फोटो.

Sawan Last somwar 2022: आज सावन का आखिरी सोमवार है. धर्मनगरी हरिद्वार के सभी शिव मंदिरों में सुबह से ही भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जा रहा है. कनखल स्थित भगवान शिव की ससुराल कहे जाने वाले श्री दक्षेश्वर महादेव मंदिर (Daksheshwar Mahadev Mandir) में भी सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई है. श्रद्धालु लाइनों में लगकर भोलेनाथ का जलाभिषेक कर रहे हैं. 

रक्षाबंधन के दिन कैलाश पर्वत के लिए प्रस्थान कर जाएंगे भोलेनाथ 
मान्यता के अनुसार, भगवान शिव पूरे सावन के महीने दक्षेश्वर महादेव मंदिर में विराजमान रहते हैं और भक्तों का कल्याण करते हैं. ऐसे में सावन के महीने में श्रद्धालु भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. सोमवार के दिन शिव पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इसी वजह से आज सावन के आखिरी सोमवार पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच कर बेलपत्र, भांग, धतूर, दूध-दही, शहद और गंगाजल से जलाभिषेक कर रहे हैं. पूरे सावन के महीने कनखल दक्षेश्वर महादेव में विराजमान रहे भगवान शिव तीन दिन बाद रक्षाबंधन के दिन यहां से कैलाश पर्वत के लिए प्रस्थान कर जाएंगे. 

यहीं माता सती ने त्यागे थे अपने प्राण
दक्षेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के कनखल, हरिद्वार में स्थित है. कनखल को भगवान शिव जी का ससुराल माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री देवी सती का विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था. मान्यता है कि यह वहीं मंदिर है, जहां राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था. इस यज्ञ में भगवान शिव के अलावा राजा दक्ष ने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को आमंत्रित किया गया था. माता सती अपने पिता द्वारा पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. मान्यता है कि जिस यज्ञ कुण्ड में माता सती ने प्राण त्याग किए थे. वह आज भी मंदिर में अपने स्थान पर है. 

ऐसे पड़ा मंदिर का नाम 
कथाओं के अनुसार, जब यह बात महादेव को पता लगी तो उन्होंने गुस्से में राजा दक्ष का सिर काट दिया. देवी-देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवनदान दिया. उस पर बकरे का सिर लगा दिया. वहीं, जब राजा दक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी. भोलेनाश ने राजा दक्ष को माफी देते हुए वादा किया कि इस मंदिर का नाम हमेशा उनके नाम से जुड़ा रहेगा. यही वजह है कि इस मंदिर का नाम “दक्षेश्वर महादेव मंदिर” है. तब भगवान शिव ने घोषणा की थी वे हर साल सावन के महीने में कनखल में ही निवास करेंगे. 

रानी धनकौर ने कराया था मंदिर का निर्माण 
वहीं अन्य कथाओं के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण रानी धनकौर ने 1810 ई. में करवाया था. जिसके बाद 1962 में इसका पुननिर्माण किया गया. इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान बने हुए हैं. वहीं, दक्ष महादेव मंदिर के निकट गंगा नदी बहती हैं, जिसके किनारे पर “दक्षा घाट” है. जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन करते हैं. 

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