Chaitra Navratri 2023: द्वापर युग से जल रही जालौनी मां की जोत,मलखान और फूलन देवी भी झुकाते थे शीश, जानें महाभारत से कनेक्शन
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Chaitra Navratri 2023: द्वापर युग से जल रही जालौनी मां की जोत,मलखान और फूलन देवी भी झुकाते थे शीश, जानें महाभारत से कनेक्शन

Chaitra Navratri 2023: जालौन के बीहड़ो में कभी डांकुओ के गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं... लेकिन आज वहां मंदिर के घंटो की आवाज सुनाई देती हैं...ऐसी मान्यता है कि द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास ने इस मंदिर को स्थापित किया था.. वहीं जब पांडवों को वनवास हुआ था, तब इस मंदिर पर उन्होंने तपस्या की थी... जिसके बाद स्वयं देवी मां प्रकट हुई थीं.

Chaitra Navratri 2023: द्वापर युग से जल रही जालौनी मां की जोत,मलखान और फूलन देवी भी झुकाते थे शीश, जानें महाभारत से कनेक्शन

Chaitra Navratri 2023: जिन बीहड़ों में कभी डांकुओं की गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं वहां आज मंदिर के घंटों की आवाज सुनाई देती है. ऐसा ही एक मंदिर यूपी के जालौन के बीहड़ों में स्थित है. ये जालौन  वाली माता के रूप में प्रसिद्ध है. यहां पर मां के दर्शनों के लिए नवरात्रि में भारी भीड़ उमड़ती है. कहा जाता है कि मशहूर डाकू मलखान सिंह और फूलन देवी भी इस मंदिर में आकर माथा टेकते थे.  मंदिर से जुड़े किस्से और डाकुओं की कहानी लोगों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

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दस्यु मुक्त हुआ बीहड़

बीहड़ अब दस्यु मुक्त हो गया है. पहले डाकूओं के डर यहां पर लोग आने से डरते थे.

यहां स्थित है मंदिर
ये मंदिर यमुना और चम्बल नदी के पास बसा हुआ है. पहले यहां पर अधिकतर डाकू अपना अड्डा बनाते थे. 2-3 दशकों से डांकुओं का साम्राज्य खत्म होने से अब लोग बिना किसीस डर के दर्शन करने आते हैं. नवरात्रि के समय यहां भक्तों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हो जाती है.

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डकैत भी टेकते थे मां के मंदिर में मत्था
बता दें कि बीहड़ के जंगलों में जिस डकैत ने भी राज किया हो, उसकी विशेषता रही है कि वह जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन करने के साथ ही घंटे भी चढ़ाते थे. डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय, अरविन्द गुर्जर आदि  ऐसे ही डकैत थे. ये डकैत समय-समय पर इन मंदिरों में गुपचुप तरीके से माता के मंदिर पर माथा टेकने आते थे. 

1000 साल पुराना है मंदिर, पांडवों ने की थी यहां तपस्या
इस मंदिर के बारे में किवदंति है कि इसका निर्माण महाभारतकालीन में किया गया. ये चंदेल राजाओं के समय खूब प्रसिद हुआ करता था.  लेकिन डकैतों के कारण आजादी के बाद ये स्थान चंबल का इलाका कहलाने लगा. कई किवदंतिया भी इस मंदिर से जुडी हैं. एक भक्त के मरे हुए बेटे के जिन्दा होने की बात की भी काफी चर्चा है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि मां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. स्थानीय निवासियों के मुताबिक मंदिर 1000 साल पुराना है. यहां पांडवों ने तपस्या की थी. महर्षि वेदव्यास द्वारा मंदिर की स्थापना की गई थी.  

नवरात्रि में लगती है भक्तों की भीड़
जालौन वाली माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में रोज श्रद्धालु बीहड़ में स्थित मंदिर में पहुंचते हैं. नवरात्रि के दिनों में मंदिर के आस-पास एक मेले का माहौल नजर आता है.

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